Monday, May 23, 2016

फ्री सेक्स : औरत के लिए सहमति का हक, आदमी के लिए जबर का हक

फ्री सेक्स का सीधा साधारण अर्थ अपने साथी की सहमति असहमति की इज्जत करना भर है...

लेकिन, ये बात वही समझेगा, जो इस किस्म की सहमति को लेने का आदि रहा हो. या इसे सही समझता हो. भारत जहाँ पिता बेटी से शादी की सहमति तक नहीं लेता, वहाँ पति अपनी बीवी की इच्छा का स्वागत करेगा ही, एक ख्वाब के अलावा कुछ नहीं लगता.

मुख्य बात ये है कि आम तौर पर भारत वैवाहिक संबंधो में सेक्स सहमति लेने का आदी रहा ही नहीं. विवाह संबंधो में सेक्स को भी पति का जायज हक बना दिया गया है.

एक वीडियो देखा, उसमें दिखा रहे हैं कि लड़की मायके वालों वालो को बता रही कि उसका पति उसकी सहमति नहीं लेता. और घर वाले इस मुद्दे पर गंभीर होने की बजाय हँस रहे होते हैं. मामा, ताऊ, मौसा सब कहते हैं कि यह सब विवाह के रोमांस का हिस्सा भर है.

ये मामूली बात नहीं. एक गंभीर बात है. समझ नहीं आता कि विवाह से पूर्व या विवाह के बाद भी घर की औरतों को घूर देने वाले बाहरी तत्वो से लड़ जाने वाले पिता चाचा, मौसा, मामा, जाने कैसे वैवाहिक बलात्कार पर संगीन चुप्पी साध लेते हैं.

इस कंडीशनिंग का ही परिणाम है कि फ्री सेक्स की साधारण सी बात पर भी इतना बवाल हो रहा है. फ्री मीन्स सहमति लेना. लेकिन शायद कूढ मगज समाज के वैवाहिक बलात्कार में इससे बाधा पड़ती हो...

फ्री मतलब सहमति‬, लेकिन इसे तोड़ा-मरोड़ा जा रहा. क्योंकि औरत को जिस दिन सेक्स में सहमति का हक पता चल जायेगा, उसी दिन उसी पल जबर संबंध बनाने के इनके फ्रीडम पर रोक लग जायेगी. इसीलिये जैसे ही औरत फ्री सेक्स (बिना दबाव के, सहमति से) की बात करती, वैसे ही औरत को सेक्स स्लेव्स बनाये रखने की इनकी साजिश और तेज हो जाती है.

फ्री को इसीलिये स्वछन्द संबंध बताकर बदनाम किया जा रहा. ताकि, खुद औरत ही इस मुहिम के खिलाफ़ हो जाये. सच कहूँ तो औरत की आजादी के सवाल पर अक्सर औरत को ही औरत से लड़ा देने की ये बहुत पुरानी चाल है. जो समझ चुकी है, वो सतर्क है. जो नहीं समझ पायी, वो अभी भी इनके बहकावे में आकर अनंत शोषण का शिकार बन जाती है. क्योकि, आपकी फ्रीडम से इनकी स्वछन्दता पर रोक लगाती है...

आपके फ्रीडम मतलब आपकी सहमति का हक, उनके फ्रीडम का मतलब उनके जबर का हक ..

खुद सोचे इसका अर्थ क्या है ?

वैवाहिक बलत्कार ! बलत्कार तो बलत्कार ही होता है 😢

जिस देश में कन्या से विवाह की अनुमति नहीं लेने की परंपरा हो, वहाँ पति से यह अपेक्षा रखना कि वह यौन की सहमति पत्नी से लेगा, एक मजाक के सिवा कुछ भी नहीं लगता. शायद दुर्भाग्यपूर्ण सच को मेनका गांधी भी स्वीकार करती रही होंगी, इसीलिये कुछ दिनो पहले उन्होने यह कहा था कि तमाम सान्स्कृतिक मूल्यो और सामाजिक बाध्यता की वजह से इस देश में वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में रखना संभव नहीं है. इस बात की जाने माने समाजशास्त्रियों ने तीखी आलोचना की थी. लेकिन यह आधा आबादी का पुरजोर विरोध ही था, जिसने मेनका गांधी और खुद सरकार को इस सन्दर्भ में यू टर्न लेने के लिये विवश कर दिया. इस मसले से अनेक सवाल पैदा होते हैं. क्या वाकई यह आँकड़ा इतना डरावना है कि अब कानून बनाने की नौबत आ गयी है? क्या वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक बना देने से परिवार नामक संस्था टूटन की शिकार नहीं होगी? क्या दहेज एक्ट की तरह इस एक्ट का दुरुपयोग नहीं होगा? और इन सबसे बड़ा सवाल कि परिवार, घर और विवाह को बचाने के नाम पर इस भयावह हकीकत से मुकर जाना एक गंभीर असंवेदनशीलता नहीं होगी?

