Thursday, June 30, 2016

'मेरी ब्रा से आपको क्या प्रॉब्लम है?'

टीवी अभिनेत्री और मॉडल सलोनी चोपड़ा की एक इंस्टाग्राम पोस्ट की आजकल ख़ूब चर्चा हो रही है.
सलोनी ने हाथ में ब्रा लेकर एक तस्वीर पोस्ट करते हुए कहा है कि हमारे ब्रेस्ट सिर्फ़ हमारे शरीर का एक हिस्सा हैं, हमारा सम्मान और गरिमा नहीं.
अपनी एक लंबी इंस्टाग्राम पोस्ट में सलोनी ने ब्रा और महिलाओं के ब्रेस्ट के प्रति लोगों के नज़रिए पर सवाल उठाते हुए लिखा है कि अगर पुरुष बिना शर्ट के घूम सकते हैं तो एक महिला अपनी ब्रा के फीते क्यों नहीं दिखा सकती हैं?
सलोनी के इस पोस्ट को 10 हज़ार से अधिक बार लाइक किया गया है.
अपनी पोस्ट में सलोनी ने लिखा, "ज़िंदगी ब्रा जैसी ही है और महिलाओं को अपनी कामुकता को लेकर और खुला होना चाहिए."
अपनी पोस्ट में उन्होंने लिखा कि कुछ ऐसे बीमार लोग भी होते हैं जिन्हें ब्रा का फीता दिखने से भी समस्या होती है.
उन्होंने लिखा कि ब्रा शरीर के एक अंग को ढँकने का एक कपड़ा भर है, ऐसे ही जैसे स्कर्ट है.
उन्होंने लिखा, "इसमें इतनी बड़ी बात क्या है? क्या लोग लड़की के ब्रेस्ट देखकर असहज हो जाते हैं? क्या पुरुष इतने कमज़ोर होते हैं? ऐसे नहीं है कि हमारे ब्रेस्ट पवित्र होते हैं, वो सिर्फ़ हमारे शरीर का एक हिस्सा ही हैं."
अपनी पोस्ट में सलोनी ने लिखा कि समाज में ऐसे हालात बना दिए गए हैं कि महिलाओं को अपनी ब्रा छुपानी पड़ती है.
"ये ऐसी चीज़ नहीं है जिसे छुपाया जाना चाहिए. असल में तो ये बहुत सुंदर होती है. है कि नहीं?"
"मैं इस बात से थक गई हूं कि महिलाओं को हर बात पर शर्मिंदा होने के लिए सोचते रहना पड़ता है. पैड, टेम्पून, अंडरगारमेंट्स. हमारा शरीर. हमारी इच्छाएं. सेक्स. अब इस पर बात ख़त्म होनी चाहिए. अपने दिमाग को आज़ाद कीजिए."

सलोनी के इस पोस्ट पर उन्हें समर्थन भी मिला है. पोस्ट पर आए क़रीब 1500 कमेंट्स में लोगों ने उनके साथ सहमति जताई है.
लैला सईद ने लिखा, "ये उस ग़ैर बराबरी का प्रतीक है जिसका सामना महिलाओं को हर दिन करना पड़ता है."
लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि सलोनी ग़ैर ज़रूरी मुद्दा उठा रही हैं. कई लोगों ने उन्हें निशाना भी बनाया है.
एक यूज़र ने कमेंट किया, "हमें तुम्हारी ब्रा से कोई फ़र्क नहीं पड़ता. तुम उसे दिखाने के लिए स्वतंत्र हो लेकिन देश में और भी बहुत से ज़रूरी मुद्दे हैं, जिन पर तुम्हारी ब्रा से ज़्यादा ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है."
कुछ ने अपनी टिप्पणी में ये भी कहा है कि सलोनी पब्लिसिटी के लिए ये सब कर रही हैं.

Sunday, June 26, 2016

आई लव यू...लॉट्स

बहुत प्यार करता हूँ मैं उससे..
उससे जुड़ा हर सपना सच करना चाहता हूँ मैं..
दुख का दरिया पार करके दूर आसमान में एक बसेरा बनाना चाहता हूँ मैं...
जहाँ कोई नहीं सिर्फ और सिर्फ हम दोनों होंगे...
वहाँ हमारे हर सपने सच होंगे.''

वो हमेशा इस तरह की ही बातें करता रहता था और मेरा उससे कहना था कि इस प्रकार की बातें सिर्फ फिल्मों में अच्छी लगती हैं लेकिन आज उसकी हर बातें मेरे लिए एक मीठी यादें बनकर रह गई हैं।

प्यार के लिए उसने जो भी करना था वह सब कुछ किया लेकिन शायद उसके नसीब में वो सुख था ही नहीं जिसका सपना वह हर दिन देखा करता था। आज वह इस दुनिया की भीड़ में कहीं गुम हो गया है उसका कोई पता नहीं। हम चाह के भी उसे ढूँढ नहीं पा रहे हैं। मेरा दोस्त मेरा सब कुछ था वह। हमेशा खुश रहने वाला, अपनी मनमानी करने वाला, थोड़ा गुस्सेवाला और एक नंबर का जिद्दी होने के बावजूद वह मुझे सबसे प्यारा था।

मैंने उसकी बदौलत ही तो प्यार को इतनी नजदीक से जाना वरना मेरा और प्यार का दूर-दूर तक कोई रिश्ता-नाता नहीं था। मेरा आदर्श, मेरा टीचर और मेरा पक्का दोस्त आज मालूम नहीं कहाँ खो गया है। कहीं वह मुझे और इस दुनिया को छोड़कर तो नहीं चला गया?

