Saturday, July 30, 2016

मानो ना मानो! यह सच है..!

[शायद नारियाँ इस बात को सहजता से स्वीकार नहीं करेंगी]

नारी पर दिनोदिन हो रहे अत्याचारो में,
नारी भी किसी ना किसी तरह से बराबर की गुनहगार है।

शायद कुछ नारियाँ इस बात को सहजता से स्वीकार नहीं करेंगी। जानती हूँ कि हर इंसान अपनी गलतियों को नहीं मानकर दूसरों में ही खामियाँ निकालने की कोशिश करता है।

जैसा कि हम देखते हैं ‪#‎भ्रूण_हत्या‬ के मामले किस कदर बढ़ते ही जा रहे हैं।

""इन मामलो में या तो किसी प्रकार की ‪#‎नाजायज़_संतान‬ की भ्रूण हत्या की जाती है, या फिर अनचाहे संतान की भ्रूण हत्या की जाती है।"

इस मामले में महिलाओं की भागीदारी से सब भलीभांति वाकिफ हैं।

""अगर आज की लड़कियाँ ‪#‎नाजायज_सम्बन्ध‬ ना बनाये तो नाजायज संतान की भ्रूण हत्या करने के मामले सामने ही नहीं आयेंगे।""

और अनचाहे संतान के मामलों में भी नारी बराबर की दोषी होती है। क्यूंकि वह एक नारी होते हुए भी यह नहीं चाहती कि उसकी जन्म लेने वाली संतान ‪#‎लड़की‬ पैदा हो।

इस डर से नारी भ्रूण जांच करवाती हैं और लड़की होने का पता लगते ही भ्रूण हत्या करवा देती हैं।

""अगर वो चाहे तो किसी की क्या मजाल कि कोई उसे भ्रूण हत्या के लिए बाध्य कर दे।।""

आजकल रोज ही हम समाज में देखते हैं या खबरों में सुनते हैं या पढ़ते हैं कि बलात्कार की घटनाओ को किस प्रकार अंजाम दिया जाता है।

""अगर इन मामलो की सत्यता देखी जाये तो अधिकतर मामलो में लडकियाँ भी कुछ हद तक बराबर की गुनहगार होती हैं।""

""अगर लडकियाँ ऐसी घटनाओं का विरोध करें या ऐसे गुनाह करने वालों को सबक सिखा दें, तो लोग गुनाह करने से पहले 💯 बार सोचने पर मजबूर हो जायेगें।""

पर ना जाने क्यों ज्यादातर लडकियाँ ऐसे मामलों का विरोध नहीं करती हैं जिससे गुनहगार की हिम्मत बढ़ जाती है और आये दिन ऐसी घटनाएं समाज में घटित होती हैँ।

मैं जानती हूँ कि जो लोग सच्चाई का सामना नहीं कर सकते हैं वोह मेरी इस पोस्ट पर कोई टिप्पणी ( Comments ) भी नहीं करेंगे फिर चाहे वो लड़की, हो या लड़के।

Sunday, July 24, 2016

महिला से संबंधित क़ानूनी अधिकार

जैसे-जैसे समय बदल रहा है कानूनी मामलों में भी महिलाओं को अपनी स्थिति के बारे में जागरुक होना चाहिए.

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हम एक आर्थिक और राजनीतिक शक्ति पुंज के रूप में उभर रहे हैं. हमारे संविधान ने हमें जो अधिकार और अवसर दिए हैं उन्हें भी प्रमुखता मिल रही है. आज महिलाएं भी मेहनत कर रही हैं और अपने करियर को लेकर गंभीर हैं. हांलाकि, मानसिक, शारीरिक और यौन उत्पीड़न, स्त्री द्वेष और लिंग असमानता इनमें से ज्यादातर के लिए जीवन का हिस्सा बन गई हैं. ऐसे में महिलाओं को भी भारतीय कानून द्वारा दिए गए अधिकारों के प्रति जागरुकता होनी चाहिए.

1. समान वेतन का अधिकार- समान पारिश्रमिक अधिनियम के अनुसार, अगर बात वेतन या मजदूरी की हो तो लिंग के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया जा सकता.

2. काम पर हुए उत्पीड़न के खिलाफ अधिकार- काम पर हुए यौन उत्पीड़न अधिनियम के अनुसार आपको यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का पूरा अधिकार है.

