Friday, July 26, 2019

पीरियड का ख़ून चेहरे पर लगाने वाली लड़की.



#सीडिंग_द_मून नाम की ये #प्रथा कई पुरानी मान्यताओं से प्रेरित है, जिनमें माहवारी के ख़ून को #उर्वरता_के_प्रतीक के रूप में देखा जाता था.
इस प्रथा को मानने वाली महिलाएं अपने पीरियड को अपने ही अंदाज़ में जीती हैं.
27 साल की लौरा टेक्सीरिया हर महीने माहवारी के दौरान निकलने वाले ख़ून को इकट्ठा करके वह अपने चेहरे पर लगाती हैं.
इसके बाद बचे हुए ख़ून को पानी में मिलाकर अपने पेड़ों में डालती हैं.
लौरा बताती हैं, "जब मैं अपने पेड़ों में पानी डालती हूं तो मैं एक मंत्र का जाप करती हूँ, जिसका मतलब है- मुझे माफ़ करना, मैं आपसे प्यार करती हूं और आपकी आभारी हूँ."
लौरा कहती हैं कि जब वह अपने ख़ून को अपने चेहरे और शरीर पर लगाती हैं तो वह सिर्फ़ आँखें बंद करती हैं और शुक्रगुज़ार महसूस करती हैं, और अपने अंदर शक्ति का संचार होते हुए महसूस करती हैं.
#ताक़त_देने_वाली_प्रथा
लौरा के लिए ये प्रथा महिलाओं को सशक्त बनाने से भी जुड़ी हुई है.
वह कहती हैं, "समाज में सबसे बड़ा #भेदभाव मासिक धर्म से जुड़ा हुआ है. समाज इसे ख़राब मानता है. सबसे बड़ा शर्म का विषय भी यही है क्योंकि महिलाएं अपने पीरियड के दौरान सबसे ज़्यादा शर्मसार महसूस करती हैं."
साल 2018 में 'वर्ल्ड सीड योर मून डे' इवेंट को शुरू करने वालीं बॉडी-साइकोथेरेपिस्ट, डांसर और लेखक मोरेना कार्डोसो कहती हैं, "महिलाओं के लिए सीडिंग द मून एक बहुत ही सरल और उनके मन को शक्ति देने वाला तरीक़ा है."
बीते साल इस इवेंट के दौरान दो हज़ार लोगों ने अपनी माहवारी के दौरान निकले ख़ून को पेड़ों में डाला था.
महिलाओं का #आध्यात्मिक काम
मोरेना कहती हैं, "इस कार्यक्रम के आयोजन का मकसद ये था कि लोग ये समझें कि माहवारी के दौरान निकलने वाला ख़ून शर्म का विषय नहीं है बल्कि ये #सम्मान और #ताक़त का प्रतीक है."
मोरेना के मुताबिक़, उत्तरी अमरीका (मेक्सिको समेत) और पेरू में ज़मीन पर माहवारी के दौरान निकलने वाले ख़ून को ज़मीन पर फैलाया गया ताकि उसे उर्वर बनाया जा सके.
ब्राज़ील की यूनीकैंप यूनिवर्सिटी में 20 साल से इस मुद्दे पर शोध कर रहीं मानवविज्ञानी डानियेला टोनेली मनिका बताती हैं कि दूसरे समाजों में पीरियड के दौरान निकलने वाले ख़ून को लेकर एक बहुत ही नकारात्मक रुख़ है.
वह बताती हैं, "माहवारी को बेकार का ख़ून बहना माना जाता है और इसे मल और मूत्र की श्रेणी में रखा जाता है जिसे लोगों की नज़रों से दूर बाथरूम में बहाना होता है."
1960 में महिलावादी आंदोलनों ने इस सोच को बदलने की कोशिश की थी और महिलाओं को उनके शरीर के बारे में खुलकर बात करने के लिए प्रोत्साहित किया गया.
इसके बाद कई कलाकारों ने माहवारी से निकले ख़ून के प्रतीक का इस्तेमाल अपने राजनीतिक, पर्यावरणीय, सेक्शुअल और लैंगिक विचारों को सामने रखने में किया.