नहीं...नहीं..ऐसा कभी नहीं हो सकता वो कायर नहीं था वही तो हमें हमेशा कहता रहता था कि 'जीवन के हर दिन को हमें जी भर के जी लेना चाहिए क्योंकि जिंदगी इंसान को सिर्फ एक बार ही मिलती है।'' आप इसे शाहरूख की फिल्म का डायलॉग ही समझो लेकिन जब भी वह यह बात बोलता था मैं कुछ सोचने पर मजबूर हो जाती थी।

जब भी प्यार के नाम पर मुझे डर लगता वह मेरी हिम्मत बढ़ाता था। वह कहता था कि अगर आप किसी से सच्चा प्यार करते हो तो आपको किसी से डरने की भला क्या जरूरत है।

कोई कहता है जीवन में इंसान को सिर्फ और सिर्फ एक बार ही सच्चा प्यार होता है और दूसरा प्यार उसके लिए सिर्फ समझौता होता है। लेकिन मुझे इस इंसान में यह बात देखने को नहीं मिली।

ळपहले प्यार ने तो उसे धोखा दे दिया था लेकिन दूसरे प्यार ने भी अपने परिवार के सामने लाचार होकर ना चाहते हुए भी उसका साथ छोड़ दिया। वह हमेशा कहता था 'जिसको हमने प्यार किया उसने किसी और के लिए हमें छोड़ा और जो हमसे प्यार करती थी उसने अपने परिवार के लिए हमसे नाता तोड़ा'।

फिर भी उसने कभी किसी को दोष नहीं दिया कभी किसी को भला-बुरा नहीं कहा बस आखिर तक सबको एक ही बात कहता चला गया कि 'हमेशा खुश रहना...बस हमेशा खुश रहना'।

मैंने सुना है कि अगर कोई आपको सच्चे दिल से प्यार करता हो और आप उसे धोखा देकर या किसी परिस्थिति में लाचार कर छोड़ देते हो तो आपको बद्दुकआ लगती है। लेकिन उसके प्यार को कोई बद्दुथआ नहीं लगी शायद उसने कभी अपने प्यार का बुरा चाहा ही नहीं होगा।

पहले प्यार के बारे में तो मैं कुछ बता नहीं सकती लेकिन दूसरे प्यार के बार में दुनिया के सामने में पूरे विश्वास के साथ कह सकती हूँ क्योंकि....आज उसका दूसरा प्यार बहुत खुश है आज उस लड़की की शादी हो चुकी है घर में उसको समझने वाला पति और प्यारे बच्चे हैं।

उसने अपने बेटे का नाम उस लड़के के नाम पर रखा है और बेटी का नाम उस लड़के को जो पसंद था वही रखा है। मैं यह सब कुछ इसलिए बता सकती हूँ क्योंकि मैं ही तो उसका दूसरा प्यार हूँ।

आज मैं उसे बहुत याद कर रही हूँ उससे जुडी हर बात आज भी मुझे उसके पास जाने पर मजबूर कर रही है। आखिर मैं उसको क्यों बता नहीं पाई कि मैं उसे कितना प्यार करती थी। मैं हिम्मत जोड़ नहीं पाई आखिर क्यों?

बस मैं उसे इतना ही कहूँगी कि आई लव यू.....आई लव यू......आई लव यू...वह जहाँ भी होगा उसे मेरे यह शब्द जरूर सुनाई देंगे.... आई लव यू...मिस यू... आई लव यू...आई लव यू....लॉट्स।

बी माय वेलन्टाइन : अगर आप किसी को सच्चा प्यार करते हो तो उसी समय दुनिया का डर रखे बगैर उसे बता दो। 'आज' की बात कभी भी 'कल' पर नहीं छोड़नी चाहिए।

क्योंकि......क्योंकि जिसका 'आज' खो जाता है उसे कल कभी भी नहीं मिलता.....

ये 10 जवाब चमका सकते हैं आपका करियर, इंटरव्‍यू में अक्‍सर होता है सामना

करियर के शुरुआती दौर में पूछे जाने वाले कुछ सवाल आपका भविष्‍य तय कर देते हैं। कई बार हम इनका सटीक जवाब नहीं दे पाते और करियर शुरू होने से पहले ही खत्‍म। ऐसे सवालों की संख्‍या करीब एक दर्जन हैं। हम आपको क्‍यों सिलेक्‍ट करें, अगर आपको इस पद के लिए चुना जाए तो आप क्‍या करेंगे...! ये ऐसे कुछ सवाल हैं जो अक्‍सर पूछे जाते हैं और हम चकरा जाते हैं। हम आपको इन सवालों के कुछ आसान जवाब बताते हैं। इंटरव्‍यू के दौरान इन्‍हें देकर आप अपना करियर चमका सकते हैं।   