वैवाहिक-बलात्कार की व्याख्या से पूर्व यह समझना अतिआवश्यक है कि हमारे समाज में विवाह क्या है? विवाह हमारी संस्कृति मे एक संस्कार है. इसे पवित्र संस्था के रूप में बताया जाता है. निस्संदेह इसकी बुनियाद में आपसी प्रेम मौजूद है. जहाँ प्रेम है, वहाँ सहमति अपने आप उपस्थित हो जाता है. लेकिन यह तो हुयी सैद्धांतिक स्थिति. क्या वाकई विवाह की बुनियाद में प्रेम है? क्या वाकई दंपत्ती के बीच आपसी सहमति होती भी है? भारतीय समाज जिसमें कन्या से उसके ही विवाह में उसकी अनुमति लेना पिता आवश्यक नहीं समझता, क्या वाकई में पति सहवास के लिये पत्नी की अनुमति लेता ही होगा?जिस समाज में कन्या पराई अमानत और कन्या दान की चीज मान ली जाती हो, वहाँ पति द्वारा उसके साथ यथेच्छित व्यवहार अपने आप जायज हो जाता होगा. इस सोच ने लड़की के अस्तित्व को जुआ बनाकर रख दिया. आँकङे की बात सुने तो स्थिति भयावह दिखती है. 2013 मे 10000 लोगो पर किये गये यूनाईटेड नेशंस के सर्वे में पाया गया कि उनमे से एक चौथाई लोगो ने कभी ना कभी अपनी पत्नी से रेप किया था. यह सर्वे एशिया पर आधारित था. उनका यह मानना था कि अपनी बीवी से उसकी अनुमति के बिना सहवास करना उनका हक है.नेशनल क्राईम ब्यूरो रिकार्ड्स के अनुसार महिलाओ के खिलाफ हिंसा और वैवाहिक बलात्कार 2013 मे हुए अपराधो में सबसे बड़ा एकल अपराध था. इसके अनुसार रेप के अधिकाश मामले में परिचित ही शामिल रहे. इन परिचितो में पति भी आते हैं. इन आंकड़ो से ये बात साफ़ हो जाती है कि विवाह संस्था की हकीकत क्या है. भारत जहाँ सेक्स एक टैबू है और विवाह एक संस्कार, वहाँ वैवाहिक रेप के आंकङे आंख खोल देते हैं' एक समाज, जहाँ सेक्स पर बोलना पसंद नहीं किया जाता, वहाँ वैवाहिक रेप के ये आंकङे बताते हैं कि लोकलाज के भय से जाने कितने मामले छुपे होंगे.

इतनी भयावह तस्वीर के बावजूद भारत में संस्था की पवित्रता के नाम पर होने वाले रेप को रोकने का कोई कानून नहीं है. विडंबना नहीं तो और क्या है कि इक्कीसवीं सदी में प्रवेश के बावजूद अभी भी हम संस्थागत रूप से कितने पिछङे हुए हैं. अमेरिका समेत यूरोप के अनेक देशो में वैवाहिक बलात्कार को रोकने और दंडित करने के प्रावधान हैं. इस सन्दर्भ में आई पी सी की धारा एक विरोधाभासी पहल करती हुयी दिखायी पड़ती है. आइ पी सी की धारा 375 में रेप की व्याख्या की गयी है और धारा 376 में इस सन्दर्भ में दंड का प्रावधान किया गया है. इसके प्रावधान के अनुसार कोई व्यक्ति अपनी बीवी के साथ सहवास के लिये तब तक किसी भी दशा में अपराधी नहीं है, जब तक कि उसकी आयु सोलह साल से कम ना हो. समझ नहीं आता कि जब भारत में विवाह करने की न्यूनतम वैधानिक आयु 18 वर्ष है, तो' इस धारा को बनाने का औचित्य ही क्या है? इस पूरी समस्या का एक सामाजिक पहलू भी है. यह पहलू कानूनी पहलू से अधिक जटिल है. समस्या ये है कि यदि वैवाहिक बलात्कार को जुर्म की श्रेणी में रख दिया गया, तो क्या परिवार नामक संस्था के टूटन का खतरा पैदा नहीं हो जायेगा? क्या ऐसी दशा में इस एक्ट के दुरूपयोग का खतरा नहीं बढ जायेगा?

