Sunday, June 19, 2016

क्या महिलाओं को आरक्षण मिलना चाहिए??

सदियों से दोषपुर्ण सामाजिक अव्यवस्थाओं की शिकार महिलाओं के कल्याण हेतु, उन्हें मुख्य धारा में जोड़ने हेतु एवं महिला अत्याचारों पर लगाम कसने हेतु महिला आरक्षण की बात की जाती है। लेकिन हमने कभी सोचा है कि क्या आरक्षण मिलने भर से महिलाओं की स्थिति सुधर जाएगी या उनके प्रति हो रहे अत्याचारों में कमी आ जाएगी

सदियों से दोषपुर्ण सामाजिक अव्यवस्थाओं की शिकार महिलाओं के कल्याण हेतु, उन्हें मुख्य धारा में जोड़ने हेतु एवं महिला अत्याचारों पर लगाम कसने हेतु महिला आरक्षण की बात की जाती है। लेकिन हमने कभी सोचा है कि क्या आरक्षण मिलने भर से महिलाओं की स्थिति सुधर जाएगी या उनके प्रति हो रहे अत्याचारों में कमी आ जाएगी?

आज तक का इतिहास-
• हमारे पुरुषप्रधान समाज ने हजारों वर्षों से बगैर किसी महिला आरक्षण के ऐसी महिला नेत्रियां प्रदान की है, जिन्हें अनुकरणीय मान नारी इतिहास गौरवान्वित है। कस्तूरबा गांधी, सावित्रिबाई फुले, कमला चट्टोपाध्याय, विजयालक्ष्मी पंडित और कैप्टन लक्ष्मी सहगल आदि कुछ ऐसे नाम है जिन्हें कभी भी किसी आरक्षण की जरुरत नहीं पड़ी। ये उस कालखंड की विभुतियां है जब महिलाओं में साक्षरता का प्रतिशत अत्यंत ही कम था। बड़े-बड़े घुंघटों के बीच समाज ने उन्हें परदे से ढक रखा था। इस दृष्टिकोण से जब आज की पढ़ी-लिखी नारी आरक्षण की वकालत करती है तो आश्चर्य होता है।

• पंचायत समितियों में एवं स्थानीय निकायो में आरक्षण से जो महिलाएं राजनीति में आई है उनमें भी ज्यादातर महिला सरपंच के अधिकारों का उपयोग उनके पति, ससूर एवं देवर कर रहे है। ग्रामसभा एवं पंचायत समिति की बैठकों में भी महिला सरपंचों के बजाय उनके पति, देवर या ससूर ही मुद्दे उठाते है। इतना ही नहीं राजनितीक पार्टियों में भी उनके पती ही उनका प्रतिनिधित्व करते नजर आते है। कई बार लोकसभा चुनावों में दागी नेताओं का पत्ता कटने पर जिस तरह उनकी बीबियों को मैदान में उतारा गया और "दाग" मिटते ही जिस तरह वे बीबियों से इस्तीफ़ा दिलाकर संसद में लौट गए वह इसी मानसिकता का एक उदाहरण है। बिहार में राबडी देवी इसका सबसे जीवंत प्रतिक है। सिर्फ वे हीं महिलाएं कुछ कर दिखाने में कामयाब हुई जिन्हें परिवार का सहयोग प्राप्त था और जो शिक्षित थी!

महिला आरक्षण के समर्थकों का मानना-
महिला आरक्षण के समर्थकों का मानना है कि
• इससे लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव घटेंगे।
• महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
• पंचायत एवं स्थानीय निकायों में महिला आरक्षण के परिणाम बताते है कि महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा अच्छे से अपनी ज़िम्मेदारी निभाई है। इससे ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र की जड़े मजबूत होगी।
• राजनीति से अपराधीकरण कम होगा।
• रोटेशन पद्धति के कारण कोई भी सीट हमेशा के लिए किसी एक परिवार तक ही सीमित नहीं रहेगी। इससे लोकतंत्र को स्थिरता मिलेगी।
• महिलाओं में नेतृत्व क्षमता का विकास होगा।
• सामाजिक कुरीतियां जैसे कि कन्या भ्रृण हत्या, दहेज, यौन उत्पीडन आदि में सुधार होगा।
लेकिन असल में ये सभी कार्य सिर्फ वे ही महिलाएं कर पाएगी जो शिक्षित होगी! नहीं तो उनकी स्थिति भी राबडी देवी जैसी ही होगी! अब यह हमें सोचना है कि महिलाओं को पहले आरक्षण चाहिए कि शिक्षा?

सिर्फ कानून से महिला की स्थिति नहीं सुधरती-
जब भी महिलाओं को कुछ देने की बात आती है चाहे वह नौकरी हो, कोई पद हो या उनके अन्य कोई अधिकार, उन्हें कृपापात्र बना दिया जाता है। यदी हम समाज के अंदर ही देखें तो महिलाओं के क़ानूनी हक भी उन्हें नहीं दिए जाते। और जब भी दिए जाते है तो एक खैरात के तौर पर! जैसे यदि कोई बेटी पिता की संपत्ति में अपना हिस्सा मांगती है तो सभी लोग उस पर उंगलिया उठाते है। कहा जाता है कि कैसी लालची बेटी है! इतना ही नहीं, मायके से उसके सारे रिश्तें ही खत्म कर दिए जाते है! जबकि हर बेटी का यह कानूनी अधिकार है। अब आप ही बताइए कि ऐसे क़ानून का क्या फायदा जिसका उपयोग ही न किया जा सके? आज समाज में ऐसी कितनी महिलाएं है जिन्होंने इस क़ानून का उपयोग किया या इस क़ानून की वजह से जिन्हें पिता की संपत्ति में हिस्सा मिला? इसी तरह दहेज़ कानून का भी यहीं हाल है। आज भी लड‌की की शादी की बात आते ही सब से पहले यदि किसी बात का जिक्र आता है तो वो है दहेज़! जबकि क़ानूनन दहेज़ पर प्रतिबंध है! ऐसे में सिर्फ आरक्षण से राजनीति में आकर भी महिलाएं ज्यादा कुछ कर पाएंगी, संशयास्पद ही है।