सवाल-1

इस पोस्‍ट के लिए आप खुद को कैसे परफेक्‍ट मानते हैं?
जवाब:
इस सवाल के जवाब में आप अपनी स्किल के बारे में बताएं।
जवाब बहुत आक्रामक तरीके नहीं दें।
आप अपनी उस स्किल के बारे में बताएं जो उस पोस्‍ट के लिए जरूरी हो।
क्‍यों इंटरव्‍यू लेने वाला यही जानना चाहता है कि इस पोस्‍ट के लिए जो क्‍वालिटी चाहिए, उसमें कौन परफेक्‍ट है।   

सवाल-2

अपनी प्रेफेशनल लाइफ में आपको किस बात से संंतुष्टि मिलती है?

जवाब

इस सवाल का जवाब तय नहीं होता है। दरअसल प्रोफेशनल लाइफ में हर व्‍यक्ति का लक्ष्‍य अलग होता है। इस हिसाब से संंतुष्टि का लेवल भी अलग होता है। हालांकि ज्‍यादातर युवा इसका जवाब देते हुए भ्रमित और आत्‍मविश्‍वास से भरपूर नहीं होते हैं। ऐसे में इसका जवाब पहले से ही तय रखें और पूरे आत्‍मविश्‍वास के साथ बोलें।

सवाल-3

अपनी जॉब क्‍यों बदल रहे हैं, पुरानी कपंनी छोड़ने का क्‍या कारण है? 

जवाब

मैं अपने काम से बोर हो गया हूं...। मेरी अपने बॉस से नहीं बनती...। मैं ज्‍यादा पैसों के लिए अपनी पुरानी नौकरी को छोड़ रहा हूं..। अक्‍सर हम इस सवाल के जवाब में ये बातें बोलते हैं, लेकिन यह गलत जवाब है। एक्‍सपर्ट के मुताबिक, इसकी जगह आप कहें कि आपको नए चैलेंज पसंद हैं। मैं कोई नया चैलेंज ढूंढ रहा हूं। इस लिए यह जॉब करना चाहता हूं। 

सवाल-4

अगर आपको यह जॉब मिले तो आप क्‍या करेंगे?

जबाव

जल्‍दबाजी में जवाब न दें। सबसे पहले कंपनी के बारे में समझें। आपका जवाब कमिटमेंट से भरा और जेनुइन होना चाहिए। आप पहले ही से ही पता कर लें कि कंपनी क्‍या चाहती है। दरअसल यह सवाल इस लिए पूछा जाता है कि कंडीडेट उस नौकरी के लिए इच्‍छुक है या नहीं।   अगर वह जवाब थोड़ा सोचकर देता है तो इसका मतलब यह है कि वह उस जॉब के लिए इच्‍छुक  है।

सवाल-5

ऐसे 3 कारण बताइए, जिसके चलते हमें आपको सेलेक्‍ट नहीं करना चाहिए?

जवाब

ऐसा सवाल आपको उलझाने के लिए पूछा जाता है। इसका जवाब देते हुए आप अपनी किसी कमजोरी की जिक्र नहीं करें। बल्कि कहें के आपकी सैलरी एक्‍सपेक्‍टेश के चलते आपको मुझे नहीं हायर करना चाहिए।

सवाल-6  

ऐसी कौन सी बातें हैं, जिनके चलते आप इस पेशे में आए? 

जवाब

अक्‍सर लोग यह सोचते हैं कि ऐसा जवाब दिया जाए जिससे जॉब मिल जाए। ऐसी स्थिति में कई बार लोग फंस जाते हैं, क्‍योंकि वे झूठ बोल देते हैं। जानकारों के मुताबिक, ऐसे सवाल का जवाब पूरी सच्‍चाई और ईमानदारी से दिया जाना चाहिए। क्‍योंकि इसी से सामने वाला यह आंकना की कोशिश करता है कि आप अपने कॅरियर गोल के लिए कितने ईमानदार हैं।

सवाल-7 

अपनी कोई 5 खासितयों के बारे में बताएं? 

जवाब:

आपको सुनने में यह सवाल बेहद आसान लग सकता है, लेकिन इसके जरिए वह आपके व्‍यक्तित्‍व को परखता है। इस सवाल पर अगर आप बेहतर तरीके से जवाब नहीं देते हैं, तो इससे पता चलता है कि आप चीजों को सही तरीके से मैनेज नहीं सकते। दरअसल अपनी 5 विशेषताओं के बारे में शायद ही कोई नहीं जानता हो, लेकिन यहां परख बस इतनी होती है कि आप इसे बताते कैसे हैं। जिेतना बेहतर तरीके से बताएंगे आप उतने बेहतर मैनेजर माने जाएंगे। 

सवाल-8

एक ऐसा ईश्‍यू बताइए जिसे लेकर आप अपने मैनेजर से असहमत हो सकते हैं? 