वक़्त पर पीरियड्स के लिए क्या खाएं क्या न खाएं
हम घरों के मंदिरों में पीरियड्स के दौरान महिलाओं के प्रवेश से रोक कब हटाएँगे?
#विशालकाय_गर्भाशय
इंटरनेट पर इस प्रथा के बारे में जानकारी पाने वालीं रेनेटा रिबेरियो कहती हैं, "सीडिंग माई मून प्रथा ने मुझे पृथ्वी को एक बड़े गर्भाशय के रूप में देखने में मदद की. इस विशाल योनि में भी अंकुरण होता है जिस तरह हमारे गर्भाशय में होता है."
आज भी कई जगह #वर्जित
दुनिया भर में 14 से 24 साल के बीच की उम्र वाली 1500 महिलाओं पर किए गए सर्वेक्षणों में सामने आया है कि कई समाजों में आज भी ये विषय वर्जनाओं में शामिल है.
जॉन्सन एंड जॉन्सन ने ब्राज़ील, भारत, दक्षिण अफ़्रीका, अर्जेंटीना और फिलीपींस में ये अध्ययन किया.
इस अध्ययन में सामने आया कि महिलाएं सेनिटरी नैपकिन ख़रीदने में शर्म महसूस करती हैं. इसके साथ ही पीरियड के दौरान महिलाएं अपनी सीट से उठने में भी शर्म महसूस करती हैं.
फेडरल यूनिवर्सिटी ऑफ़ बहिया से जुड़ीं 71 साल की समाज मानव विज्ञानी सेसिला सार्डेनबर्ग बताती हैं कि उन्हें अपना पहला पीरियड उस दौर में हुआ था जब लोग मुश्किल से ही इस बारे में बात करते थे.
वह कहती हैं कि इस विषय से जुड़ी शर्म को दूर करने के लिए ज़रूरी है कि महिलाएं इस बारे में बात करें और आजकल की महिलाएं अपनी माहवारी को लेकर शर्मसार नहीं दिखती हैं.
पीरियड्स में महिलाओं का दिमाग तेज़ हो जाता है?
वो दिन, जब महिलाएं असहनीय दर्द से गुजरती हैं..
क्या हुए विवाद
लौरा बताती हैं कि इस प्रथा के लिए सभी लोग तैयार नहीं हैं.
अपने अनुभव को साझा करते हुए वह कहती हैं, "इंस्टाग्राम पर सिर्फ 300 लोग मुझे फॉलो करते थे. मैंने इस प्रथा का अनुसरण करने के बाद एक तस्वीर पोस्ट की."
लेकिन चार दिन बाद इंस्टाग्राम पर उनका मज़ाक उड़ाया गया.
ब्राज़ील के एक विवादित कॉमेडियन डेनिलो जेन्टिलि ने इस तस्वीर को अपने 16 मिलियन फॉलोअर्स के साथ साझा किया.
लेकिन उन्होंने लिखा, "पीरियड के दौरान निकलने वाला ख़ून सामान्य है लेकिन उसे अपने चेहरे पर लगाना असामान्य है."
लौरा कहती हैं कि ये किस्सा सिर्फ बताता है कि ये विषय आज भी कितना वर्जित है.
वह कहती हैं, "लोग सोचते हैं कि अगर कोई चीज़ उनके लिए सामान्य नहीं है तो वह चीज़ ज़रूर ही एक ग़लत होगी. वह सोचते हैं कि वह अपने मोबाइल फोनों के पीछे छिपकर किसी को गालियां दे सकते हैं."
"ये मेरे शरीर से निकला तरल पदार्थ है और ये मैं तय करूंगी कि कौन सी चीज असामान्य है और कौन सी चीज़ नहीं. मैं किसी अन्य व्यक्ति की ज़िंदगी में हस्तक्षेप नहीं कर रही हूं."
"लोगों को भद्दी गालियां दिया जाना असामान्य होना चाहिए. मैं उस दिन ये करना बंद करूंगी जब लोग पीरियड के दौरान निकले ख़ून को प्राकृतिक चीज़ की तरह देखना शुरू कर दें."
@बीबीसी