3. नाम न छापने का अधिकार- यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को नाम न छापने देने का अधिकार है. अपनी गोपनीयता की रक्षा करने के लिए यौन उत्पीड़न की शिकार हुई महिला अकेले अपना बयान किसी महिला पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में या फिर जिलाधिकारी के सामने दर्ज करा सकती है.

4. घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार- ये अधिनियम मुख्य रूप से पति, पुरुष लिव इन पार्टनर या रिश्तेदारों द्वारा एक पत्नी, एक महिला लिव इन पार्टनर या फिर घर में रह रही किसी भी महिला जैसे मां या बहन पर की गई घरेलू हिंसा से सुरक्षा करने के लिए बनाया गया है. आप या आपकी ओर से कोई भी शिकायत दर्ज करा सकता है.

5. मातृत्व संबंधी लाभ के लिए अधिकार- मातृत्व लाभ कामकाजी महिलाओं के लिए सिर्फ सुविधा नहीं बल्कि ये उनका अधिकार है. मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत एक नई मां के प्रसव के बाद 12 सप्ताह(तीन महीने) तक महिला के वेतन में कोई कटौती नहीं की जाती और वो फिर से काम शुरू कर सकती हैं.

6. कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार- भारत के हर नागरिक का ये कर्तव्य है कि वो एक महिला को उसके मूल अधिकार- 'जीने के अधिकार' का अनुभव करने दें. गर्भाधान और प्रसव से पूर्व पहचान करने की तकनीक(लिंग चयन पर रोक) अधिनियम (PCPNDT) कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार देता है.

7. मुफ्त कानूनी मदद के लिए अधिकार- बलात्कार की शिकार हुई किसी भी महिला को मुफ्त कानूनी मदद पाने का पूरा अधिकार है. स्टेशन हाउस आफिसर(SHO) के लिए ये ज़रूरी है कि वो विधिक सेवा प्राधिकरण(Legal Services Authority) को वकील की व्यवस्था करने के लिए सूचित करे.

8. रात में गिरफ्तार न होने का अधिकार- एक महिला को सूरज डूबने के बाद और सूरज उगने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, किसी खास मामले में एक प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के आदेश पर ही ये संभव है.

9. गरिमा और शालीनता के लिए अधिकार- किसी मामले में अगर आरोपी एक महिला है तो, उसपर की जाने वाली कोई भी चिकित्सा जांच प्रक्रिया किसी महिला द्वारा या किसी दूसरी महिला की उपस्थिति में ही की जानी चाहिए.

10. संपत्ति पर अधिकार- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत नए नियमों के आधार पर पुश्तैनी संपत्ति पर महिला और पुरुष दोनों का बराबर हक है.

#महिला अधिकार#महिलाएं#भारत#यौन शोषण#घरेलू हिंसा

Friday, July 22, 2016

#स्त्री_क्या_है_______?

