Monday, April 24, 2017

"कई बार हम महिलाएं ही 'मासिक धर्म'(Menstruation) जैसी आम और प्राकृतिक चीज़ों को इतना जटिल बना देते हैं कि पुरुष इसको लेकर असहज हो जाते हैं"

"कई बार हम महिलाएं ही 'मासिक धर्म'(Menstruation) जैसी आम और प्राकृतिक चीज़ों को इतना जटिल बना देते हैं कि पुरुष इसको लेकर असहज हो जाते हैं"
कैफ़े से बाहर निकलते हुए जब मैं पार्किंग लॉट में पहुँची तो एक लड़की मेरी बाइक के बगल वाली स्कूटी पर बैठी हुई थी, वो कुछ घबराई हुई और डरी हुई लग रही थी। इतनी देर में उस स्कूटी के मालिक आ गए और उन्होंने लड़की को स्कूटी से उतरने के लिए कहा, लड़की ने उनसे विनम्रता से कहा कि क्या वो कुछ देर वहाँ बैठ सकती है। उस व्यक्ति ने इसकी वजह जाननी चाही, इसके बाद वो लड़की और घबरा गई, उसके चेहरे का रंग उड़ गया। मैं उस लड़की से बात करना चाह रही थी पर नहीं कर सकी, इतने में वो व्यक्ति उस लड़की से स्कूटी पर से उतरने की ज़िद करने लगा।
अब वो लड़की रोने लगी, उसको रोता देख मैं उसके पास जाने लगी कि तभी स्कूटी वाले का एक और दोस्त वहाँ आ गया और उसने लड़की से बात करने की कोशिश की। लड़की धीमी आवाज़ में कुछ कहने लगी, उसके मुँह से 'खून', 'डेट्स', 'पीरियड्स', 'माफ़ कर दीजिये', यही सारे शब्द सुनाई दिए। उस लड़के ने बात समझ ली और उसने लड़की को शांत रहने के लिए कहा और अपने दोस्त को किनारे लेकर गया। वो लड़का अपने दोस्त को कुछ समझा रहा था कि तब तक मैं वहाँ पहुँच गई, उसने बिना किसी झिझक के मुझसे मदद माँगी। उसने कहा-
"हे, क्या तुम हमारी मदद कर सकती हो? मुझे लगता है कि उस लड़की को उसकी पहली पीरियड्स हुई हैं और वो अकेली और घबराई हुई है। तुम प्लीज़ उसका ध्यान रखो, तब तक मैं सेनेटरी पैड लेकर आता हूँ।"
मैं वहाँ स्तब्ध खड़ी थी और मेरे मुँह से बस इतना निकला- "हाँ, ठीक है, आप जाओ।"
इस पूरी घटना पर उस लड़के की संवेदनशीलता और सकारात्मक नज़रिये को देखकर मैं हैरान थी। मैं उस लड़की के पास गई और उसे शांत कराया, मैंने उससे कहा कि इसमें घबराने की कोई बात नहीं है। थोड़े समय बाद वो लड़का सेनेटरी पैड लेकर आ गया और मैं उस लड़की को अपने साथ वाशरूम लेकर गई। उस लड़के ने अपना नंबर भी दिया और कहा कि मैं उस लड़की का ख्याल रखूँ और कोई और ज़रूरत पड़ने पर उसे फ़ोन कर दूँ।
उस दिन मुझे एहसास हुआ कि कई बार हम महिलाओं के नज़रिये में भी फ़र्क हो जाता है। कई बार हम महिलाएं ही 'मासिक धर्म'(Menstruation) जैसी आम और प्राकृतिक चीज़ों को इतना जटिल बना देते हैं कि पुरुष इसको लेकर असहज हो जाते हैं। मासिक धर्म कोई पाप या समस्या नहीं है, और किसी आम लड़के के लिए भी ये कोई समस्या नहीं है। यह तो हमारा समाज है जिसने इसपर संस्कार और ना जाने किन-किन चीज़ों की चादरों को डाल दिया है। मासिक धर्म एक लड़की को हर महीने होता है और इसको लेकर शर्म महसूस करना या इसके बारे में बात ना करना, ये अज्ञानता है।
उस लड़के ने जो किया उससे मैं इतना तो जान गई कि हमारे समय के लड़कों में भी इसको लेकर जागरुकता बढ़ी है, जो कि अच्छी बात है। उस घटना से मुझे एहसास हुआ कि एक लड़का भी सेनेटरी पैड खरीद सकता है, समाज चाहे जो समझे। एक लड़की सेनेटरी पैड को अखबारों में लपेटे और काली प्लास्टिक में छिपाए बिना भी ले जा सकती है और मासिक धर्म के बारे में सार्वजनिक रूप से बात करना भी पाप नहीं है। उस लड़के ने मुझे सिखाया कि मासिक धर्म को लेकर समाज में जितनी संकीर्ण सोच है उसमें हम महिलाओं का भी दोष उतना ही है, हमें साथ मिलकर ही इसको बदलना होगा और मैं जानती हूँ हमारी पीढ़ी इस सोच को बदल रही है और बदल देगी।

