Thursday, December 1, 2016

सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2016

प्रस्तावना
केन्द्रीय कैबिनेट ने सरोगेसी नियमन विधेयक 2016 को मंजूरी दे दी है। इसके तहत भारतीय नागरिकों को सरोगेसी का अधिकार होगा, लेकिन यह अधिकार एनआरआई और ओसीआई होल्डर के पास नहीं होगा। सरोगेसी विधेयक इसलिए लाया गया है, क्योंकि भारत लोगों के सरोगेसी हब बन गया था और अनैतिक सरोगेसी की घटनाएं सामने आने लगी थी ।
सरोगेसी बिल के प्रमुख प्रावधान

केंद्र में नेशनल सरोगेसी बोर्ड, राज्य और केंद्र शासित प्रदेश स्तर तक स्टेट सरोगेसी बोर्ड का गठन किया जाएगा। बिल कमर्शियल सरोगेसी पर रोक लगाने और निःसंतान दंपती को नीतिपरक सरोगेसी की इजाजत देने के लिए लाया गया है।
सिंगल पैरंट्स, होमोसेक्सुअल कपल, लिव-इन में रहने वालों को सरोगेसी की इजाजत नहीं दी जाएगी।सरोगेसी के लिए दंपति को कम से कम दो साल शादीशुदा होना जरूरी है।
सरकार इस बिल के जरिए देश में सरोगेसी को रेग्यूलेट करने के लिए एक नया कानूनी ढांचा तैयार करना चाहती है। ड्राफ्ट बिल में एक बोर्ड के गठन का प्रस्ताव है जो क्लिनिक को रेग्यूलेट और जांच करेगी। ड्राफ्ट बिल में कमर्शियल सरोगेसी पर रोक लगाने का प्रावधान शामिल किया गया है। सिर्फ उन्हीं मामलों में सरोगेसी को मंजूरी दी जाएगी, जिसमें इनफर्टिलिटी को साबित किया जाएगा।
यह प्रस्तावित कानून जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत पर लागू होगा।
केवल रिश्तेदार महिला ही सरोगेसी के जरिए मां बन सकेगी|
मानव भ्रूण और युग्मकों की खरीद-बिक्री सहित वाणिज्यिक सरोगेसी पर निषेध होगा, लेकिन कुछ खास उद्देश्यों के लिए निश्चित शर्तों के साथ जरूरतमंद बांझ दंपतियों के लिए नैतिक सरोगेसी की अनुमति दी जाएगी।
सरोगेट माता और सरोगेसी से उत्पन्न बच्चों के अधिकार भी सुरक्षित होंगे।
सरोगेसी क्या है?
सरोगेसी एक महिला और एक दंपति के बीच का एक एग्रीमेंट है, जो अपना खुद का बच्चा चाहता है। सामान्य शब्दों में सरोगेसी का मतलब है कि बच्चे के जन्म तक एक महिला की ‘किराए की कोख’। आमतौर पर सरोगेसी की मदद तब ली जाती है जब किसी दंपति को बच्चे को जन्म् देने में कठिनाई आ रही हो। बार-बार गर्भपत हो रहा हो या फिर बार-बार आईवीएफ तकनीक फेल हो रही है, जो महिला किसी और दंपति के बच्चे को अपनी कोख से जन्मी देने को तैयार हो जाती है उसे ‘सरोगेट मदर’ कहा जाता है।

सरोगेसी कुछ विशेष एजेंसी द्वारा उपलब्ध करवाई जाती है। इन एजेंजिस को आर्ट क्लीनिक कहा जाता है, जो कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की गाइडलाइंस फॉलो करती है। सरोगेसी का एक एग्रीमेंट बनवाया जाता है, जिसे दो अजनबियों से हस्ताक्षर करवाएं जाते हैं जो कभी नहीं मिले। सरोगेट परिवार का सदस्य या दोस्त भी हो सकता है।
सरोगेसी के लिए भारत पॉपुलर क्यों है ?
भारत में किराए की कोख लेने का खर्चा यानी सरोगेसी का खर्चा अन्य देशों से कई गुना कम है और साथ ही भारत में ऐसी बहुत सी महिलाएं उपलब्ध हैं, जो सरोगेट मदर बनने को आसानी से तैयार हो जाती हैं। गर्भवती होने से लेकर डिलीवरी तक महिलाओं की अच्छी तरह से देखभाल तो होती ही है साथ ही उन्हें अच्छी खासी रकम भी दी जाती है।