जब भगवान स्त्री की रचना कर रहे थे तब उन्हें काफी समय लग गया । आज छठा दिन था और स्त्री की रचना पुरी अभी अधुरी थी
इसिलए देवदुत ने पुछा भगवन आप इस में इतना समय क्यों ले रहे हो...
भगवान ने जवाब दिया क्या तुने इसके सारे गुनधर्म (specifications) देखे है, जो इसकी रचना के लिए जरूरीः है।
यह हर प्रकार की परिस्थितियों को संभाल सकती है
यह एकसाथ अपने सभी बच्चों को संभाल सकती है एवं खुश रख सकती है ।
यह अपने प्यार से घुटनों की खरोंच से लेकर टुटे हुये दिल के घाव भी भर सकती है ।
यह सब सिर्फ अपने दो हाथों से कर सकती है
इस में सबसे बड़ा गुनधर्म यह है की बीमार होने पर अपना ख्याल खुद रख सकती है एवं 18 घंटे काम भी कर सकती है।
देवदुत चकीत रह गया और आश्चर्य पुछा भगवान क्या यह सब दो हाथों से कर पाना संभव है ।
भगवान ने कहा यह स्टांडर्ड रचना है
(यह गुनधर्म सभी में है )
देवदुत ने नजदीक जाकर स्त्री को हाथ लगाया और कहा
भगवान यह तो बहुत सोफ्ट है ।
भगवान ने कहा हाँ यह बहुत ही सोफ्ट है मगर इसे बहुत strong बनाया है । इसमें हर परिस्थितियों का संभाल ने की ताकत है
देवदुत ने पुछा क्या यह सोच भी सकती है
भगवान ने कहा यह सोच भी सकती है और मजबूत हो कर मुकाबला भी कर सकती है।
देवदुत ने नजदीक जाकर स्त्री के गालों को हाथ लगाया और बोला
भगवान ये तो गीले है। लगता है इसमें से लिकेज हो रहा है।
भगवान बोले यह लिकेज नहीं है। यह इसके आँसू है।
देवदुत: आँसू किस लिए
भगवान बोले : यह भी ईसकी ताकत है । आँसू इसको फरीयाद करने एवं प्यार जताने एवं अपना अकेलापन दुर करने का तरीका है ।
देवदुत: भगवान आपकी रचना अदभुत है । आपने सबकुछ सोच कर बनाया है
आप महान है
भगवान बोले यह स्त्री रूपी रचना अदभुत है । यही हर पुरुष की ताकत है जो उसे प्रोत्साहित करती है। वह सभी को खुश देखकर खुश रहतीँ है। हर परिस्थिति में हंसती रहती है । उसे जो चाहिए वह लड़ कर भी ले सकती है।
उसके प्यार में कोइ शर्त नहीं है
(Her love is unconditional)
उसका दिल टूट जाता है जब अपने ही उसे धोखा दे देते है । मगर हर परिस्थितियों से समझोता करना भी जानती है।
देवदुत: भगवान आपकी रचना संपूर्ण है।
भगवान बोले ना अभी इसमें एक त्रुटि है
" यह अपना महत्वत्ता भुल जाती है " (" She often forgets what she is worth".)
सभी आदरणीय स्त्रीओँ को समर्पित।
To all respectful women

Tuesday, July 19, 2016

मातृत्व पर बंधन स्वीकार्य नहीँ...

विवाह और मातृत्व जीवन के दो अलग पक्ष हैं. दोनों का अलग-अलग स्वतंत्र अस्तित्व होताहै.
शादी बेशक ज़रूरी है लेकिन इसकी अनिवार्यता जरुरी नहीं और इसे माँ बनने से जोड़ना तो सरासर ग़लत है. एक अविवाहिता स्त्री के मन में भी मातृत्व का उतना ही उबाल होता है जितना कि एक शादीशुदा के मन में. दूसरों के बच्चों को देखकर वह भी लालायित होती है. उन्हें छूने,प्यार करने, गोद में भरने और छाती से लगाने के लिये वो भी उतनी ही व्याकुल होती है.उसका कलेजा भी हूकता है जब किसी और की गोद में किसी बच्चे को देखती है.उस समय वह एक उछाह से भर उठती है कि काश........।
इसपर कोई भी दलील दे सकता है कि "इतना ही मन है तो शादी कर लो".परंतु शादी और मातृत्व में क्या संबंध है आखिर ? शादी एक सामाजिक बंधन है मगर मातृत्व तो स्त्री का नैसर्गिक गुण है.
तो क्या नैसर्गिक गुण पर सामाजिक बंधन जो पूरी तरह यहाँ हावी है सही है ? मैं ये नही कहती कि शादी मत करो या शादी करना ग़लत है लेकिन, 
किन्हीं विशेष परिस्थितियों में यदि स्त्री ताउम्र अविवाहिता रहना चाहे, या रहती है तो उसे उसके मातृत्व से वंचित करना क्यों नहीं यहाँ अमानवीय है ? उसके अंदर की ममता का गला घोंटकर उसे तड़पाना निकृष्ट कार्य क्यों नहीं है ?
स्त्री और उसके मातृत्व का सवाल हर दायरे से परे होता है. मातृत्व किसी भी स्त्री का ऐसा विचरण-क्षेत्र है जहाँ उसे निर्बाध रुप से उन्मुक्त और स्वतंत्र होने का अधिकार मिलना ही चाहिए क्योंकि यही उसके जीवन का ऐसा पक्ष है जहाँ कोई पुरुष चाहकर भी सेंध नहीँ लगा सकता. प्राकृतिक रूप से एक स्त्री के हृदय में उठने वाली मातृत्व की तरंगों पर पूर्णरुपेण उसी का अधिकार होता है तो समाज में भी उसे ये अधिकार क्यों नहीं ?
लेकिन बात फिर से यहीं आकर अटक जाती है कि यहाँ माँ बनने के लिये शादीशुदा होना नितांत अनिवार्य है. शादी के सर्टिफिकेट के बगैर माँ बनने की इजाज़त नहीँ है. यदि ऐसा हो गया तो नाक कटने की बात हो जाती है. शादी चरित्र का सर्टिफिकेट है. इसके बगैर यदि यहाँ किसी स्त्री में मातृत्व उबाल मारने लगे तो ये विनाश का संकेत है. इसलिए उस अवस्था में उसे खुद की ममतामयी भावनाओं को विष पिलाकर निष्प्राण करना पड़ता है.
कहने को हम समाज में रहते हैं. मगर समाज के दायरे में आने वाले हर प्राणी के बारे में समाज की जिम्मेदारी निभाते हैं ? अविवाहिता स्त्रियों के लिये भी समाज का उतना ही दायित्व क्यों नहीं है जितना कि विवाहिताओँ के लिये. 
अविवाहिताओँ के साथ ये सौतेलापन क्यों ? 
अंत में यही कहूंगीं कि मातृत्व की कामना हर स्त्री को होती है. चाहे स्त्री शादीशुदा हो, विधवा हो या फ़िर अविवाहिता. एक उम्र के बाद उसमें स्वतः ही मातृत्व का तूफान आंदोलित होने लगता है. विशेष परिस्थितियों में विशेष प्रकार के अपवाद मान्य होते हैं, यही सामान्य नियम है तो फ़िर विशेष परिस्थितियों में जिन महिलाओं की ताउम्र शादियां न हो सके उन्हें संतान-सुख से वंचित नहीँ किया जाना चाहिये. उन्हें खुद के बच्चे पैदा करने या गोद लेने के लिये स्वतंत्र किया जाना चाहिये. मातृत्व पर कोई बंधन स्वीकार्य नहीँ है. यह प्रकृति-प्रदत्त उपहार है.सभी को इसका सम्मान करना ही होगा.इसके बिना न्याय नहीं है.