जवाब

इस सवाल का जवाब थोड़ा सा ट्रिकी है। इस सवाल का जवाब इंटरव्‍यू लेने वाले को अपना साहस दिखाने का मौका देता है। इस तरह के सवाल का जवाब घुमा-फिराकर मत दें, क्‍योंकि इंटरव्‍यू करने वाला तुरंत जान जाएगा कि आप सच नहीं बोल रहे हैं। इसलिए बेहतर है कि जेनुइन जवाब दें और उदाहरण देकर समझाएं।

सवाल-9

आप हमारे अलावा और किन कंपनियों में इंटरव्‍यू दे रहे हैं?

जवाब

दरअसल इस सवाल के जरिए यह पता करने की कोशिश होती है कि आप जिस पोस्‍ट के लिए अप्‍लाई कर रहे हैं, उसके लिए कितने इंस्‍ट्रेस्‍टेड हैं।  अगर आप कई कंपनियों में सेम पोस्‍ट के लिए अप्‍लाई कर रहे हैं तो इसका मतलब यह हुआ की उस पोजीशन को लेकर आप इंट्रेस्‍टेड हैं।

सवाल-10

ऐसी 3 आदतें बताइए जिन्‍हें आपके साथी नापसंद करते हैं?

यह सवाल थोड़ा कठित है, क्‍योंकि इसके जरिए इंटरव्‍यू लेने वाला आपकी कमजोरी जानना चाहता है। उसका मकसद यह भी जानना हो सकता है कि आपके सहयोगियों के बर्ताव में किसी तरह के बदलाव की जरूरत है। इस सवाल के जवाब में पेशे से जुड़ी कमजोरियां नहीं बताएं, बल्कि इसकी जगह अपनी आदतों के बारे में बताएं।

काश! कि एक गृहणी की भी सरकार ने तनख्वाह तय की होती..

तुम दिन भर करती क्या हो ...?
हाँ , मैं सचमुच दिन भर करती भी क्या हूँ?
मैं एक सामान्य सी गृहणी
सुबह से शाम तक
जो बिना किसी शुल्क के बनाये रखती है संतुलन
सारे परिवार का
मैं भला करती भी क्या हूँ ..?
मैं करती क्या हूँ ...

सुबह उठती हूँ और चकरघिन्नी से
सारे घर को संभालती हूँ ,यहाँ से वहां तक ,
इस्तरी किये कपडे जिन्हें निकाल कर
तुम आसानी से पहन जाते हो
अपने दफ्तर जाते हुए ..
और महसूसते हो खुद को लार्ड साहब
उस वक्त मैं समेट रही होती हूँ,
एक लम्बी साँस भर कर,
तुम्हारे और बच्चों के उतर कर फेंके
इधर उधर कपड़े ...
मैं करती ही क्या हूँ ...?

हम बाजार जाते हैं .
तुम बटुए का बोझ उठाये चलते हो
और मैं एक खाली झोला मुट्ठी में बांधे
तुम्हारे पीछे पीछे हो लेती हूँ
तुम चुकाते हो कीमत
उन सभी जरुरी सामान की
जो जीने के लिए हर महीने जरुरी हैं ,
और मैं उस भरे हुए झोले का बोझ उठाये
चल पड़ती हूँ संग तुम्हारे
मैं करती क्या हूँ ...?

सर्दियों में तुम्हारी पसंद के साग
और मक्के - बाजरे की रोटी सुविधाओं से पूर्ण रसोई में बनाती हूँ ...
और तुम्हे खाते हुए देख कर सुख पाती हूँ ,
मैं करती क्या हूँ ...
उँगलियाँ दुखती हैं न तुम्हारी
जब तोड़ते हो गुड की डली कभी अपने हाथों से
जब ठण्ड में गुड़ की टूटी डेलियां
गर्म दूध के संग चबाते हो |
मैं करती ही क्या हूँ ...

स्कूल से आये बच्चों की दिन भर की
धमाचौकड़ी से लेकर उनके होमवर्क कराना
पल पल उनकी और तुम्हारी जरूरतों का ध्यान रखना ...
मैं करती ही क्या हूँ ...
कि शाम को जब कभी तुम
समय पर घर नहीं पहुंचे
तुम्हारे आने पर रो-रो कर झगड़ती हूँ ..
कहाँ रहे इतनी देर, क्यों देर हुई ..
एक फोन कर देते ...
पर इस झगडे के पीछे मेरी चिंता को
तुम कभी नहीं समझ सके
मैं करती ही क्या हूँ ...