लॉ कमीशन के मुताबिक सरोगेसी को लेकर विदेशी दंपत्तियों के लिए भारत एक पसंदीदा देश बन चुका है। डिपार्टमेन्ट ऑफ हेल्थ रिसर्च को भेजे गए दो स्वतंत्र अध्ययनों के मुताबिक हर साल भारत में 2000 विदेशी बच्चों का जन्म होता है, जिनकी सरोगेट मां भारतीय होती हैं। देश भर में करीब 3,000 क्लीनिक विदेशी सरोगेसी सर्विस मुहैया करा रहे हैं।
विधेयक के लाभ
विधेयक ऐसे समय में आया है जब इस विषय के लिए एक कानून की बड़ी जरूरत है|यह विधेयक सरोगेसी के व्यावसायीकरण को रोकने पर केंद्रित है|यह सरोगेसी का प्रभावी विनियमन, वाणिज्यिक सरोगेसी की रोकथाम और जरूरतमंद बांझ दंपतियों के लिए नैतिक सरोगेसी की अनुमति सुनिश्चित करेगा।
आलोचना

विधेयक एक महिला की प्रजनन अधिकारों पर सवाल उठता है।बिल एकल माता पिता ,समलैंगिकों को सरोगेट के माध्यम से पितृत्व से बंचित करता है |
बांझपन सरोगेसी शुरू करने के लिए अनिवार्य नहीं हो सकता है।यह नागरिकों के लिए विकल्प उपलब्ध की स्वतंत्रता का उल्लंघन हैं |
बिल देश और इसके साथ जुड़े लोगों में संपन्न चिकित्सा पर्यटन पर असर करने के लिए बाध्य है।
विधेयक कई अनुत्तरित सवाल छोड़ देती हैं जैसे किराए के माँ को स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करना आदि |

Monday, November 28, 2016

'मैं हूं सोनम गुप्ता !'

सुनिए और पढ़िये प्यारे देशवासियों के नाम देश की बेटी सोनम गुप्ता का ये पत्र और खुद तय कीजिए सोनम गुप्ता कहीं आपके पड़ोस या आपके घर में ही तो नहीं ?

सीधे-सीधे पूछा जा रहा है कि कौन है सोनम गुप्ता, उसे सामने आना चाहिए. तो अब सामने आई है सोनम गुप्ता. कहीं सोनम गुप्ता आपके बीच से ही तो नहीं....आप ही तो नहीं...अगर सच है तो क्या आप अपनी ही बेटी का अपमान नहीं कर रहे...सुनिए और पढ़िये प्यारे देशवासियों के नाम देश की बेटी सोनम गुप्ता का ये पत्र...और खुद तय कीजिए कौन है सोनम गुप्ता.

सुनिए सोनम गुप्ता की आवाज में उनके मन की बात और नीचे पढिए उनकी पूरी चिट्ठी-

दोस्तों,

बहुत चिंतित हैं आप लोग, आप तो आप, देश के आधे से ज्यादा अखबार और चैनल, उनके ब्लॉग्स, उनकी वेबसाइट्स, सारा सोशल मीडिया भी पूछ रहा है कि कौन है सोनम गुप्ता.

हां मेरे साथी, मैं हूं वो सोनम गुप्ता जिसके प्यार के गीत तुमने गुनगुनाए...जिसके लिए तुम रांझा, रोमियो और महीवाल बने, जिसके लिए तुमने चांद तारे तोड़ लाने के वादे भी किए ..और याद दिलाऊं तुम्हें कौन हूं मैं...हां, मैं वही सोनम गुप्ता हूं जो तुम्हारी ड्रीमगर्ल है.. जिसे तुम अपने बच्चों की मां के रुप ख्वाबों में  देखते हो.

मेरे प्यारे दोस्त मैं हूं वो सोनम जिसका इनकार तुमसे नहीं स्वीकारा नहीं जाता है, तुम वही करते हो जो तुम्हें सही लगता है.. मुझे कांपते हाथों से फूल देकर प्रपोज करते हो और जब मैं ना कहती हूं तो मुझे पाने के लिए तुम किसी भी हद तक चले जाते हो...मुझे रिझाने मनाने और बस मेरी एक हां के लिए तुम अपनी मर्जी से फूल देते हो अपनी मर्जी से शायरियां सुनाते हों और जब तुम्हें लगने लगता है कि मैं बड़ी कठोर हूं, इस पर भी हां नहीं कह रही हूं तो तुम मुझे खून भरी चिट्ठियां लिखते हो. हां वो तुम्ही तो हो जो करते हो शराब पीकर फोन पर मुझे परेशान बार बार.

हां मैं वही सोनम गुप्ता हूं जो जब किसी कीमत पर भी तुम्हें हां नहीं कहती तो तुम बौखला जाते हो...तुम्हारा ईगो तुम्हें सच समझने नहीं देता और तुम आकर मेरे चेहरे पर एसिड छिड़क देते हो...तुम क्यों भूल जाते हो कि प्यार तुम करते हो मुझसे मैं नहीं करती तुमसे...

याद नहीं तुम्हें मैं वहीं सोनम हूं. जब मैं तुम्हारे परेशान करने पर तुम्हारी पुलिस कंपलेंट करती हूं तो तुम्हें जेल हो जाती है...और जब तक तुम जेल से आते हो मैं किसी और से शादी कर लेती हूं. तब तुम खेलते हो मेरे साथ बदले का खेल..हां मैं वही सोनम हूं तुम्हारे एकतरफा प्यार की मारी सोनम..जिससे बदला लेने के लिए तुम बदनामी की शतरंज बिछाते हो. यह सब होता है तुम्हारी मर्जी से...मेरी मर्जी से तो तुम्हें लेना-देना ही नहीं.