Sunday, July 17, 2016

कन्यादान हुआ जब पूरा, आया समय विदाई का ।।

हँसी ख़ुशी सब काम हुआ था, सारी रस्म अदाई का ।
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बेटी के उस कातर स्वर ने, बाबुल को झकझोर दिया।।
पूछ रही थी पापा तुमने, क्या सचमुच में छोड़ दिया।।
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अपने आँगन की फुलवारी, मुझको सदा कहा तुमने।।
मेरे रोने को पल भर भी, बिल्कुल नहीं सहा तुमने।।
क्या इस आँगन के कोने में, मेरा कुछ स्थान नहीं।।
अब मेरे रोने का पापा, तुमको बिल्कुल ध्यान नहीं।।
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देखो अन्तिम बार देहरी, लोग मुझे पुजवाते हैं।।
आकर के पापा क्यों इनको, आप नहीं धमकाते हैं।।
नहीं रोकते चाचा ताऊ, भैया से भी आस नहीं।।
ऐसी भी क्या निष्ठुरता है, कोई आता पास नहीं।।
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बेटी की बातों को सुन के, पिता नहीं रह सका खड़ा।।
उमड़ पड़े आँखों से आँसू, बदहवास सा दौड़ पड़ा।।
कातर बछिया सी वह बेटी, लिपट पिता से रोती थी।।
जैसे यादों के अक्षर वह, अश्रु बिंदु से धोती थी।।
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माँ को लगा गोद से कोई, मानो सब कुछ छीन चला।।
फूल सभी घर की फुलवारी से कोई ज्यों बीन चला।।
छोटा भाई भी कोने में, बैठा बैठा सुबक रहा।।
उसको कौन करेगा चुप अब, वह कोने में दुबक रहा।।
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बेटी के जाने पर घर ने, जाने क्या क्या खोया है।।
कभी न रोने वाला बाप, फूट फूट कर रोया है....

Saturday, July 16, 2016

स्त्री की पहचान या फिर कुछ और ??

