मैं आदमी हूँ यानी पुरुष, मर्द, स्वामी, देवता, मंत्री, संतरी, सामंत, राजा, मठाधीश और न्यायाधीश-सबकुछ मैं हूँ और मेरे लिए ही सबकुछ है या सबकुछ मैंने अपने सुख-सुविधा, भोग-विलास और अय्याशी के लिए बनाया है. सारी दुनिया की धरती और (स्त्री) देह यानी उत्पादन और पुनरुत्पादन के सभी साधनों पर मेरा ‘सर्वाधिकार सुरिक्षत’ है. रहेगा. धरती पर कब्जे के लिए उत्तराधिकार कानून और देह पर स्वामित्व के लिए विवाह संस्था की स्थापना मैंने बहुत सोच-समझकर की है.
सारे धर्मों के धर्मग्रंथ मैंने ही रचे हैं. धर्म, अर्थ, समाज, न्याय और राजनीति के सारे कायदे-कानून मैंने बनाये हैं और मैं ही समय-समय पर उन्हें परिभाषित और परिवर्तित करता हूँ. घर, खेत, खलिहान, दुकान, कारखाने, धन, दौलत, सम्पत्ति, साहित्य, कला, शिक्षा, सत्ता और न्याय-सब पर मेरे अधिकार हैं सभी धर्मों का भगवान मैं ही हूँ और सारी दुनिया मेरी ही पूजा करती है. ‘अर्धनारीश्वर’ का अर्थ आधी नारी और आधा पुरुष नहीं बल्कि आधी नारी और आधा ईश्वर है. इसलिए तुम नारी और मैं (पुरुष) ईश्वर हूँ. तुम्हारा ईश्वर-पति परमेश्वर मैं ही हूँ.
तुम औरत हो यानी मेरी पत्नी, वेश्या और दासी-जो कुछ भी हो, मेरी हो और मेरे सुख, आनंद, भोग और ऐश्वर्य के लिए सदा समर्पित रहना ही तुम्हारा परम धर्म और कर्तव्य है. मेरे हुक्म के अनुसार चलती रहोगी, सम्पूर्ण रूप से समर्पित होकर वफादारी के साथ मेरी सेवा करोगी तो ‘सीता’, ‘सावित्री’ और ‘महारानी’ कहलाओगी, सुख-सुविधाएँ, कपड़े-गहने, धन-ऐश्वर्य, मान-सम्मान और प्रतिष्ठा पाओगी. मगर मुझसे अलग मेरे विरुद्ध आँखें उठाने की कोशिश भी करोगी तो कीड़े-मकोड़ों की तरह कुचल दी जाओगी.
कोई तुम्हारी मदद के लिए आगे नहीं आयेगा. समाज, धर्म, कानून, मठाधीश, मंत्री, नेता और राजा, सब मेरे हैं, बल्कि ये ही वे हथियार हैं जिनसे मैं इस दुनिया में ही नहीं, दूसरी दुनिया में भी तुम्हें नही छोडूंगा. पहली और दूसरी दुनिया मैं हूँ तुम महज तीसरी दुनिया हो, तुम्हारी न कोई दलील सुनेगा, न अपील.
– अरविन्द जैन की पुस्तक ‘औरत होने की सज़ा’ का अंश
कितना सही नाम रखा है अरविंद जैन ने पुस्तक का ‘औरत होने की सज़ा’…. कहती रहिए आप सारे कानूनों की सामंती, सवर्णवादी या मेल-शॉवेनिस्ट…. हम क्यों आसानी से उस कानून में फेर बदल करें जो हमारे वर्चस्व में सेंध लगाते हों? अरविंद जैन का कहना – समाज, सत्ता, संसद न्यायपालिका पुरुषों का अधिकार होने की वजह से सारे क़ानून, व्याख्याएं इस प्रकार से की गई कि आदमी के बच निकलने के हज़ारों चोर दरवाज़ें मौजूद है जबकि औरत के कानूनी चक्रव्यूह से निकल पाना एकदम असंभव…..
कानूनी प्रावधानों की चीर- फाड़ करते और अदालती फैसलों पर प्रश्नचिन्ह लगाते लेख कानूनी अंतर्विरोधों और विसंगतियों के प्रामाणिक खोजी दस्तावेज है, जो निश्चित रुप से गंभीर अध्ययन, मौलिक चिंतन और गहरे मानवीय सरोकारों के बिना संभव नहीं. ऐसा काम सिर्फ़ वकील, विधिवेत्ता या शोध छात्र के बस की नहीं है. कानूनी पेचीदगियों को साफ, सरल और सहज भाषा में ही नहीं, बल्कि बेहद रोचक, रचनात्मक और नवीन शिल्प में भी लिखा गया है.
पुस्तक पढ़ने के बाद हो सकता है, आपको लगे, अरे! ऐसे भी क़ानून है? मुझे तो अभी तक पता ही नहीं था! या फिर हम तो सोच भी नहीं सकते कि सुप्रीम कोर्ट से सज़ा के बावजूद हत्यारे सालों छुट्टा घूम सकते हैं!
– अरविंद जैन की पुस्तक औरत होने की सज़ा (Law against women) के लिए राजेंद्र यादव द्वारा लिखा सम्पादकीय
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