हां मैं वहीं हूं जिसने कभी तुम्हें हां कहा और बाद में मना करने पर...तुम गुस्से में तुम्हें लिखे मेरे सारे पत्र सार्वजनिक कर देते हो.

मुझसे बदला लेने के लिए तुमने 10 रुपये के नोट से शुरु किया एक गंदा खेल आज घर घर में खेला जा रहा है. मेरी ना सुनने के बाद तुम वही तो हो जो आज तक नोटों पर मेरे नाम गोद रहे हो. यही नहीं मेरा जवाब भी तुम ही नोटों पर गोद रहे हो अपनी मर्जी से.

गलियों, गुमठियों, स्कूल, कॉलेजों, मीडिया संस्थानों में हर जगह पुरुषों के मुंह पर आज मेरा नाम है. मेरी हंसी उड़ाई जा रही है...मेरे देश का बच्चा बच्चा कह रहा है सोनम गुप्ता बेवफा है...लोग चटखारे लेकर मेरे बारे में बात कर रहे हैं. मैं ट्विटर फेसबुक पर ट्रेंड कर रही हूं. तुम तो खेल में जीत गए हो मैं हर जगह बदनाम हो चुकी हूं.

क्या अब भी आप सबको जानना है सोनम गुप्ता कौन है...तो सुनिए मेरे मित्रों, मेरे देशवासियों, आपके बगल में रहने वाली हर एक लड़की, आपकी बहन, आपकी दोस्त,आपकी पत्नी और आपकी मां...आपके देश की हर बच्ची-बच्ची है सोनम गुप्ता...आज मैं हूं कल आपकी बेटी है सोनम गुप्ता...मैं हूं सोनम गुप्ता...जो हर दिन जन्म लेती हूं. हर दिन बनता है हमारे देश में मेरा किस्सा.

सच तो ये है साथियों.. तुम क्यों पूछ रहे हो कौन है सोनम गुप्ता तुम्हें पूछना चाहिए कौन हो तुम खुद और किस हद तक नीचे गिर गए हो तुम...कितने मक्कार हो तुम जो प्रेम का छलावा करते हो...तुम्हारा ईगो मेरी असहमति स्वाकार नहीं कर सकता कितने कमजोर हो तुम. तुम पूछो खुद से बस एक बार आईने के सामने खड़े होकर कि क्या इंसान रह गए हो तुम. तुम्हें नहीं लगता अभी तुम्हें बहुत कुछ सीखना है मेरे दोस्त इंसान बनने के लिए. 

ऋचा साकल्ले उर्फ़ सोनम गुप्ता.


Tuesday, November 15, 2016

स्त्री एक अपरिचिता !