#विवाह और #प्रेम

विवाह को अनैतिक कहा मैंने, विवाह करने को नहीं। जो लोग प्रेम करेंगे, वे भी साथ रहना चाहेंगे। इसलिए प्रेम से जो विवाह निकलेगा, वह अनैतिक नहीं रह जाएगा। लेकिन हम उल्टा काम कर रहे हैं। हम विवाह से प्रेम निकालने की कोशिश कर रहे हैं, जो कि नहीं हो सकता। विवाह तो एक बंधन है और प्रेम एक मुक्ति है। लेकिन जिनके जीवन में प्रेम आया है, वे भी साथ जीना चाहें, स्वाभाविक है। लेकिन साथ जीना उनके प्रेम की छाया ही हो। जिस दिन विवाह की संस्था नहीं होगी, उस दिन स्त्री और पुरुष साथ नहीं रहेंगे, ऐसा मैं नहीं कह रहा हूं। सच तो मैं ऐसा कह रहा हूं कि उस दिन ही वे ठीक से साथ रह सकेंगे। अभी साथ दिखाई पड़ते हैं, साथ रहते नहीं। साथ होना ही संग होना नहीं है। पास-पास होना ही निकट होना नहीं है। जुड़े होना ही एक होना नहीं है। विवाह की संस्था को मैं अनैतिक कह रहा हूं। और विवाह की संस्था चाहेगी कि प्रेम दुनिया में न बचे। कोई भी संस्था सहज उदभावनाओं के विपरीत होती है। क्योंकि तब संस्थाएं नहीं टिक सकतीं। दो व्यक्ति जब प्रेम करते हैं, तब वह प्रेम अनूठा ही होता है। वैसा प्रेम किन्हीं दो व्यक्तियों ने कहीं किया होता है। लेकिन दो व्यक्ति जब विवाह करते हैं तब वह अनूठा नहीं होता। तब वैसा विवाह करोड़ों लोगों ने किया है। विवाह एक पुनरुक्ति है, प्रेम एक मौलिक घटना है।

Friday, July 8, 2016

'ख़ामोशी बलात्कार की माँ है'

बलात्कार के लिए ज़रूरी है कि एक तो बलात्कारी जिस्मानी तौर पर उससे ज़्यादा ताकतवर हो जिसका वो बलात्कार कर रहा है. वो मन में किसी वजह से या बिलावजह नफ़रत पालना जानता हो और मौका मिलने पर बदला लेने या कमज़ोर पर अपनी ताकत दिखाने की क्षमता रखता हो.
ये तीन-चार मोटी-मोटी बातें हर जीव-जंतु, पशु-पक्षी में अलग-अलग तो पाईं जाती हैं, लेकिन मनुष्य अकेला जीव है जिसमें ये सब क्षमताएँ एक साथ मौजूद हैं.
यौन उत्पीड़न की सबसे बड़ी वजह खुले में शौच?
इसीलिए मनुष्य ही अकेला ऐसा पशु है जो अकेले या ग्रुप में बलात्कार कर सकता है. यही वजह है कि जंगल के समाज में एंटी रेप क़ानून लागू करने की ज़रूरत नहीं पड़ती.
ऐसा क़ानून सिर्फ़ उस समाज में ही बनाया जाता है जो ख़ुद को सभ्य समझता है.
क्या हर मर्द बलात्कारी हो सकता है? ये तो मैं नहीं जानता, लेकिन ज़िंदगी में बहुत से मर्द किसी कमज़ोर के बारे में कम से कम एक दफा ज़रूर सोचते हैं कि अगर बस चले तो इसकी हत्या या बलात्कार कर दूँ.
मुझे मालूम है कि आप कहेंगे कि नहीं ऐसा नहीं है, पाँचों अंगुलियाँ एक सी थोड़ी ही होती हैं, वगैरह वगैरह. चलिए, मान लेते हैं कि पाँचों उंगलियाँ एक सी नहीं होतीं.

