Saturday, June 18, 2016

बलत्कार और बलत्कारी

स्त्रियों के छोटे और उत्तेजक कपड़े पुरुषवर्ग को उकसाने का कार्य करते हैं और बलात्कारी के बचाव में ये एक मजबूत दलील है लेकिन इस दलील का कोई आधार नज़र नहीँ है, जब किसी नवजात या छोटी बच्चियों के साथ ऐसा होता हो.वैसे भी विकृतता मन और मस्तिष्क में होतीं है कि, ज्यादातर अपनी बहन,बेटियां कुछ भी पहने गंदा ख़याल नहीँ आता जबकि कोई परायी स्त्री पूरे कपडों में भी हो तो मन डोल जाता है.
असल में इन्हें अपनी कुंठित इच्छाओं की पूर्ति के लिये महज एक स्त्रीदेह की ज़रूरत होतीं है चाहे वह किसी भी आयुवर्ग की हो, तभी तो ऐसी बच्चियां जिनके अंग विकसित भी न हुए हों और जो 'बलात्कार' शब्द का मतलब भी नहीँ जानती हैं उनका शिकार करने से भी ऐसे लोग बाज नहीँ आते हैं.
कई बार ये कहा जाता है कि जिन्हें सेक्स का मौका नहीँ मिलता है या जो इस मामले में अतृप्त रहते हैं वे ही ऐसे घृणित क़दम उठाते हैं. ये बात भी सत्य प्रतीत नहीँ होतीं है क्योंकि ज्यादातर बलात्कारियों के परिवार और उनका सफल वैवाहिक जीवन पाया गया है. सेक्स आनंद की चीज़ है, शारीरिक जरुरत की चीज है लेकिन जब ये दोतरफा हो तब. एक की मर्जी के बगैर दुसरे का उसके शरीर को रौँदने और कुचलने से बड़ा घृणित कुकर्म और कुछ भी नहीँ हो सकता है.
बलात्कार का मनोविज्ञान क्या है अर्थात बलात्कार से ठीक पहले, उसे करते समय और उसके बाद एक बलात्कारी की क्या सोच होतीं है, उसके दिमाग में क्या चल रहा होता है, सभी अपनी-2 बुद्धि और ज्ञान के हिसाब से इसपर अनुमान ही लगाने की कोशिश करते हैं कि, क्या हुआ होगा, किन परिस्थितियों में हुआ होगा, किस तरह हुआ होगा.........वगैरह-2.
खैर इसका सटीक मनोवैज्ञानिक कारण तो फिलहाल शोध का विषय है लेकिन अभी तक की प्राप्त जानकारियों के हिसाब से इसके पीछे दो कारण सशक्त रुप से उभरकर सामने आते हैं.....पहला ये कि,किसी स्त्री के शरीर को रौँदकर उसका विकृत आनंद लेना और दूसरा, किसी बात का बदला लेने के लिये स्त्री के देह को कुचलना. बलात्कार या तो एकल अर्थात एक आदमी के द्वारा किया जाता है या फ़िर सामूहिक रुप से मतलब एक से अधिक पुरुषों के द्वारा.....
सामूहिक बलात्कार का चलन हाल के वर्षों में बहुत ज्यादा बढ़ गया है. इसकी वजह यही नज़र आती है कि ज्यादा लोगों के रहने से इनका आत्मबल मज़बूत रहता है, स्त्री पर कब्जा पाना आसान होता है, दुष्कर्म के दौरान अगर वह मर जाये तो उसकी लाश को ठिकाने लगाने तथा सबूत मिटाने में आसानी होतीं है.
बहरहाल इस अपराध की रोकथाम के सारे उपाय व्यर्थ प्रतीत हो रहे हैं क्योंकि हरएक स्त्री को चौबीसों घंटे की सुरक्षा दे पाना हर समय काल में असंभव है, और रहेगा.. जब तक अपेक्षित मानसिक और वैचारिक सुधार नहीँ होगा, तब तक इस दिशा में कोई सफलता नहीँ मिलेगी......

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