
वेश्या का नाम लेना भी जहां सभ्य समाज में अच्छा नहीं माना जाता वहीं आपको जानकर हैरानी होगी कि नवरात्र में मां दुर्गा की प्रतिमा के निर्माण के लिए वेश्यालय की मिट्टी लायी जाती है। इस मिट्टी को मिलाकर देवी की प्रतिमा का निर्माण किया जाता है। इस बात का जिक्र कुछेक फिल्मों में भी किया गया है।र्वपर शायद आपको इसके पीछे की मान्यता और वजह ना पता हो तो ..इसलिए आज हम आपकों इसका उद्देश्य और महत्व बताने जा रहे हैं।
वेश्यालय की मिट्टी प्रयोग करने के पीछे की मान्यता

शारदातिलकम, महामंत्र महार्णव, मंत्रमहोदधि जैसे ग्रंथ और कुछ पारम्परिक मान्यताएं इसकी पुष्टि करते हैं। बांग्ला मान्यताओं के अनुसार गोबर, गोमूत्र, लकड़ी व जूट के ढांचे, धान के छिलके, सिंदूर, विशेष वनस्पतियां, पवित्र नदियों की मिट्टी और जल के साथ निषिद्धो पाली के रज के समावेश से निर्मित शक्ति की प्रतिमा और यंत्रों की विधि पूर्वक उपासना को लौकिक और पारलौकिक उत्थान की ऊर्जा से सराबोर माना गया है।दरअसल ‘निषिद्धो पाली’ वेश्याओं के घर या क्षेत्र को कहा जाता है।

कोलकाता का कुमरटली इलाके में भारत की सर्वाधिक देवी प्रतिमा का निर्माण होता है। वहां निषिद्धो पाली के रज के रूप में सोनागाछी की मिट्टी का इस्तेमाल होता है। सोनागाछी का इलाका कोलकाता में देह व्यापार का गढ़ माना जाता है। तन्त्रशास्त्र में निषिद्धो पाली के रज के सूत्र काम और कामना से जुड़े हैं।
सामाजिक सुधार और सकारात्मक बदलाव का प्रतिक स्वरूप है ये लोकप्रथा

दैवीय प्रतिमा में निषिद्धो पाली की मिट्टी के प्रयोग की परंपरा स्वयं में सामाजिक सुधार के सूत्र भी सहेजे दिखाई देती हैं। यह परंपरा पुरुषों की भूल की सजा भुगतती स्त्री के उत्थान और सम्मान की प्रक्रिया का हिस्सा भी प्रतीत होती है। तंत्र यानी प्राचीन विज्ञान। तन का आनंद या दैहिक सुख तांत्रिय उपासना के मुख्य उद्देश्य हैं। आध्यात्म में कामचक्र को ही कामना का आधार माना जाता है। यदि काम से जुड़े विकारों को दुरुस्त कर लिया जाए और ऊर्जा प्रबंधन ठीक कर लिया जाए तो भौतिक कामनाओं की पूर्ति का मार्ग सहज हो जाता है। आध्यात्म के इन सूत्रों को जानकर व्यक्ति चाहे तो अपनी ऊर्जा कामचक्र पर खर्च कर यौन आनन्द प्राप्त करले, चाहे तो उसी चक्र को सक्रिय कर अपनी समस्त कामनाओं की पूर्ति करलें। ।
No comments:
Post a Comment