मर्दों की सोच

मगर दिल पर हाथ रखकर ये तो बताइए कि इस दुनिया के कितने मर्द हैं जो बलात्कार को हत्या बराबर समझते हैं?
कितने फीसदी मर्दों को बलात्कार पीड़ित से वाकई हमदर्दी होती है और कितने प्रतिशत ये समझते हैं कि हो न हो इसमें बलात्कार होने वाली या वाले का भी क़सूर होगा?
अरे तो क्या ज़रूरत पड़ी थी, इतना बन-ठन के निकलने की, नाज़-नखरे दिखाने की और मर्दों के जज़्बात उभारने की. अरे ये तो है ही ऐसी... चलो दफ़ा करो. जवानी के जोश में ऐसा हो ही जाता है...ये लो तीन लाख रुपए और भूल जाओ.
ये कौन सी नई बात है, ये मीडिया वाले भी ना...भई, इसे भी तो चाहिए था कि पैदा करने वाले माँ-बाप से पूछ लेती कि फलां से शादी कर लूँ कि नहीं. तौबा-तौबा अपनी जात-बिरादरी के बाहर वालों से मुहब्बत कर बैठी, तभी तो इसके साथ ये हुआ.
होना क्या है?

साहब आप भले एफ़आईआर लिखवा लें, मगर होना-हवाना कद्दू भी नहीं है. बड़े साहब, एक बात कहूँ आप भी अपनी बच्चियों पर थोड़ा कंट्रोल रखें, ज़माना ठीक नहीं, लड़के बहुत तेज़ चल रहे हैं.
अच्छा, ये बलात्कार सिर्फ औरत का ही क्यों होता है? औरत के भी तो जज़्बात होते होंगे और ये जज़्बात बेकाबू भी होते होंगे.
तो फिर ऐसा क्यों नहीं होता कि तीन-चार औरतें एक बस में अकेले रह जाने वाले किसी ख़ूबसूरत मर्द को पकड़कर उसका बलात्कार कर डालें और फिर छुरी से उसकी गर्दन और बाक़ी ज़रूरी चीज़ें भी काट डालें.
या फिर अगर किसी का मर्द किसी और के साथ चोरी-छुपे पकड़ा जाए तो वो घरवाली या गर्लफ़्रेंड चार-पाँच सखियों-सहेलियों के साथ इस मरदुए को पकड़कर आम के दरख़्त से लटका दें.
या कोई लड़की अपने बेवफ़ा मंगेतर को कोर्ट कचहरी के बाहर अपनी माँ-बहनों, खालाओं और फूफिओं के साथ घेरे और उसका सिर ईंटें मार-मारकर कुचल डाले और पुलिस करीब खड़ी तमाशा देखती रहे.

बलात्कार ख़त्म हो सकता है

हाँ, बलात्कार ख़त्म हो सकता है, अगर हर मर्द ज़िंदगी में एक बार, बस एक बार सोचे कि भगवान ने उसे मर्द की बजाय औरत बनाया होता तो क्या होता? मगर मर्द काहे को ये सोचे?
यह तो बिल्कुल ऐसा ही है कि कोई लकड़बग्घा ये सोचे कि अगर वो हिरण होता तो उस पर क्या बीतती.
हमारी तो तालीम ही घर से शुरू होती है. औरत पैरों की जूती है. औरत को ज़्यादा सिर पर मत चढ़ाओ, औरत कमअक़्ल है, कभी भूल के भी मशविरा न लेना, औरत की हिफ़ाज़त करो, उसके आगे चलो, न ताज मांगे न तख़्त, औरत मांगे....
हमारे 80 फीसदी लतीफे और 100 फीसदी गालियाँ औरत के गिर्द घूमती हैं.
मान जाए तो देवी, न माने तो छिनाल. क्या सारा समाज बचपन से बुढ़ापे तक इसी घुट्टी पर नहीं पलता और फिर यही समाज राज्य, पंचायत और पुलिस में बदल जाता है. ऐसे में कौन सा क़ानून क्या उखाड़ लेगा?
अब एक ही रास्ता है, चीखो! कुछ मत छिपाओ, सब कुछ बता दो. यही तरीका है इज़्ज़त के मानी बदलने का. ख़ामोशी रेप की माँ है.