ऐसे तमाम प्रश्न हैं जिनका उत्तर
तुम्हे तब मिल गया होगा
जब पिछले दो महीने से एक बड़े ऑपरेशन से गुजरने के बाद
मैं बिस्तर पर हूँ .....
और तुमने हर उस काम के लिए बाई लगायी हुई है
जो जीने के लिए जरुरी है ...
महीने के अंत में
खाना बनने वाली को
घर की साफ करने वाली को .
कपडे धोने वाली को ... प्रेस करने वाले को
उनके पेमेंट दिए होंगे ...
उसके बावजूद भी .
जहाँ जहाँ तक नजर जाती है मेरी
मैं देख रही हूँ ..
मेरा घर बिखर गया है ..
कीमती साज सज्जा पर धूल उतर आई है |
टेबिल क्लॉथ कब से खिसक कर आड़ा - तिरछा सा
बस पड़ा है टेबिल पर ...
सोफे पर रखे कुशन .. जो अब पड़े हुए से दिखते हैं
फ्रिज भर गया है बचे हुए खाने पीने से
तुम्हारी ख़ामोशी बढ़ गयी है पहले से भी ज्यादा
(आखिर मेरी बक बक जो बंद है इन दिनों )
छोटी बेटी के चेहरे पर एक प्रश्नवाचक चिन्ह चस्पां है
मम्मा आप कब ठीक होगीं |
क्या उम्मीद करूँ ??
कि अब तुम को ये उत्तर मिल गया होगा ----
कि आखिर
मैं दिन भर करती क्या हूँ ...???
काश कि एक गृहणी की भी सरकार ने तनख्वाह तय की होती ..

Tuesday, June 21, 2016

सलमान के बयान पर एक दुष्कर्म पीड़िता ने यूं दिया जवाब, पढ़ें क्या-क्या लिखा

जयपुर. सलमान खान ने अपने शारीरिक थकान की तुलना रेप विक्टिम के दर्द से करते हुए एक बयान दे दिया। देशभर में इस बयान की आलोचना के बीच राजस्थान के जयपुर की एक रेप विक्टिम ने भास्कर से सीधी बात की। कभी सलमान को अपना सुपरहीरो मानने वाली इस महिला ने उनके विवादित बयान के बाद कहा - 'तुम (सलमान) तो इंसान भी नहीं...'। पढ़ें, सलमान के बयान को लेकर विक्टिम ने और क्या कहा...

- 31 साल की रेप विक्टिम रश्मि कपूर (बदला हुआ नाम ) ने कहा, "सलमान, क्या आपने उस दर्द को जाना है, जिसमें शारीरिक से ज्यादा भावनात्मक जख्म मिलते हैं ? ऐसी बेइज्जती, जिसमें आपका कोई कसूर नहीं होता, लेकिन उसका दर्द आपको जिंदगीभर चैन की एक सांस नसीब नहीं होने देता।"
- रश्मि ने कहा, गुनाह कोई और करता है और समाज हमें गुनहगार बना देता है। आप (सलमान) जिस शारीरिक पीड़ा की बात कर रहे हैं, वो आपको शौक और प्रोफेशन की वजह से है।
- आपका दर्द तो एक पेन किलर भी दूर कर सकता है, लेकिन रेप विक्टिम जिस दर्द से गुजरती है, उसे न तो दवा ठीक कर सकती है, न दुआ।
- सलमान, क्या तुमने इस थकान से कभी खुद को मुर्दा महसूस किया है?
- मैं रोज खुद को इस जिंदा समाज में मुर्दा महसूस करती हूं। अब तक तुम्हें मैं सुपरहीरो मानती थी लेकिन तुम तो इंसान भी नहीं....।
- बता दें कि रश्मि ने रेप के बावजूद हार नहीं मानी। आज वे कॉरपोरेट फंडिंग में अहम पोस्ट पर हैं।

क्या था सलमान का बयान ?

- सलमान ने फिल्म सुल्तान की शूटिंग के दौरान हुई मेहनत और थकान की तुलना रेप पीड़ित महिला से कर दी।
- उनकी जो साउंड क्लिप मीडिया में आई, उसमें सलमान कह रहे हैं- ‘शूटिंग के दौरान छह घंटे तक जो उठापटक-उठापटक-उठापटक होता था वाे अविश्वसनीय है। मैं 120 किलो के व्यक्ति को उठाता हूं और उसे नीचे पटकता हूं... और इसे लगातार 10 बार करता हूं। ये सबसे मुश्किल था। शूटिंग के बाद जब मैं रिंग से निकलने को होता तो लगता कि कोई रेप पीड़ित महिला चल रही है। कदम भी नहीं उठा पाता था।’ सलमान ने वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में ये बातें कही हैं।