मैं हर रात ;तुम्हारे कमरे में आने से पहले सिहरती हूँ कि तुम्हारा वही डरावना प्रश्न ;मुझे अपनी सम्पूर्ण दुष्टता से निहारेंगा और पूछेंगा मेरे शरीर से , “ आज नया क्या है ? ”कई युगों से पुरुष के लिए स्त्री सिर्फ भोग्या ही रही मैं जन्मो से ,तुम्हारे लिए सिर्फ शरीर ही बनी रही ..ताकि , मैं तुम्हारे घर के काम कर सकू..ताकि , मैं तुम्हारे बच्चो को जन्म दे सकू ,ताकि , मैं तुम्हारे लिये तुम्हारे घर को संभाल सकू .तुम्हारा घर जो कभी मेरा घर न बन सका,और तुम्हारा कमरा भी ;जो सिर्फ तुम्हारे सम्भोग की अनुभूति के लिए रह गया है जिसमे ,सिर्फ मेरा शरीर ही शामिल होता है ..मैं नहीं ..क्योंकि ;सिर्फ तन को ही जाना है तुमने ;आज तक मेरे मन को नहीं जाना .एक स्त्री का मन , क्या होता है ,तुम जान न सके ..शरीर की अनुभूतियो से आगे बढ़ न सकेमन में होती है एक स्त्री..जो कभी कभी तुम्हारी माँ भी बनती है ,जब वो तुम्हारी रोगी काया की देखभाल करती है ..जो कभी कभी तुम्हारी बहन भी बनती है ,जब वो तुम्हारे कपडे और बर्तन धोती हैजो कभी कभी तुम्हारी बेटी भी बनती है,जब वो तुम्हे प्रेम से खाना परोसती हैऔर तुम्हारी प्रेमिका भी तो बनती है,जब तुम्हारे बारे में वो बिना किसी स्वार्थ के सोचती है ..और वो सबसे प्यारा सा संबन्ध ,हमारी मित्रता का , वो तो तुम भूल ही गए ..तुम याद रख सके तो सिर्फ एक पत्नी का रूप और वो भी सिर्फ शरीर के द्वारा ही ...क्योंकि तुम्हारा सम्भोग तन के आगे किसी और रूप को जान ही नहीं पाता है..और अक्सर न चाहते हुए भी मैं तुम्हे अपना शरीर एक पत्नी के रूप में समर्पित करती हूँ ..लेकिन तुम सिर्फ भोगने के सुख को ढूंढते हो ,और मुझसे एक दासी के रूप में समर्पण चाहते हो ..और तब ही मेरे शरीर का वो पत्नी रूप भी मर जाता है .जीवन की अंतिम गलियों में जब तुम मेरे साथ रहोंगे ,तब भी मैं अपने भीतर की स्त्री के सारे रूपों को तुम्हे समर्पित करुँगी तब तुम्हे उन सारे रूपों की ज्यादा जरुरत होंगी ,क्योंकि तुम मेरे तन को भोगने में असमर्थ होंगे क्योंकि तुम तब तक मेरे सारे रूपों को अपनी इच्छाओ की अग्नि में स्वाहा करके मुझे सिर्फ एक दासी का ही रूप बना चुके होंगे ,लेकिन तुम तब भी मेरे साथ सम्भोग करोंगे ,मेरी इच्छाओ के साथ..मेरी आस्थाओं के साथ..मेरे सपनो के साथ..मेरे जीवन की अंतिम साँसों के साथमैं एक स्त्री ही बनकर जी सकी और स्त्री ही बनकर मर जाउंगी एक स्त्री ....जो तुम्हारे लिए अपरिचित रहीजो तुम्हारे लिए उपेछित रही जो तुम्हारे लिए अबला रही ...पर हाँ , तुम मुझे भले कभी जान न सकेफिर भी ..मैं तुम्हारी ही रही ....एक स्त्री जो हूँ.....

Wednesday, September 7, 2016

नव्या-आराध्या के नाम अमिताभ बच्चन के खत को हर महिला को पढ़ना चाहिए!

अमिताभ बच्चन द्वारा अपनी पोती आराध्या और नातिन नव्या नवेली के लिए लिखा गया पूरा खत-

तुम दोनों के नाजुक कंधों पर बहुमूल्य विरासत की जिम्मेदारी है- आराध्या, तुम्हारे परदादाजी, डॉ. हरिवंश राय बच्चन...और नव्या, तुम्हारे परदादाजी, श्री एचपी नंदा जी की विरासत. तुम दोनों के परदादाजी ने तुम्हें सरनेम दिए, ताकि तुम ख्याति और सम्मान का आनंद उठा सको!भले ही तुम दोनों नंदा या बच्चन हो लेकिन तुम दोनों लड़की हो...महिला भी हो!

और क्योंकि तुम महिला हो, लोग तुम पर अपनी सोच, अपना दायरा थोपेंगे. वे तुम्हें कहेंगे कि कैसे कपड़े पहनो, कैसे व्यवहार करो, किससे मिलो और कहां जाओ.

लोगों के विचारों में दबकर मत रहना. अपने विवेक से अपनी पसंद खुद तय करो.

किसी को भी ये तय करने का हक मत देना कि तुम्हारे स्कर्ट की लंबाई तुम्हारे चरित्र का पैमाना है. किसी को भी ये तय करने का हक मत दो कि तुम्हारे दोस्त कौन होने चाहिए, तुम्हें किससे दोस्ती करनी चाहिए. किसी भी वजह से शादी मत करो जब तक कि तुम शादी न करना चाहो.

लोग बाते करेंगे. वे बहुत ही ही बुरी चीजें कहेंगे. लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि तुम सबकी बातें सुनो. इस बात की कभी परवाह मत करो-लोग क्या कहेंगे. अंत में अपने लिए गए फैसलों का परिणाम का सामना सिर्फ तुम्हें ही करना होगा. इसलिए दूसरों को अपने लिए फैसले मत लेने दो.

नव्या-तुम्हारे नाम और सरनेम की वजह से तुम्हें मिला विशेषाधिकार उन मुश्किलों से तुम्हें नहीं बचाएगा जिनका सामना एक महिला होने के कारण तुम्हें करना पड़ेगा.आराध्या-जिस समय तुम इसे देखोगी या समझोगी, हो सकता है मैं तुम्हारे आसपास न रहूं. लेकिन मुझे लगता है कि आज जो मैं कह रहा हूं वह उस समय भी प्रासंगिक रहेगा. यह महिलाओं के लिए एक मुश्किल, मुश्किल दुनिया हो सकती है लेकिन मुझे यकीन है कि तुम जैसी महिलाएं ही इसे बदलेंगी. अपनी खुद की सीमाएं बनाना, अपनी पसंद तय करना, लोगों के फैसलों से ऊपर उठना, हो सकता है ये आसान न हो. लेकिन तुम!... लेकिन तुम हर महिला के लिए एक उदाहरण बन सकती हो.