एक_अच्छी_बेटी_का_अपने_प्रेमीको_जवाब

"हाँ ये सच है की 
मुझे तुमसे मोहब्बत है,
ये भी सच है की मैं तुम्हारी
चाहत हूँ...पर मेरी जिंदगी में
चाहतो की कमी तो नही...,
रिश्ते और भी है एक तुम्ही तो नही..
"अपनी जात के इस पहलु से आज मिलवाती हूँ...??
मैं क्या हूँ कैसे बतलाऊं तुम्हे..??
अपनी माँ की तबियत हूँ
मैं,इज्ज़त हूँ अपने पापा की..,
मान हूँ अपने भाई का,
निशान हूँ अपनी बहनो की परछाई का...
तो बहक जाऊं मैं ये कभी मुमकिन ही नही...,
की दिल वो सब भी रखते हैं,
एक तुम्ही तो नही....!!
#Respect_Womans
बेटियों के लिए थोड़ी सी भी इज्जत दिल में है ,

Saturday, April 15, 2017

एक दुखिया

#आज तबियत कुछ ठीक नहीं है इसलिए प्लीज़ आज नहीं। मुझे असुविधा होती है।
समझा करो। समझा करो,😢😢😢
#क्या समझूँ तुम्हारा तो ये हर महीने का नाटक है, सारे मूड का सत्यानाश कर दिया। कोई फर्क नहीं पड़ता , मुझे तुम्हारे इस तरह के चोंचलों से, ज्यादा दिमाग ना ख़राब करो। अरे सुनो तो प्लीज़, मुझे बहुत पेन है इसलिए कह रही हूँ।
#एकदम बर्दाश्त ही नहीं हो रहा है। तो मैं क्या करूँ दर्द हो रहा है तो, इसलिए शादी की है क्या, तुम्हारे नखरे तो कम होने का नाम ही नहीं लेते, कभी बुखार है तो कभी सिरदर्द है, कभी थक गई हो तो कभी बच्चा रो रहा है और ऊपर से ये तुम्हारा हर महीने का सिरदर्द। कैसी औरत से पाला पड़ा है। किसी काम की नहीं हो, इससे अच्छा तुम वापस अपने माँ बाप के पास चली जाओ। जरुरत नहीं है मुझे तुम्हारी। जाओ यहाँ से। निकल जाओ मेरे घर से।
#थप्पड़, घूँसा, लात और नीले निशान। किसको दिखाए वो, किसको बताये। सास से बोली, तो सास बोली भइया ये तुम दोनों परानी का मामला है जैसा वो चाहेगा तुमको करना पड़ेगा।
#मायके वालों से कुछ कह नहीं सकती। किसी तरह माँ से कुछ दबे ढंके स्वर में कुछ बताया भी तो , बेटा रहना तो वहीँ है तो बर्दाश्त करो। चाहे जैसे हो। माँ मैं अब वापस नहीं जाना चाहती,
#उस घर में, जहाँ मुझे इंसान ही नहीं समझा जाता। माँ वो बिल्कुल जानवर हैं। मैं नहीं जाउंगी अब, मुझे उनसे डर लगता है।
#देखो ना माँ मेरी पीठ, कितने नीले निशान हैं, 2 महीने पहले तो मेरा हाथ ही टूट गया था, अभी 10 दिन पहले प्लास्टर कटा है। अब मुझसे जाने को ना कहना। हाँ तुम्हारे पास भी जगह ना हो मेरे लिए, तो बता देना माँ। बता देना।😢😢😢😢😢
Jitender Kumar

Wednesday, April 12, 2017

मन की बात !

