लड़कियों के चेहरे पर तेजाब डालने वालों के लिए ये कविता एक करारा जवाब है।जो लोग ऐसी कुत्सित मानसिकता रखते हैं ,उन्हें ये पता होना चाहिए कि वो किसी की बाहरी सुंदरता को नुकसान पहुंचा सकते हैं लेकिन आंतरिक सुंदरता को नहीं ।
________________________________________
मैंने ठुकराया था तुम्हारा प्रस्ताव ,
पर तुमने तो ठुकरा दिया मेरा वजूद ही
कहते थे तुम कि प्यार करते हो मुझसे ,
पर थी मैं तुम्हारे लिए हार -जीत का एक मोहरा।
बस इक मोहरा , और कुछ नहीं हार - जीत , हाँ , हार -जीत !
हासिल करना चाहते थे मुझे,
तभी तो डाल दिया था तुमने मेरे ऊपर तेजाब
तेज़ाब जिसने मेरे शरीर को अंदर तक खोखला कर दिया था,
पर खोखला नहीं कर पाया था मेरे हौसलों को
जिन्दा अब भी हैं मेरे इरादे तुम्हारा सामना करने के लिए
तेजाब तुम्हारी बहादुरी का नहीं कमजोरी का सबूत था
बर्दाश्त नहीं कर पाये थे तुम इक इंकार
पिघला दिया था तुमने मेरा चेहरा पर
मेरी काबिलियत पर कौन सा तेजाब डालोगे?
क्या पिघला पाओगे मेरे इरादों को?
अब भी जलती हूँ मैं भीतर - भीतर सुलगती हूँ मैं
प्रेम ! सच कहना तुमने किया था मुझसे कभी प्रेम ?
क्या प्रेम में हो सकती हैं घृणा ?
तुम में तो इंतज़ार करने की भी हिम्मत नहीं थी,
तुम तो छीनना चाहते थे मेरे होने का अर्थ भी ,
पर कैसे छीन पाओगे मेरी उम्मीदें?
झुलस गई हैं मेरी चमड़ी पर नहीं झुलसा हैं मेरा मन
तेजाब नहीं छीन सकता हैं मेरे सपने अब भी बुलंद हैं मेरे हौंसले।
No comments:
Post a Comment