Friday, January 18, 2019

स्त्री क्या है और वह क्या चाहती है ?



इस फोटो को देखकर कामुकता जाग्रत होगी
(जैसी जिसकी सोच है लेख पुरा पडें) उसके आधार पर इस फोटो को देखा जायेगा, आपके नजरिये में बदलाव जरूर आयेगा......................
स्त्री समस्त ब्रम्हाण्ड है
स्त्री से ही ये संसार है। स्त्री सृजन है
स्त्री जननी है। स्त्री सुख है
स्त्री आनंद है। स्री सहयोग है
स्त्री साथी है। स्त्री ज्ञान है
स्त्री अध्यात्म है। स्त्री उजाला है, रोशनी है
स्त्री उम्मीद है। स्त्री पवित्र है
स्त्री संगम है। स्त्री साथ है
स्त्री अहसास है। स्त्री आशा है
स्त्री जीवन है। स्त्री धूप में छाँव है
स्त्री थकान में राहत है। स्त्री प्रेम है
स्त्री पूजा है। स्त्री माँ है
स्त्री बहन है। स्त्री प्रेमिका है
स्त्री पत्नी है। स्त्री त्याग है
स्त्री इज्जत है। स्त्री सम्मान है
स्त्री शान है। स्त्री बलिदान है
फिर क्यों जल रही है स्त्री,
फिर क्यों मारी जा रही है स्त्री,
फिर क्यों घुट रही है स्त्री,
फिर क्यों शर्मसार हो रही है स्त्री,
फिर क्यों सरे बाजार लुट रही है स्त्री,
फिर क्यों नोचि जा रही है स्त्री,
फिर क्यों दहेज़ की सूली चढाई जा रही है स्त्री,
फिर क्यों ????????????😢😢😢😢😢
(इसके मुख्य कुछ कारण है अशिक्षा असामान्यता धर्म दिखावा खोखले रिती रीवाज
संस्कार, नजरिया, सोच, मानसिकता, झूठी शान)
अगर हमारे समाज में इनमे सुधार हो जाये, तो स्त्री खुदबखुद सुरक्षित हो जायेगी !!!!! आखिर वो भी जीना चाहती है।

स्त्री क्या चाहती है 

बेईज्जत करने वाले सब,
कोई इज्जत करने वाला होता 😢
वासना मिटाने वाले सब,
कोई प्रेम करने वाला होता 😢
नोचने वाले सब,
कोई सहजने वाला होता 😢
दुपट्टा उतारने वाले सब,
कोई डालने वाला होता 😢
मारने वाले सब 
कोई बचाने वाला होता 😢
मिटाने वाले सब,
कोई बनाने वाला होता 😢
दुःख देने वाले सब,
कोई मुस्कान देने वाला होता 😢
खुद को समझने वाले सब
कोई स्त्री को भी समझने वाला होता 😢
दहेज माँगनेवाले सब
कोई दुल्हन को ही दहेज़ समझने वाला होता 😢
(काश की ऐसा और ये सब होता, तो कोई संजली, निर्भया, सोनी, आसिफा, गुड़िया, रानी, बिटिया (अनगिनत स्त्रियां) 😭😭😭😭😭 न जलती न मरती सब होती) पर अफसोस, 😭😭😭😭😭😭😭😭😭💔
विनम्र निवेदन है, की अपनी सोच बदले, आखिर कब तक स्त्री ऐसे ही मरती रहेगी, और ये सब होता रहेगा 😭😭😭😭💔😭💔😭💔💔😭
(अपने बच्चों पर ध्यान दें, और उन्हें अच्छे संस्कार दें, उन्हें नैतिकता सिखाये, क्यों की भेड़िये, हैवान हमारे समाज के ही होते हैं , आज इस आधुनिकता के परिवेश में माँ पिता बच्चों को समय नही देते, या न दें पाते हैं , ये जो कुछ भी हमारे समाज में हो रहा हैं, उसका कारण कहीं न कहीं हम सब है, संस्कार है,
कब तक हम किसी सरकार को दोष देते रहेंगे, सरकार हमे संस्कार देने नही आयेगी, सरकार अपराध रोक सकती है, मुल्जिमो को सजा दे सकती है, न की हमारे नजरिये को बदल सकती है, न ही संस्कार दे सकती है, ये हमे खुद ही करना होगा,
अपने परिवार बच्चो को समय दे, अच्छे संस्कार दे, रोज की दिनचर्या जाने, बात करे,)
नारी के पेट से जन्म लिऐ फिर नारी का आपमान किया किस सूअर की पहचान है 
जो सूअर नारी का विरोध करते कभी शबरी माला मन्दिर में, उन सूअरों को एक बार भी याद नही रहता की वो सूअर जिस मॉ से पैदा हुये वो एक नारी है 
नारी ना होती तो तू ना होता हम ना होते ये मन्दिर ना होता ये देश ना होता।
नारी मान सम्मान है आभिमान है।
नारी से कोई ताकतवर नही होता नारी को कभी कमजोर ना समझो, कुत्तो नारी खुद मर्द को जन्म देती है लेकिन देश का आभिमान बनाये रखी है ।।।
।।नारी से पहचान है हमारी तुम्हारी ।
इस देश की ।।