विवाहेत्तर_संबंध‬

वैसे तो अभी तक के प्रोफेशनल कैरियर में ‪#‎विवाहेत्तर_संबंध‬ से जुड़े तमाम मामले आये हैं लेकिन जिन मामलों में पुरुष विवाहित हो और महिला अविवाहिता,और महिला को उसके साथी पुरुष के विवाहित होने की बात पता हो,वहाँ एक बात समान रुप से देखने को मिली कि प्रथमतः जब दोनों के बीच संबंध महज आकर्षण,मेल-मिलाप और बातचीत तक ही सीमित रहे और उस दौरान महिला उस संबंध से निकलने की कोशिश करती है तो पुरुष तरह-2 से भावनात्मक बातें करके उसे उस संबंध में बने रहने के लिये मजबूर कर देता है,मसलन "मैं अगर तुमसे प्रेम करता हूँ तो अपनी पत्नी और घर-परिवार के प्रति अपने प्रेम में कोई कमी नहीँ करता,सारी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से निभा रहा हूँ,तुम साथ न रहीं तो मैं जी नहीँ पाऊँगा,मर जाऊँगा,तुम्हारी बातों से इतना दुखी हूँ कि सोने-खाने और किसी भी काम में मन नहीँ लगता,हरदम तुम्हीं को सोच रहा हूँ,मैं तुम्हारा साथ कभी नहीँ छोडूंगा,तुम मेरी हो और जबतक तुम्हारी शादी नहीँ हो जाती है तबतक मेरी ही बनकर रहना,अगर संभव हो तो शादी के बाद भी मुझसे रिश्ते कायम रखना................." और भी दुनिया भर की तमाम बातें जिन्हें सुनकर महिला का दिल पिघल उठता है.कई बार तो ब्लैकमेलिंग भी करते हैं क्योंकि बातचीत और मेलजोल के दौरान महिला अपने जीवन के कमजोर और मज़बूत पक्षों से उस विवाहित पुरुष को पहले ही अवगत करा चुकी होतीं है जिस वजह से भी वह ऐसे संबंध से निकल पाने की हिम्मत नहीँ जुटा पाती है....
समस्या ये है कि अभी तक महिलाओं में अपेक्षित जागृति का अभाव है जिस कारण साथी के चुनाव में भयंकर गलतियां हो जाती हैं.इन गलतियों से निपटने का एक ही उपाय है कि महिलाओं को सही शिक्षा,जागृति और स्वतंत्रता तीनों साथ-2 दिये जायें वरना किसी एक की कमी सारे प्रयास विफल कर देगी.

Sunday, June 19, 2016

पितृ दिवस:-पापा याद बहुत आते हैं!

…………. पिता की भावनायें………………….
माँ को गले लगाते हो, कुछ पल मेरे भी पास रहो !
’पापा याद बहुत आते हो’ कुछ ऐसा भी मुझे कहो !
मैनेँ भी मन मे जज़्बातोँ के तूफान समेटे हैँ,
ज़ाहिर नही किया, न सोचो पापा के दिल मेँ प्यार न हो!
थी मेरी ये ज़िम्मेदारी घर मे कोई मायूस न हो,
मैँ सारी तकलीफेँ झेलूँ और तुम सब महफूज़ रहो,
सारी खुशियाँ तुम्हेँ दे सकूँ, इस कोशिश मे लगा रहा,
मेरे बचपन मेँ थी जो कमियाँ, वो तुमको महसूस न हो!
हैँ समाज का नियम भी ऐसा पिता सदा गम्भीर रहे,
मन मे भाव छुपे हो लाखोँ, आँखो से न नीर बहे!
करे बात भी रुखी-सूखी, बोले बस बोल हिदायत के,
दिल मे प्यार है माँ जैसा ही, किंतु अलग तस्वीर रहे!
भूली नही मुझे हैँ अब तक, तुतलाती मीठी बोली,
पल-पल बढते हर पल मे, जो यादोँ की मिश्री घोली,
कन्धोँ पे वो बैठ के जलता रावण देख के खुश होना,
होली और दीवाली पर तुम बच्चोँ की अल्हड टोली!
माँ से हाथ-खर्च मांगना, मुझको देख सहम जाना,
और जो डाँटू ज़रा कभी, तो भाव नयन मे थम जाना,
बढते कदम लडकपन को कुछ मेरे मन की आशंका,
पर विश्वास तुम्हारा देख मन का दूर वहम जाना!
कॉलेज के अंतिम उत्सव मेँ मेरा शामिल न हो पाना,
ट्रेन हुई आँखो से ओझल, पर हाथ देर तक फहराना,
दूर गये तुम अब, तो इन यादोँ से दिल बहलाता हूँ,
तारीखेँ ही देखता हूँ बस, कब होगा अब घर आना!
अब के जब तुम घर आओगे, प्यार मेरा दिखलाऊंगा,
माँ की तरह ही ममतामयी हूँ, तुमको ये बतलाऊंगा,
आकर फिर तुम चले गये, बस बात वही दो-चार हुई,
पिता का पद कुछ ऐसा ही हैँ फिर खुद को समझाऊंगा....

क्या महिलाओं को आरक्षण मिलना चाहिए??

सदियों से दोषपुर्ण सामाजिक अव्यवस्थाओं की शिकार महिलाओं के कल्याण हेतु, उन्हें मुख्य धारा में जोड़ने हेतु एवं महिला अत्याचारों पर लगाम कसने हेतु महिला आरक्षण की बात की जाती है। लेकिन हमने कभी सोचा है कि क्या आरक्षण मिलने भर से महिलाओं की स्थिति सुधर जाएगी या उनके प्रति हो रहे अत्याचारों में कमी आ जाएगी

सदियों से दोषपुर्ण सामाजिक अव्यवस्थाओं की शिकार महिलाओं के कल्याण हेतु, उन्हें मुख्य धारा में जोड़ने हेतु एवं महिला अत्याचारों पर लगाम कसने हेतु महिला आरक्षण की बात की जाती है। लेकिन हमने कभी सोचा है कि क्या आरक्षण मिलने भर से महिलाओं की स्थिति सुधर जाएगी या उनके प्रति हो रहे अत्याचारों में कमी आ जाएगी?