ऐसा ही करना और तुम दोनों अब तक मैंने जितना किया है उससे कहीं ज्यादा करोगी, और यही मेरे लिए सम्मान की बात होगी कि मैं अमिताभ बच्चन नहीं बल्कि तुम्हारे नाना और दादाा के तौर पर जाना जाऊं!!

अमिताभ बच्चन ने भले ही ये खत अपनी नातिन-पोती के नाम लिखा हो लेकिन इसमें दी गई बहमूल्य सीख हर लड़की और महिला के लिए है!

Tuesday, August 30, 2016

I AM NOT A PRODUCT !

‘अरे! तुमने ब्रा ऐसे ही खुले में सूखने को डाल दी?’ तौलिये से ढंको इसे। ऐसा एक मां अपनी 13-14 साल की बेटी को उलाहने के अंदाज में कहती है।

‘तुम्हारी ब्रा का स्ट्रैप दिख रहा है’, कहते हुए एक लड़की अपनी सहेली के कुर्ते को आगे खींचकर ब्रा का स्ट्रैप ढंक देती है।

‘सुनो! किसी को बताना मत कि तुम्हें पीरियड्स शुरू हो गए हैं।’

‘ढंग से दुपट्टा लो, इसे गले में क्यों लपेट रखा है?’

‘लड़की की फोटो साड़ी में भेजिएगा।'

‘हमें अपने बेटे के लिए सुशील, गोरी, खूबसूरत, पढ़ी-लिखी, घरेलू लड़की चाहिए।'

‘नकद कितना देंगे? बारातियों के स्वागत में कोई कमी नहीं होनी चाहिए।'

‘दिन भर घर में रहती हो। काम क्या करती हो तुम? बाहर जाकर कमाना पड़े तो पता चले।'

‘मैं नौकरी कर रहा हूं ना, तुम्हें बाहर खटने की क्या जरूरत? अच्छा, चलो ठीक है, घर में ब्यूटी पार्लर खोल लेना।'

‘बाहर काम करने का यह मतलब तो नहीं कि तुम घर की जिम्मेदारियां भूल जाओ। औरत होने का मतलब समझती हो तुम?’

‘जी, मैं अंकिता मिश्रा हूं। शादी से पहले अंकिता त्रिपाठी थी। यह है मेरा बेटा रजत मिश्रा।'

‘तुम थकी हुई हो तो मैं क्या करूं? मैं सेक्स नहीं करूंगा क्या?’

‘कैसी बीवी हो तुम? अपने पति को खुश नहीं कर पा रही हो? बिस्तर में भी मेरी ही चलेगी।’

‘तुम्हें ब्लीडिंग क्यों नहीं हुई? वरजिन नहीं हो तुम?’

‘तुम बिस्तर में इतनी कंफर्टेबल कैसे हो? इससे पहले कितनों के साथ सोई हो?’

‘तुम क्यों प्रपोज करोगी उसे? लड़का है उसे फर्स्ट मूव लेने दो। तुम पहल करोगी तो तुम्हारी इमेज खराब होगी।'

‘नहीं-नहीं, लड़की की तो शादी करनी है। हां, पढ़ाई में अच्छी है तो क्या करें, शादी के लिए पैसे जुटाना ज्यादा जरूरी है। बेटे को बाहर भेजेंगे, थोड़ा शैतान है लेकिन सुधर जाएगा।’

‘इतनी रात को बॉयफ्रेंड के साथ घूमेगी तो रेप नहीं होगा?’

‘इतनी छोटी ड्रेस पहनेगी तो रेप नहीं होगा।'

‘सिगरेट-शराब सब पीती है, समझ ही गए होंगे कैसी लड़की है।'

‘पहले जल्दी शादी हो जाती थी, इसलिए रेप नहीं होते थे।'

‘लड़के हैं, गलती हो जाती है।’

‘फेमिनिजम के नाम पर अश्लीलता फैला रखी है। 10 लोगों के साथ सेक्स करना और बिकीनी पहनना ही महिला सशक्तीकरण है क्या?’

‘मेट्रो में अलग कोच मिल तो गया भई! अब कितना सशक्तीकरण चाहिए?’

‘क्रिस गेल ने तो अकेले सभी बोलर्स का ‘रेप’ कर दिया।’

लंबी लिस्ट हो गई ना? इरिटेट हो रहे हैं आप। सच कहूं तो मैं भी इरिटेट हो चुकी हूं यह सुनकर कि मैं ‘देश की बेटी’, ‘घर की इज्जत’, माँ और ‘देवी’ हूँ। नहीं हूँ मैं ये सब। मैं इंसान हूँ आपकी तरह। मेरे शरीर के कुछ अंग आपसे अलग हैं इसलिए मैं औरत हूं। बस, इससे ज्यादा और कुछ नहीं। सैनिटरी नैपकिन देखकर शर्म आती है आपको? इतने शर्मीले होते आप तो इतने यौन हमले क्यों होते हम पर?