परंपरागत पारिवारिक ढांचा-
राजनीति में महिलाओं की रुचि को सामान्यत: परिवारों में पसंद ही नहीं किया जाता। आमतौर पर पुरुष जीवनसंगिनी के रुप में जब किसी नारी की कामना करता है तो वह उसके सीने-पिरोने, पाक-कला, गृहप्रबंधन, गायन-वादन, मेहंदी-रांगोली, शैक्षिक-योग्यता एवं नौकरी आदि की तो कामना करता है लेकिन उसकी कल्पना में राजनीति कहीं भी नहीं होती। वह होने वाली पत्नी की नेतृत्वक्षमता, राजनितीक रुझान एवं दलीय रुची को जानना ही नहीं चाहता! हां, जब अवसर आए तो वह यह जरुर चाहता है कि पत्नी उसके इच्छानुसार ही वोट दे!! जब तक हमारा पारिवारिक ढाचा ही ऐसा है कि महिलाएं वोट भी अपनी इच्छानुसार नहीं दे सकती तब तक सिर्फ आरक्षण लागू कर महिलाएं राजनीति में आ भी गई तो भी वे अपने परिवार के पुरुष सदस्यों के हाथ की कठपुतली के अलावा कुछ नहीं होगी!!!

दोहरी नीति-
• पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर चलने की बात करनेवाली महिलाएं पुरुष जो सुविधाऐं देता है वो मजे से लिए चली जाती है। जैसे रेल्वे स्टेशन एवं बस स्टॅंड पर टिकट लेते वक्त खूद के महिला होने का फायदा लेते हुए महिलाएं देरी से आकर भी पहले टिकट ले लेती है। क्यों? उस वक्त पुरुषों के बराबरी में लाइन में लग कर अपनी बारी का इंतजार क्यों नहीं करती? क्या यह हम महिलाओं की दोहरी नीति नहीं है?
• कई कार्यक्रम के आयोजक कहते है कि सभा में महिलाओं के लिए विशेष सुविधा है। बराबरी का दावा करनेवाली सारी महिलाओं को मुकदमा चलाना चाहिए आयोजकों के उपर! विशेष सुविधा हमेशा कमजोरों को दी जाती है। और इससे कमजोर और अधिक कमजोर होता चला जाता है।

महिलाओं को आरक्षण नहीं चाहिए क्योंकि
• महिलाएं निकम्मी एवं कामचोर नहीं है और महिलाओं को अपनी मेहनत और काबिलीयत पर पूरा विश्वास है।
• आरक्षण ज़बरदस्ती मांगी गई भीख से अधिक कुछ नहीं है। इस तरह की खैरात लेकर महिलाएं अपने आप को सारी जिंदगी के लिए नाकाबिल नहीं बना सकती।
• रोटी खिला देना बड़ी बात नहीं है। रोटी कमाने लायक बनाना बड़ी बात है।
• समाज या देश के सहीं विकास के लिए किसी भी क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति का प्रवेश सिर्फ और सिर्फ योग्यता के आधार पर होना चाहिए।लाला लाजपतराय जी ने भी कहा था कि "मनुष्य अपने गुणों से आगे बढ़ता है न की दूसरों की कृपा से।"
• किसी भी व्यक्ति को आरक्षण की बैसाखी देकर संतुष्ट तो किया जा सकता है लेकिन योग्यता को पिछे धकेलने से समाज और देश का जो नुकसान होगा उसकी भरपाई किसी भी तरह नहीं हो सकती!
• आरक्षण एक शॉर्टकट है। उससे महिलाओं का भला नहीं हो सकता।
• वैसे भी आरक्षण लोकतंत्र विरोधी है क्योंकि यह सभी को समान अवसर प्राप्त करने से वंचित रखता है।

उपरोक्त बिन्दुओं के आधार पर कहा जा सकता है कि आज देश को महिला आरक्षण लागू करने से ज्यादा जरूरत इस बात की है कि वो महिलाओं की सोच, उनकी कार्यक्षमता, उनकी कार्यशैली पर अपना विश्वास बनायें। महिलाओं को शिक्षित करवायें। शिक्षित महिलाएं यदि राजनीति में आएगी तो सही मायने में देश का कायापलट होने में देर नहीं लगेंगी। महिलाएं शिक्षित होंगी तो वो किसी के भी हाथ की कठपुतली बनने कदापि तैयार नहीं होंगी। यदि महिलाओं को सहीं मायने में किसी चीज की आवश्यकता है तो वह यह कि महिलाएं एक व्यक्ति के रुप में अपनी पहचान बनाएं, फैसले लेने की कला सीखें। जरुरत है तो एक दृढ इच्छाशक्ति की जो कमजोर "महिला ग्रंथी" से मुक्त हो! आरक्षण का मुद्दा सभी पार्टियों के लिए ''सिर्फ एक वोट बॅंक'' है! कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा महिलाओं के गैर इस्तेमाल की एक साजिश से ज्यादा कुछ नहीं है! संक्षेप में महिलाओं को आरक्षण नहीं, शिक्षा चाहिए!!!

यह मेरे अपने विचार है। ज़रुरी नहीं कि आप इससे सहमत ही हो! आपको क्या लगता है, क्या महिलाओं को आरक्षण मिलना चाहिए??

No comments:

Post a Comment