आज तक का इतिहास-
• हमारे पुरुषप्रधान समाज ने हजारों वर्षों से बगैर किसी महिला आरक्षण के ऐसी महिला नेत्रियां प्रदान की है, जिन्हें अनुकरणीय मान नारी इतिहास गौरवान्वित है। कस्तूरबा गांधी, सावित्रिबाई फुले, कमला चट्टोपाध्याय, विजयालक्ष्मी पंडित और कैप्टन लक्ष्मी सहगल आदि कुछ ऐसे नाम है जिन्हें कभी भी किसी आरक्षण की जरुरत नहीं पड़ी। ये उस कालखंड की विभुतियां है जब महिलाओं में साक्षरता का प्रतिशत अत्यंत ही कम था। बड़े-बड़े घुंघटों के बीच समाज ने उन्हें परदे से ढक रखा था। इस दृष्टिकोण से जब आज की पढ़ी-लिखी नारी आरक्षण की वकालत करती है तो आश्चर्य होता है।

• पंचायत समितियों में एवं स्थानीय निकायो में आरक्षण से जो महिलाएं राजनीति में आई है उनमें भी ज्यादातर महिला सरपंच के अधिकारों का उपयोग उनके पति, ससूर एवं देवर कर रहे है। ग्रामसभा एवं पंचायत समिति की बैठकों में भी महिला सरपंचों के बजाय उनके पति, देवर या ससूर ही मुद्दे उठाते है। इतना ही नहीं राजनितीक पार्टियों में भी उनके पती ही उनका प्रतिनिधित्व करते नजर आते है। कई बार लोकसभा चुनावों में दागी नेताओं का पत्ता कटने पर जिस तरह उनकी बीबियों को मैदान में उतारा गया और "दाग" मिटते ही जिस तरह वे बीबियों से इस्तीफ़ा दिलाकर संसद में लौट गए वह इसी मानसिकता का एक उदाहरण है। बिहार में राबडी देवी इसका सबसे जीवंत प्रतिक है। सिर्फ वे हीं महिलाएं कुछ कर दिखाने में कामयाब हुई जिन्हें परिवार का सहयोग प्राप्त था और जो शिक्षित थी!

महिला आरक्षण के समर्थकों का मानना-
महिला आरक्षण के समर्थकों का मानना है कि
• इससे लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव घटेंगे।
• महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
• पंचायत एवं स्थानीय निकायों में महिला आरक्षण के परिणाम बताते है कि महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा अच्छे से अपनी ज़िम्मेदारी निभाई है। इससे ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र की जड़े मजबूत होगी।
• राजनीति से अपराधीकरण कम होगा।
• रोटेशन पद्धति के कारण कोई भी सीट हमेशा के लिए किसी एक परिवार तक ही सीमित नहीं रहेगी। इससे लोकतंत्र को स्थिरता मिलेगी।
• महिलाओं में नेतृत्व क्षमता का विकास होगा।
• सामाजिक कुरीतियां जैसे कि कन्या भ्रृण हत्या, दहेज, यौन उत्पीडन आदि में सुधार होगा।
लेकिन असल में ये सभी कार्य सिर्फ वे ही महिलाएं कर पाएगी जो शिक्षित होगी! नहीं तो उनकी स्थिति भी राबडी देवी जैसी ही होगी! अब यह हमें सोचना है कि महिलाओं को पहले आरक्षण चाहिए कि शिक्षा?

सिर्फ कानून से महिला की स्थिति नहीं सुधरती-
जब भी महिलाओं को कुछ देने की बात आती है चाहे वह नौकरी हो, कोई पद हो या उनके अन्य कोई अधिकार, उन्हें कृपापात्र बना दिया जाता है। यदी हम समाज के अंदर ही देखें तो महिलाओं के क़ानूनी हक भी उन्हें नहीं दिए जाते। और जब भी दिए जाते है तो एक खैरात के तौर पर! जैसे यदि कोई बेटी पिता की संपत्ति में अपना हिस्सा मांगती है तो सभी लोग उस पर उंगलिया उठाते है। कहा जाता है कि कैसी लालची बेटी है! इतना ही नहीं, मायके से उसके सारे रिश्तें ही खत्म कर दिए जाते है! जबकि हर बेटी का यह कानूनी अधिकार है। अब आप ही बताइए कि ऐसे क़ानून का क्या फायदा जिसका उपयोग ही न किया जा सके? आज समाज में ऐसी कितनी महिलाएं है जिन्होंने इस क़ानून का उपयोग किया या इस क़ानून की वजह से जिन्हें पिता की संपत्ति में हिस्सा मिला? इसी तरह दहेज़ कानून का भी यहीं हाल है। आज भी लड‌की की शादी की बात आते ही सब से पहले यदि किसी बात का जिक्र आता है तो वो है दहेज़! जबकि क़ानूनन दहेज़ पर प्रतिबंध है! ऐसे में सिर्फ आरक्षण से राजनीति में आकर भी महिलाएं ज्यादा कुछ कर पाएंगी, संशयास्पद ही है।