ओह! ब्रा और पैंटी देखकर भी शर्मा जाते हैं आप या इन्हें देखकर आपकी सेक्शुअल डिजायर्स जग जाती हैं, आप बेकाबू हो जाते हैं और रेप कर देते हैं।

अच्छा, मेरी टांगें देखकर आप बेकाबू हो गए। आप उस बच्ची के नन्हे-नन्हे पैर देखकर भी बेकाबू हो गए। उस बुजुर्ग महिला के लड़खड़ाकर चलते हुए पैरों ने भी आपको बेकाबू कर दिया। अब इसमें भला आपकी क्या गलती! कोई ऐसे अंग-प्रदर्शन करेगा तो आपका बेकाबू होना लाजमी है। यह बात और है कि आपको बनियान और लुंगी में घूमते देख महिलाएँ बेकाबू नहीं होतीं। लेकिन आप तो कह रहे थे कि स्त्री की कामेच्छा किसी से तृप्त ही नहीं हो सकती? वैसे कामेच्छा होने में और अपनी कामेच्छा को किसी पर जबरन थोपने में अंतर तो समझते होंगे आप?
हाँ, मैं सिगरेट पीती हूँ… कोई प्रॉब्लम?
मेरे कुछ साथी महिलाओं द्वारा आजादी की मांग को लेकर काफी ‘चिंतित’ नजर आ रहे हैं। उन्हें लगता है कि महिलाएं ‘स्वतंत्रता’ और ‘स्वच्छंदता’ में अंतर नहीं कर पा रही हैं। उन्हें डर है कि महिलाएं पुरुष बनने की कोशिश कर रही हैं और इससे परिवार टूट रहे हैं, ‘भारतीय अस्मिता’ नष्ट हो रही है। वे कहते हैं कि नारीवाद की जरूरतमंद औरतों से कोई वास्ता ही नहीं है। वे कहते हैं सीता और द्रौपदी को आदर्श बनाइए। कौन सा आदर्श ग्रहण करें हम सीता और द्रौपदी से? या फिर अहिल्या से?
छल इंद्र करें और पत्थर अहिल्या बने, फिर वापस अपना शरीर पाने के लिए राम के पैरों के धूल की बाट जोहे। कोई मुझे किडनैप करके के ले जाए और फिर मेरा पति यह जांच करे कि कहीं मैं ‘अपवित्र’ तो नहीं हो गई। और फिर वही पति मुझे प्रेग्नेंसी की हाल में जंगल में छोड़ आए, फिर भी मैं उसे पूजती रहूं। या फिर मैं पांच पतियों की बीवी बनूं। एक-एक साल तक उनके साथ रहूं और फिर हर साल अपनी वर्जिनिटी ‘रिन्यू’ कराती रहूं ताकि मेरे पति खुश रहें।यही आदर्श सिखाना चाहते हैं आप हमें?

जो लड़की शर्माई नहीं, वह हो गई चरित्रहीन…

चलिए अब कपड़ों की बात करते हैं। आप एक स्टैंडर्ड ‘ऐंटी रेप ड्रेस’ तय कर दीजिए लेकिन आपको सुनिश्चित करना होगा कि फिर हम पर यौन हमले नहीं होंगे। बुरा लग रहा होगा आपको? मैं पुरुषों को जनरलाइज कर रही हूँ । हर पुरुष ऐसा नहीं होता। बिल्कुल ठीक कहा आपने। जब आप सब एक जैसे नहीं हैं तो हमें एक ढांचे में ढालने की कोशिश क्यों करते हैं? आपके हिसाब से दो तरह की लड़कियां होती हैं, एक वे जो रिचार्ज के लिए लड़कों का ‘इस्तेमाल’ करती हैं और एक वे जो ‘स्त्रियोचित’ गुणों से भरपूर होती हैं यानी सीता, द्रौपदी टाइप। बीच का तो कोई शेड ही नहीं है, है ना?

क्या साड़ी पहनकर ओलिंपिक में भाग लें?