गंदी सोच और नियत ज़हन की ही होती है..

वरना अंगों की बनावट तो बहन की भी होती है...!

Thursday, April 6, 2017

नारी पूजन पर्व और रामनवमी के अवसर पर एक कविता "बराबर हूं मैं!"

कुछ विशेष अंतर नहीं है हम दोनों में 

केवल शरीर के बनावट से 

हम भिन्न हैं एक दूसरे से
शेष भावनायें, विचार और दृष्टिकोण का
अलग होना कारण है इसी भिन्न बनावट का!
फिर क्यों? किस अधिकार से
सीमा मेरे लाज की तुम नाप लेते हो?
ये अंतर मात्र अंतर है मेरी कमी नहीं
बाकी हर प्रकार से बराबर हूं मैं तुम्हारे
गर्भ में निर्माण और जन्म के प्रकार तक
आबादी के प्रवाह और दायित्वों के निर्वाह तक
मैं कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हूं बराबर तुम्हारे
फिर क्यों? किस अधिकार से
मात्रा मेरे अधिकार की तुम माप लेते हो?
मैं भी स्वतंत्र, भयमुक्त होकर
जीवन के अंतरंग क्षणों को
अपने स्मृतियों में सजाना चाहती हूं
तुम्हारी गठीली भुजाएं और चौडे सीने देखकर
मेरी आखों में डोरे नहीं पडते, परन्तु
मेरे वक्षोज का कसाव, मेरे छोटे वस्त्र देख
तुम्हारी नसों में तनाव आ जाता है!
दोष किसका है? मेरी स्कर्ट की ऊंचाई का, या
तुम्हारी सोच की निचाई का!
फिर क्यों? किस अधिकार से
मेरे चरित्र के भार को तुम तौलने लगते हो?
तुम कौन होते हो?
मेरी मर्यादा का संविधान लिखने वाले
मेरी सहनशीलता का गुणगान लिखने वाले
स्मरण करो, पुरुषोत्तम की रक्षा में
सिंहासन की इच्छा में
मुझ गर्भवती को वन में छोड़ आये थे!
राजनीतिक शिखर की कामना हेतु
अपने वर्चस्व की स्थापना हेतु
तुम ही मेरे पवित्र अथाह प्रेम का
मधुकलश तोड आये थे!
तुम कौन होते हो?
मुझे बुर्कों में फतवों में जकडने वाले
तीन तलाक का भय दिखाकर
झूठी मर्दानगी में अकडने वाले!
मैं क्यों घूंघट में छुपकर रहूं,
चौके आंगन तक रुककर रहूं?
तुम्हारी तरह मैं भी
अपने अधिकारों की बात करती हूं!
फिर क्यों? किस अधिकार से
मेरे प्रश्न सुनकर तुम खौलने लगते हो?
भूल गये इतिहास में जडे प्रमाणों को, जब
यम के फांस से तुम्हे मैने छुड़ाया था,
त्रिदेव थे किन्तु अपने सतीत्व के बल से
शिशु बना तुम्हे मैने भोजन खिलाया था!
भरी सभा में मुझे नग्न करना चाहा था तुमने
परन्तु परिणाम क्या हुआ? स्मृतियों में झांको
तुम्हारे रक्त से अपना केश मैने धुलाया था!
अग्निपरीक्षा से गुजरी विषपान किया तब उभरी
सीता, राधा, मीरा हार कभी ना मानी थी
तुम व्यसनों में डूबे थे शत्रुओं के पापी मंसूबे थे
जब शस्त्र उठाया मैने तब तुमने भृकुटी तानी थी
प्रमाण असंख्य हैं मेरे बलिदानों के
फिर क्यों? किस अधिकार से
मेरे अस्तित्व मेरी अस्मिता को तुम
अपनी नपुंसकता से रौंदने लगते हो ?

- दीप DAS'