Monday, July 4, 2016

तेजाब खोखला नहीं कर पाया मेरे हौसलों को

लड़कियों के चेहरे पर तेजाब डालने वालों के लिए ये कविता एक करारा जवाब है।जो लोग ऐसी कुत्सित मानसिकता रखते हैं ,उन्हें ये पता होना चाहिए कि वो किसी की बाहरी सुंदरता को नुकसान पहुंचा सकते हैं लेकिन आंतरिक सुंदरता को नहीं ।
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मैंने ठुकराया था तुम्हारा प्रस्ताव ,
पर तुमने तो ठुकरा दिया मेरा वजूद ही
कहते थे तुम कि प्यार करते हो मुझसे ,
पर थी मैं तुम्हारे लिए हार -जीत का एक मोहरा।
बस इक मोहरा , और कुछ नहीं हार - जीत , हाँ , हार -जीत !
हासिल करना चाहते थे मुझे,
तभी तो डाल दिया था तुमने मेरे ऊपर तेजाब
तेज़ाब जिसने मेरे शरीर को अंदर तक खोखला कर दिया था,
पर खोखला नहीं कर पाया था मेरे हौसलों को
जिन्दा अब भी हैं मेरे इरादे तुम्हारा सामना करने के लिए
तेजाब तुम्हारी बहादुरी का नहीं कमजोरी का सबूत था
बर्दाश्त नहीं कर पाये थे तुम इक इंकार
पिघला दिया था तुमने मेरा चेहरा पर
मेरी काबिलियत पर कौन सा तेजाब डालोगे?
क्या पिघला पाओगे मेरे इरादों को?
अब भी जलती हूँ मैं भीतर - भीतर सुलगती हूँ मैं
प्रेम ! सच कहना तुमने किया था मुझसे कभी प्रेम ?
क्या प्रेम में हो सकती हैं घृणा ?
तुम में तो इंतज़ार करने की भी हिम्मत नहीं थी,
तुम तो छीनना चाहते थे मेरे होने का अर्थ भी ,
पर कैसे छीन पाओगे मेरी उम्मीदें?
झुलस गई हैं मेरी चमड़ी पर नहीं झुलसा हैं मेरा मन
तेजाब नहीं छीन सकता हैं मेरे सपने अब भी बुलंद हैं मेरे हौंसले।

Saturday, July 2, 2016

दहेज़ की भेंट चढ़ी हूँ मैं !!

एक कवि नदी के किनारे खड़ा था !
तभी वहाँ से एक लड़की का शव
नदी में तैरता हुआ जा रहा था।
तो तभी कवि ने उस शव से पूछा ----

कौन हो तुम ओ सुकुमारी,बह रही नदियां के जल में ?

कोई तो होगा तेरा अपना,मानव निर्मित इस भू-तल मे !

किस घर की तुम बेटी हो,किस क्यारी की कली हो तुम

किसने तुमको छला है बोलो, क्यों दुनिया छोड़ चली हो तुम ?
किसके नाम की मेंहदी बोलो, हांथो पर रची है तेरे ?

बोलो किसके नाम की बिंदिया, मांथे पर लगी है तेरे ?

लगती हो तुम राजकुमारी, या देव लोक से आई हो ?

उपमा रहित ये रूप तुम्हारा, ये रूप कहाँ से लायी हो?

""दूसरा दृश्य----""

कवि की बाते सुनकर,, लड़की की आत्मा बोलती है..

कवी राज मुझ को क्षमा करो, गरीब पिता की बेटी हुँ !

इसलिये मृत मीन की भांती, जल धारा पर लेटी हुँ !

रूप रंग और सुन्दरता ही, मेरी पहचान बताते है !

कंगन, चूड़ी, बिंदी, मेंहदी, सुहागन मुझे बनाते है !

पित के सुख को सुख समझा, पित के दुख में दुखी थी मैं !
जीवन के इस तन्हा पथ पर, पति के संग चली थी मैं !

पति को मेने दीपक समझा, उसकी लौ में जली थी मैं !

माता-पिता का साथ छोड, उसके रंग में ढली थी मैं !

पर वो निकला सौदागर, लगा दिया मेरा भी मोल !

दौलत और दहेज़ की खातिर, पिला दिया जल में विष घोल !
दुनिया रुपी इस उपवन में, छोटी सी एक कली थी मैं !

जिस को माली समझा, उसी के द्वारा छली थी मैं !

इश्वर से अब न्याय मांगने, शव शैय्या पर पड़ी हूँ मैं !

दहेज़ की लोभी इस संसार मैं, दहेज़ की भेंट छड़ी हूँ में !

दहेज़ की भेंट चढ़ी हूँ मैं !!