महिलाओं की शिक्षा और आर्थिक आजादी बहुत ही बुनियादी चीजें हैं। ये बुनियादी हक भी उन्हें आपकी दया की भीख में नहीं मिले हैं। उन्हें लड़ना पड़ा है खुद के लिए और उनका साथ दिया है ईश्वर चंद्र विद्यासागर, राजा राम मोहन राय और ज्योतिबा फुले जैसे पुरुषों ने।
सच बताइए, आप डरते हैं ना औरतों को इस तरह बेफिक्र होकर जीते देखकर? आप बर्दाश्त नहीं कर पाते ना कि कोई महिला बिस्तर में अपनी शर्तें कैसे रख सकती है?फेमिनिज़्म से आपका इगो हर्ट होता है जब महिला खुद को आपसे कमतर नहीं समझती। फिर आप उसे सौम्यता और मातृत्व जैसे गुणों का हवाला देकर बेवकूफ बनाने की कोशिश करने लगते हैं। सौम्यता और मातृत्व बेशक श्रेष्ठ गुण में आते हैं। तो आप भी इन्हें अपनाइए ना जनाब, क्यों अकेले महिलाओं पर इसे थोपना चाहते हैं? क्या कहा? मर्द को दर्द नहीं होता? कम ऑन। आप जैसे लोग ही किसी सरल और कोमल स्वभाव वाले पुरुष को देखकर उसे ‘गे’ और ‘छक्का’ कहकर मजाक उड़ाते हैं। वैसे गे या ‘छक्का’ होने में क्या बुराई है? जो आपसे अलग हैं वह आपसे कमतर? क्या बकवास लॉजिक है। सानिया मिर्जा की स्कर्ट पर आपत्ति जताने वालों से और उम्मीद भी क्या कर सकते हैं! और हाँ, साक्षी मलिक और पीवी सिंधु की जीत का जश्न मना रहे हैं या नहीं?
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सिंधुवासिनी

अपनी समझ! अपनी सुरक्षा! #Pink warriors !

भारत में ब्रेस्ट कैंसर बहुत तेज़ी से बड़ रहा है और इलाज देर से शुरू होने के कारण बहुत संखया में हमारी महिलाएँ अपनी इस लड़ाई में हार जातीं हैं.

यदि ब्रेस्ट कैंसर का इलाज शुरू की स्टेज पर ही शुरू हो जाए तो यह लड़ाई जीती जा सकती है.

इसीलिए यह ज़रूरी है की सभी महिलाएँ महीने में एक बार ब्रेस्ट सेल्फ़ एग्ज़ाम करें, साल में एक बार क्लिनिकल एग्ज़ाम और डॉक्टर की सलाह पर ५० वर्ष की होने के बाद मैमोग्राम करवाएँ.

इस लड़ाई में अधिक से अधिक महिलाओं को जिताने के लिए कृपया हमारे मेसेजिस को फ़ॉर्वर्ड करें ताकि ज़्यादा से ज़्यादा महिलाओं को अपने जीवन में और अनेक बर्थडेज़ मनाने का मौक़ा मिले.

और वे अधिक लम्बे जीवन का आनदं ले पाएँ.

Breast Cancer is spreading fast and because in many cases treatment starts late, lot of women lose their battle against it.

Many lives can be saved if treatment starts at an early stage.

That's why it is very important that all adult women perform Breast
Self-Exam once a month, go for clinical breast exam once a year and on doctor's advice get a Mammogram done after the age of 50.

To help more and more women win their battle by catching it early if Breast Cancer attacks them, forward our messages and gift them a chance of celebrating many more Birthdays.

So that they enjoy happy and longer lives.

Respectmothers @ mothers R priceless !

Raw and unedited picture of a mother breastfeeding her 2weeks old baby after a C- section delivery.

This is priceless. This is what some mothers go through. The pains. The stretch mark. The shapeless body. The flappy tummy. Some of us use corset and body magic to hide it. Some of us use push up bra to feel sexy but when we get into the bathroom, naked and see the real body , we remind ourselves that we produced a creature, a human being. Please women learn to love yourself. Love your body. Motherhood is a beautiful thing. I pray that those trying for a child will get pregnant.

Men , learn to love your wives. What we go through isn't easy. We don't need you to misbehave, we don't want you to cheat on us. We don't want you to beat us. We don't want you to deny us our right. All we need is love , transparency, care and support. After all these suffering some men without conscience hit their wives. Some don't care if she has eaten . Some even abandon her to cater for the baby. Some spend more on their girlfriend forgetting they have a nursing wife at home. On judgement day , I wonder the excuse you will give God for maltreating your wife.

Some men even have the guts to tell their wives that she is not a woman just because she delivered through CS . I believe a true woman is the one who had her child(ren) through surgery. She has to go through pains. Serious pains. She has to deny herself food for days at least 3days. She can't eat normal food for a month. She can't even bath herself well. Unlike the vagina birth. Men , no matter the method of delivery treat her like a queen. For a mother and child to come out alive is God's grace. Pregnancy and Labour is between life and death. Learn to respect mothers.
#respectmothers
#saynotoviolence
#mothersarepriceless
(via: someone)

औरत होने की सज़ा : होइहें सोई जो पुरुष रचि राखा

मैं आदमी हूँ यानी पुरुष, मर्द, स्‍वामी, देवता, मंत्री, संतरी, सामंत, राजा, मठाधीश और न्‍यायाधीश-सबकुछ मैं हूँ और मेरे लिए ही सबकुछ है या सबकुछ मैंने अपने सुख-सुविधा, भोग-विलास और अय्याशी के लिए बनाया है. सारी दुनिया की धरती और (स्‍त्री) देह यानी उत्‍पादन और पुनरुत्‍पादन के सभी साधनों पर मेरा ‘सर्वाधिकार सुरिक्षत’ है. रहेगा. धरती पर कब्‍जे के लिए उत्‍तराधिकार कानून और देह पर स्‍वामित्‍व के लिए विवाह संस्‍था की स्‍थापना मैंने बहुत सोच-समझकर की है.