ऐसी दशा में इन सम्बंध से पैदा हुए बच्चो का भविश्य अंधकार में नहीं डूब जायेगा? इसीलिये कुछ समाजशास्त्री लोगो का सुझाव है कि इसका समाधान सामाजिक होना चाहिये. समाज एवं परिवार के लोग ऐसे मसलो में संबंधित लोगो पर दबाव बनाये. लेकिन क्या ये दबाव उतना प्रभावी होगा? खासकर उस समाज में जहाँ बेटी अमानत होती है और पति उसका स्वामी. दरअसल इस पूरी समस्या का तार्किक छोर कन्या को दान की चीज मान लेने में निहित है. जब तक ये भावना खत्म नहीं होगी, स्त्री का सम्मान सुनिश्चित नहीं किया जा सकता.

उपरोक्त विश्लेषन से स्पस्ट है कि वैवाहिक बलात्कार एक हकीकत है. एक संस्था को बचाने और उसे बनाये रखने के नाम पर इस त्रासदी को बनाये रखना घोर असंवेदनशीलता होगी. इस सन्दर्भ में साफ़ साफ़ कानूनी पहल की आवश्यकता है. इसके साथ साथ औरतो को पति परमेश्वर की सोच से बाहर निकालने की जरूरत भी है. क्योकि यू एन रिपोर्ट के अनुसारि तीस प्रतिशत औरते ही इसी पति का जायज हक के रूप में उचित समझती हैं. होना ये चाहिये कि ऐसे किसी भी मामले की प्राथमिकी दर्ज होने के बाद ऐसे दंपत्ति की काउंसिलींग हो. उनसे भावुक अपील हो. बीच का रास्ता निकालने और ऐसे पतियों को समझाने की पूरी कोशिश हो. अगर फ़िर भी व्यक्ति में सुधार ना हो तो उसके खिलाफ़ दंडात्मक कार्रवाइ हो. किसी भी सामाजिक संस्था को प्राकृतिक हक छीनने का कोई अधिकार नहीं. किसी सामाजिक संस्था को बचाने के नाम पर किसी की जिन्द्गी नरक बना देना, कोई समाधान नहीं. और संस्था को बचाने का पूरा दारोमदार किसी एक व्यक्ति पर ही क्यों?

Sunday, May 22, 2016

मुक्ति की आकांक्षा

चिड़िया को लाख समझाओ,
कि पिंजरे के बाहर,
धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है।
वहाँ हवा में उसको
अपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी।

यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है
पर पानी के लिए भटकना है,
यहाँ कटोरे में भरा जल गटकना है।
बाहर दाने का टोटा है,
यहाँ चुग्गा मोटा है।
बाहर बहेलिये का डर है,
यहाँ निर्द्वंद कंठ स्वर है।

फिर भी चिड़िया
मुक्ति का गाना गाएगी,
पिंजरे से जितना अंग निकल सकेगा, निकालेगी
हरसूँ जोर लगाएगी,
और पिंजरा टूट जाने या खुल जाने पर,
उड़ जायेगी।

(डॉ. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना)

Thursday, May 19, 2016

राष्‍ट्रीय महिला नीति, 2016 का मसौदा जारी

महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती मेनका गांधी ने परामर्श के लिए राष्‍ट्रीय महिला नीति, 2016 का मसौदा जारी किया

महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती मेनका गांधी ने आज यहां हितधारकों की टिप्‍पणियों और परामर्श के लिए राष्‍ट्रीय महिला नीति, 2016 का मसौदा जारी किया। नई दिल्‍ली में एक प्रेस वार्ता के दौरान नीति का मसौदा जारी करते हुए श्रीमती मेनका गांधी ने कहा कि पन्‍द्रह वर्षों के बाद नीति की समीक्षा की जा रही है और आशा की जाती है कि अगले 15-20 वर्षों के दौरान महिला संबंधी मुद्दों पर सरकार की कार्यवाही को दिशा निर्देश प्राप्‍त होगा। मंत्री महोदय ने कहा कि 2001 की पिछली नीति के बाद अब तक चीजों में बहुत बदलाव आ गया है, खासतौर से महिलाओं की अपने प्रति जागरूकता और जीवन से उनकी आकांक्षाएं उसमें शामिल हो गईं हैं। उन्‍होंने कहा कि इसे ध्‍यान में रखकर नया मसौदा तैयार किया गया है। उन्‍होंने मसौदे पर परामर्श और टिप्‍पणियां देने का आग्रह किया ताकि दस्‍तावेज को अंतिम रूप दिया जा सके।

पृष्‍ठभूमिका :

राष्‍ट्रीय महिला अधिकारिता नीति, 2001 तैयार होने के बाद लगभग डेढ़ दशक बीत चुके हैं। तब से लेकर अब तक विश्‍व प्रौद्योगिकी और सूचना प्रणालियों के विकास से भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था तीव्र विकास के रास्‍ते पर अग्रसर है तथा महिलाओं पर बहुत सकारात्‍मक प्रभाव पड़ रहा है। पिछले कुछ दशकों के दौरान महिलाओं को शक्ति संपन्‍न करने की गतिविधियों में तेजी आई है। महिलाएं पूरे देश की विकास प्रक्रिया में शामिल हैं और लाभों को प्राप्‍त करने में सक्षम हो रही हैं। इन परिवर्तनों के कारण महिलाओं को अधिकार संपन्‍न बनाने के अवसर और संभावनाएं भी बढ़ी हैं। इसके अलावा लैंगिक समानता और महिलाओं के अधिकारिता के संबंध में नई चुनौतियां और समस्‍याएं भी सामने आ रही हैं। इस नीति का लक्ष्‍य है कि महिलाओं का राजनीतिक सशक्तिकरण हो और उनके लिए सामाजिक-आर्थिक वातावरण तैयार हो ताकि वे अपने अधिकारों को प्राप्‍त कर सकें, संशाधनों पर उनका नियंत्रण हो तथा लैंगिक समानता तथा न्‍याय के सिद्धांतों को स्‍थापित किया जा सके।

नीति में ऐसे समाज की अभिकल्‍पना की गई है जहां महिलाएं अपनी क्षमता का भरपूर इस्‍तेमाल कर सकें और जीवन के हर पक्ष में बराबरी कर सकें। नीति का लक्ष्‍य है कि महिलाओं के लिए एक ऐेसा सकारात्‍मक सामाजिक-सां‍स्‍कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक माहौल तैयार हो सके जिसमें महिलाएं अपने मूल अधिकारों को प्राप्‍त कर सकें।

प्राथमिकताएं :

I.खाद्य सुरक्षा एवं पोषण सहित स्‍वास्‍थ्‍य – इसके तहत महिलाओं के प्रजनन अधिकारों पर फोकस किया गया है और परिवार नियोजन योजनाओं के दायरे में पुरुषों को भी रखा गया है। इसके तहत महिलाओं की स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं को हल किया जाएगा और उनके कल्‍याण को ध्‍यान में रखा जाएगा। इसके तहत किशोरावस्‍था के दौरान पोषण, स्‍वच्‍छता, स्‍वास्‍थ्‍य बीमा योजना इत्‍यादि शामिल की गईं हैं।

II.शिक्षा – इसके अंतर्गत किशोरावस्‍था वाली लड़कियों को प्राथमिक-पूर्व शिक्षा पर ध्‍यान दिया गया है तथा प्रयास किया जाएगा कि वे स्‍कूलों में पंजीकरण करा सकें और उनकी शिक्षा की निरंतरता बनी रहे। इसके अंतर्गत लड़कियों के लिए स्‍कूल तक पहुंचना सुगम्‍य बनाया जाएगा और असमानताओं को दूर किया जाएगा।

