Tuesday, November 15, 2016

स्त्री एक अपरिचिता !

मैं हर रात ;तुम्हारे कमरे में आने से पहले सिहरती हूँ कि तुम्हारा वही डरावना प्रश्न ;मुझे अपनी सम्पूर्ण दुष्टता से निहारेंगा और पूछेंगा मेरे शरीर से , “ आज नया क्या है ? ”कई युगों से पुरुष के लिए स्त्री सिर्फ भोग्या ही रही मैं जन्मो से ,तुम्हारे लिए सिर्फ शरीर ही बनी रही ..ताकि , मैं तुम्हारे घर के काम कर सकू..ताकि , मैं तुम्हारे बच्चो को जन्म दे सकू ,ताकि , मैं तुम्हारे लिये तुम्हारे घर को संभाल सकू .तुम्हारा घर जो कभी मेरा घर न बन सका,और तुम्हारा कमरा भी ;जो सिर्फ तुम्हारे सम्भोग की अनुभूति के लिए रह गया है जिसमे ,सिर्फ मेरा शरीर ही शामिल होता है ..मैं नहीं ..क्योंकि ;सिर्फ तन को ही जाना है तुमने ;आज तक मेरे मन को नहीं जाना .एक स्त्री का मन , क्या होता है ,तुम जान न सके ..शरीर की अनुभूतियो से आगे बढ़ न सकेमन में होती है एक स्त्री..जो कभी कभी तुम्हारी माँ भी बनती है ,जब वो तुम्हारी रोगी काया की देखभाल करती है ..जो कभी कभी तुम्हारी बहन भी बनती है ,जब वो तुम्हारे कपडे और बर्तन धोती हैजो कभी कभी तुम्हारी बेटी भी बनती है,जब वो तुम्हे प्रेम से खाना परोसती हैऔर तुम्हारी प्रेमिका भी तो बनती है,जब तुम्हारे बारे में वो बिना किसी स्वार्थ के सोचती है ..और वो सबसे प्यारा सा संबन्ध ,हमारी मित्रता का , वो तो तुम भूल ही गए ..तुम याद रख सके तो सिर्फ एक पत्नी का रूप और वो भी सिर्फ शरीर के द्वारा ही ...क्योंकि तुम्हारा सम्भोग तन के आगे किसी और रूप को जान ही नहीं पाता है..और अक्सर न चाहते हुए भी मैं तुम्हे अपना शरीर एक पत्नी के रूप में समर्पित करती हूँ ..लेकिन तुम सिर्फ भोगने के सुख को ढूंढते हो ,और मुझसे एक दासी के रूप में समर्पण चाहते हो ..और तब ही मेरे शरीर का वो पत्नी रूप भी मर जाता है .जीवन की अंतिम गलियों में जब तुम मेरे साथ रहोंगे ,तब भी मैं अपने भीतर की स्त्री के सारे रूपों को तुम्हे समर्पित करुँगी तब तुम्हे उन सारे रूपों की ज्यादा जरुरत होंगी ,क्योंकि तुम मेरे तन को भोगने में असमर्थ होंगे क्योंकि तुम तब तक मेरे सारे रूपों को अपनी इच्छाओ की अग्नि में स्वाहा करके मुझे सिर्फ एक दासी का ही रूप बना चुके होंगे ,लेकिन तुम तब भी मेरे साथ सम्भोग करोंगे ,मेरी इच्छाओ के साथ..मेरी आस्थाओं के साथ..मेरे सपनो के साथ..मेरे जीवन की अंतिम साँसों के साथमैं एक स्त्री ही बनकर जी सकी और स्त्री ही बनकर मर जाउंगी एक स्त्री ....जो तुम्हारे लिए अपरिचित रहीजो तुम्हारे लिए उपेछित रही जो तुम्हारे लिए अबला रही ...पर हाँ , तुम मुझे भले कभी जान न सकेफिर भी ..मैं तुम्हारी ही रही ....एक स्त्री जो हूँ.....

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