सारे धर्मों के धर्मग्रंथ मैंने ही रचे हैं. धर्म, अर्थ, समाज, न्‍याय और राजनीति के सारे कायदे-कानून मैंने बनाये हैं और मैं ही समय-समय पर उन्‍हें परिभाषित और परिवर्तित करता हूँ. घर, खेत, खलिहान, दुकान, कारखाने, धन, दौलत, सम्‍पत्ति, साहित्‍य, कला, शिक्षा, सत्‍ता और न्‍याय-सब पर मेरे अधिकार हैं सभी धर्मों का भगवान मैं ही हूँ और सारी दुनिया मेरी ही पूजा करती है. ‘अर्धनारीश्‍वर’ का अर्थ आधी नारी और आधा पुरुष नहीं बल्‍कि आधी नारी और आधा ईश्‍वर है. इसलिए तुम नारी और मैं (पुरुष) ईश्‍वर हूँ. तुम्‍हारा ईश्‍वर-पति परमेश्‍वर मैं ही हूँ.

तुम औरत हो यानी मेरी पत्‍नी, वेश्‍या और दासी-जो कुछ भी हो, मेरी हो और मेरे सुख, आनंद, भोग और ऐश्‍वर्य के लिए सदा समर्पित रहना ही तुम्‍हारा परम धर्म और कर्तव्‍य है. मेरे हुक्‍म के अनुसार चलती रहोगी, सम्‍पूर्ण रूप से समर्पित होकर वफादारी के साथ मेरी सेवा करोगी तो ‘सीता’, ‘सावित्री’ और ‘महारानी’ कहलाओगी, सुख-सुविधाएँ, कपड़े-गहने, धन-ऐश्‍वर्य, मान-सम्‍मान और प्रतिष्‍ठा पाओगी. मगर मुझसे अलग मेरे विरुद्ध आँखें उठाने की कोशिश भी करोगी तो कीड़े-मकोड़ों की तरह कुचल दी जाओगी.

कोई तुम्‍हारी मदद के लिए आगे नहीं आयेगा. समाज, धर्म, कानून, मठाधीश, मंत्री, नेता और राजा, सब मेरे हैं, बल्‍कि ये ही वे हथियार हैं जिनसे मैं इस दुनिया में ही नहीं, दूसरी दुनिया में भी तुम्‍हें नही छोडूंगा. पहली और दूसरी दुनिया मैं हूँ तुम महज तीसरी दुनिया हो, तुम्‍हारी न कोई दलील सुनेगा, न अपील.

– अरविन्‍द जैन की पुस्तक ‘औरत होने की सज़ा’ का अंश

कितना सही नाम रखा है अरविंद जैन ने पुस्तक का ‘औरत होने की सज़ा’…. कहती रहिए आप सारे कानूनों की सामंती, सवर्णवादी या मेल-शॉवेनिस्ट…. हम क्यों आसानी से उस कानून में फेर बदल करें जो हमारे वर्चस्व में सेंध लगाते हों? अरविंद जैन का कहना – समाज, सत्ता, संसद  न्यायपालिका  पुरुषों का अधिकार होने की वजह से सारे क़ानून, व्याख्याएं इस प्रकार से की गई कि आदमी के बच निकलने के हज़ारों चोर दरवाज़ें मौजूद है जबकि औरत के कानूनी चक्रव्यूह से निकल पाना एकदम असंभव…..

कानूनी प्रावधानों की चीर- फा‌ड़ करते और अदालती फैसलों पर प्रश्नचिन्ह लगाते लेख कानूनी अंतर्विरोधों और विसंगतियों के प्रामाणिक खोजी दस्तावेज है, जो निश्चित रुप से गंभीर अध्ययन, मौलिक चिंतन और गहरे मानवीय सरोकारों के बिना संभव नहीं. ऐसा काम सिर्फ़ वकील, विधिवेत्ता या शोध छात्र के बस की नहीं है. कानूनी पेचीदगियों को साफ, सरल और सहज भाषा में ही नहीं, बल्कि बेहद रोचक, रचनात्मक और नवीन शिल्प में भी लिखा गया है.

पुस्तक पढ़ने के बाद हो सकता है, आपको लगे, अरे! ऐसे भी क़ानून है? मुझे तो अभी तक पता ही नहीं था! या फिर हम तो सोच भी नहीं सकते कि सुप्रीम कोर्ट से सज़ा के बावजूद हत्यारे सालों छुट्टा घूम सकते हैं!

– अरविंद जैन की पुस्तक औरत होने की सज़ा (Law against women) के लिए राजेंद्र यादव द्वारा लिखा सम्पादकीय