III.आर्थिक उपाय – इसके तहत महिलाओं के प्रशिक्षण और कौशल विकास के लिए व्‍यवस्‍था की जाएगी। इसके तहत व्‍यापार समझौतों और भूस्‍वामित्‍व के डेटा बेस को महिलाओं के अनुकूल बनाना, श्रम कानूनों और नीतियों की समीक्षा करना और मातृत्व और बच्‍चों की देखभाल संबंधी सेवाओं को ध्‍यान में रखते हुए उचित लाभ प्रदान करना, समान रोजगार अवसर प्रदान करना तथा महिलाओं की तकनीकी आवश्‍यकताओं को पूरा करना शामिल है।

IV.शासन एवं निर्णय करने में महिलाओं की भूमिका – राजनीति, प्रशासन, लोकसेवा और कार्पोरेट में महिलाओं की भागीदारी बढाना।

V.महिलाओं के खिलाफ हिंसा – नियमों और कानूनों के जरिए महिलाओं के खिलाफ हर प्रकार की हिंसा को रोकना, इसके लिए प्रभावशाली नियम बनाना और उनकी समीक्षा करना, बाल लिंग अनुपात को सुधारना, दिशा निर्देशों इत्‍यादि को कड़ाई से लागू करना, मानव तस्‍करी को रोकना इत्‍यादि शामिल हैं।

VI.पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन – जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के नुकसान से होने वाली प्राकृतिक आपदा के समय होने वाले पलायन के दौरान लैंगिक समस्‍याओं को दूर करने को इसमें शामिल किया गया है। ग्रामीण घरों में महिलाओं के लिए पर्यावरण अनुकूल, नवीकरणीय, गैर पारंपरिक ऊर्जा, हरित ऊर्जा संसाधनों को प्रोत्‍साहन देना।

इस नीति के तहत महिलाओं के लिए सुरक्षित साइबर स्‍पेस बनाना, संविधान के प्रावधानों के तहत व्‍यक्तिगत और पारंपरिक नियमों की समीक्षा भी करने का प्रावधान है। वैवाहिक दुष्‍कर्म को अपराध की श्रेणी में रखने की भी समीक्षा की जाएगी ताकि महिलाओं के मानवाधिकारों की सुरक्षा हो सके।

परिचालन रणनीतियां : इसमें निम्‍न बिंदु शामिल हैं-

•महिलाओं की सुरक्षा- वन स्‍टॉप केंद्रों, महिला हेल्‍पलाइन, महिला पुलिस स्‍वयं सेवक, पुलिस बलों में महिलाओं के लिए आरक्षण, मोबाइल फोन में पैनिक बटन के जरिए महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करना, यातायात और आम स्‍थानों पर निगरानी प्रणाली स्‍थापित करना।

•महिलाओं में उद्यमशीलता के संवर्धन के लिए ईको-प्रणाली बनाना – महिला ई-हाट, समर्पित विषय वस्‍तु आधारित प्रदर्शनियों के जरिए महिलाओं में उद्यमशीलता को बढ़ावा देना, महिला उद्यमशीलता के जरिए महिलाओं को सलाह देना तथा आसान और सस्‍ता ऋण उपलब्‍ध कराना।

•सभी हितधारकों का प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण – इसमें जेंडर चैंपियन पहल के जरिए युवाओं, कामगारों, महिला सरपंचों और महिला संबंधी नीति से जुड़े सभी अधिकारियों को शामिल किया गया है।

•कार्यस्‍थलों में महिलाओं को सुविधा – कार्यस्‍थलों को महिलाओं के अनुकूल बनाने, कार्यअवधि को लचीला बनाने, मातृत्‍व अवकाश को बढ़ाने, कार्यस्‍थलों में बच्‍चों के लिए क्रेच का प्रावधान करने के जरिए महिलाओं को सुविधाएं प्रदान की जाएंगी।

उक्‍त दस्‍तावेज मंत्रालय की वेबसाइट http://wcd.nic.in/acts/draft-national-policy-women-2016 पर उपलब्‍ध है।

Monday, May 16, 2016

बहू नही बेटी बनाकर कर ले जा रहे हैं !