परंपरागत पारिवारिक ढांचा-
राजनीति में महिलाओं की रुचि को सामान्यत: परिवारों में पसंद ही नहीं किया जाता। आमतौर पर पुरुष जीवनसंगिनी के रुप में जब किसी नारी की कामना करता है तो वह उसके सीने-पिरोने, पाक-कला, गृहप्रबंधन, गायन-वादन, मेहंदी-रांगोली, शैक्षिक-योग्यता एवं नौकरी आदि की तो कामना करता है लेकिन उसकी कल्पना में राजनीति कहीं भी नहीं होती। वह होने वाली पत्नी की नेतृत्वक्षमता, राजनितीक रुझान एवं दलीय रुची को जानना ही नहीं चाहता! हां, जब अवसर आए तो वह यह जरुर चाहता है कि पत्नी उसके इच्छानुसार ही वोट दे!! जब तक हमारा पारिवारिक ढाचा ही ऐसा है कि महिलाएं वोट भी अपनी इच्छानुसार नहीं दे सकती तब तक सिर्फ आरक्षण लागू कर महिलाएं राजनीति में आ भी गई तो भी वे अपने परिवार के पुरुष सदस्यों के हाथ की कठपुतली के अलावा कुछ नहीं होगी!!!

दोहरी नीति-
• पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर चलने की बात करनेवाली महिलाएं पुरुष जो सुविधाऐं देता है वो मजे से लिए चली जाती है। जैसे रेल्वे स्टेशन एवं बस स्टॅंड पर टिकट लेते वक्त खूद के महिला होने का फायदा लेते हुए महिलाएं देरी से आकर भी पहले टिकट ले लेती है। क्यों? उस वक्त पुरुषों के बराबरी में लाइन में लग कर अपनी बारी का इंतजार क्यों नहीं करती? क्या यह हम महिलाओं की दोहरी नीति नहीं है?
• कई कार्यक्रम के आयोजक कहते है कि सभा में महिलाओं के लिए विशेष सुविधा है। बराबरी का दावा करनेवाली सारी महिलाओं को मुकदमा चलाना चाहिए आयोजकों के उपर! विशेष सुविधा हमेशा कमजोरों को दी जाती है। और इससे कमजोर और अधिक कमजोर होता चला जाता है।

महिलाओं को आरक्षण नहीं चाहिए क्योंकि
• महिलाएं निकम्मी एवं कामचोर नहीं है और महिलाओं को अपनी मेहनत और काबिलीयत पर पूरा विश्वास है।
• आरक्षण ज़बरदस्ती मांगी गई भीख से अधिक कुछ नहीं है। इस तरह की खैरात लेकर महिलाएं अपने आप को सारी जिंदगी के लिए नाकाबिल नहीं बना सकती।
• रोटी खिला देना बड़ी बात नहीं है। रोटी कमाने लायक बनाना बड़ी बात है।
• समाज या देश के सहीं विकास के लिए किसी भी क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति का प्रवेश सिर्फ और सिर्फ योग्यता के आधार पर होना चाहिए।लाला लाजपतराय जी ने भी कहा था कि "मनुष्य अपने गुणों से आगे बढ़ता है न की दूसरों की कृपा से।"
• किसी भी व्यक्ति को आरक्षण की बैसाखी देकर संतुष्ट तो किया जा सकता है लेकिन योग्यता को पिछे धकेलने से समाज और देश का जो नुकसान होगा उसकी भरपाई किसी भी तरह नहीं हो सकती!
• आरक्षण एक शॉर्टकट है। उससे महिलाओं का भला नहीं हो सकता।
• वैसे भी आरक्षण लोकतंत्र विरोधी है क्योंकि यह सभी को समान अवसर प्राप्त करने से वंचित रखता है।

उपरोक्त बिन्दुओं के आधार पर कहा जा सकता है कि आज देश को महिला आरक्षण लागू करने से ज्यादा जरूरत इस बात की है कि वो महिलाओं की सोच, उनकी कार्यक्षमता, उनकी कार्यशैली पर अपना विश्वास बनायें। महिलाओं को शिक्षित करवायें। शिक्षित महिलाएं यदि राजनीति में आएगी तो सही मायने में देश का कायापलट होने में देर नहीं लगेंगी। महिलाएं शिक्षित होंगी तो वो किसी के भी हाथ की कठपुतली बनने कदापि तैयार नहीं होंगी। यदि महिलाओं को सहीं मायने में किसी चीज की आवश्यकता है तो वह यह कि महिलाएं एक व्यक्ति के रुप में अपनी पहचान बनाएं, फैसले लेने की कला सीखें। जरुरत है तो एक दृढ इच्छाशक्ति की जो कमजोर "महिला ग्रंथी" से मुक्त हो! आरक्षण का मुद्दा सभी पार्टियों के लिए ''सिर्फ एक वोट बॅंक'' है! कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा महिलाओं के गैर इस्तेमाल की एक साजिश से ज्यादा कुछ नहीं है! संक्षेप में महिलाओं को आरक्षण नहीं, शिक्षा चाहिए!!!

यह मेरे अपने विचार है। ज़रुरी नहीं कि आप इससे सहमत ही हो! आपको क्या लगता है, क्या महिलाओं को आरक्षण मिलना चाहिए??