विदा होते समय बस एक यही आवाज सुनाई दे रही थी
‪#‎भाई‬ साब आप परेशान ना हो मुक्ति को हम ‪#‎बहू‬ नहीं
बेटी बनाकर ले जा रहे हैं!
धीरे धीरे सुबह हुई और गाडी एक सजे हुए घर क सामने जा रुकी और जोर से आवाज आई!
“जल्दी आओ बहू आ गयी”!!
सजी हुई थाली लिए एक लड़की दरवाजे पर थी!
ये ‪#‎दीदी‬ थी जो स्वागत क लिए दरवाजे पर थी! और पूजा क बाद सबने एक साथ कहा “बहू को कमरे में ले जाओ” मुक्ति को समझ नहीं आया कुछ घंटो पहले तक तो मैं बेटी थी फिर अब कोई बेटी क्यों नही बोल रहा!
बहू के घर से फोन हैं बात करा दो! फ़ोन पर ‪#‎माँ‬ थी “कैसी हो बेटा”
मुक्ति-“ठीक हू माँ- पापा कैसे हैं दीदी कैसी हैं अभी तक
रो रही ह क्या?”
माँ- “सब ठीक हैं तुम्हारा मन लगा?”
मुक्ति-“ हाँ माँ लग गया” माँ से कैसे कहती बिलकुल मन
नहीं लग रहा घर की बहुत याद आ रही हैं फ़ोन रखते हुए माँ ने कहा बेटा देखो बहुत अच्छे लोग हैं बहू नहीं बेटी बनाकर रखेंगे बस तुम कोई गलती मत करना !मुक्ति और उसकी ननद विभा दोनों का जन्मदिन एक ही महीने में आता था!
मुक्ति बहुत खुश थी साथ साथ जन्मदिन मना लेंगे और पहली बार ससुराल में जन्मदिन मनाउंगी!
सुबह होते ही घर से सबका फोन आया मन बहुत खुश था और पति के मुबारकबाद देने से दिन और अच्छा हो गया था!
खैर शाम होते होते सब लोग एक साथ हुए और बस केक कट कर दिया गया और सासु माँ ने एक पचास का नोट दे दिया ! सासु माँ का दिया ये नोट मुक्ति को बहुत
अच्छा लगा ! जन्मदिन न मन पाने का थोडा दुख हुआ पर फिर लगा शायद ससुराल में ऐसे ही जन्मदिन मनता होगा !
अगले हफ्ते विभा दीदी का जन्मदिन आया सुबह से ही
सबके फ़ोन आने शुरू हो गये!
सासु माँ ने कहा मुक्ति आज खाना थोडा अच्छा बनाना विभा का जन्मदिन हैं
“जी माँ जी”
शाम होते ही मोहल्ले भर के लोगो का घर पर खाने क
लिए आगमन हुआ – सबने अच्छे से खाना खाया!
सासु माँ ने विभा को १००० का नोट देते हुए कहा
“बिटिया तुम्हारे कपडे अभी उधार रहे”
मुक्ति इस प्यार को देख कर बस मुस्कुरा ही रही थी की
पड़ोस की काकी ने पूछ लिया “ बहू तुम्हारा जन्मदिन
कब आता हैं”
मुक्ति बड़े प्यार से बोली- “काकी अभी पिछले
हफ्ते ही गया हैं इसलिए हम दोनों ने साथ साथ मना
लिया क्यू विभा दीदी सही कहा ना”
विभा उसकी तरफ देख कर सिर्फ मुस्कुरा दी !
रसोई में खाना बनाते हुए मुक्ति को एक बात आज ही
समझ आई !
“बेटी बनाकर रखेंगे कह देने भर से बहू बेटी नही बन जाती”
और माँ की बात याद आ गई “बस बेटा तुम कोई गलती मत करना”
और आंखे न जाने कब नम हो गयी !!
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Saturday, May 14, 2016

शेरनी

आदमी को औरत की ताक़त का अंदाजा उसी वक़्त लगा लेना चाहिए ...
जब वो उसे लेने पूरी बारात लेकर जाता है और वो शेरनी उधर से अकेली चली आती है...