"कई बार हम महिलाएं ही 'मासिक धर्म'(Menstruation) जैसी आम और प्राकृतिक चीज़ों को इतना जटिल बना देते हैं कि पुरुष इसको लेकर असहज हो जाते हैं"
कैफ़े से बाहर निकलते हुए जब मैं पार्किंग लॉट में पहुँची तो एक लड़की मेरी बाइक के बगल वाली स्कूटी पर बैठी हुई थी, वो कुछ घबराई हुई और डरी हुई लग रही थी। इतनी देर में उस स्कूटी के मालिक आ गए और उन्होंने लड़की को स्कूटी से उतरने के लिए कहा, लड़की ने उनसे विनम्रता से कहा कि क्या वो कुछ देर वहाँ बैठ सकती है। उस व्यक्ति ने इसकी वजह जाननी चाही, इसके बाद वो लड़की और घबरा गई, उसके चेहरे का रंग उड़ गया। मैं उस लड़की से बात करना चाह रही थी पर नहीं कर सकी, इतने में वो व्यक्ति उस लड़की से स्कूटी पर से उतरने की ज़िद करने लगा।
अब वो लड़की रोने लगी, उसको रोता देख मैं उसके पास जाने लगी कि तभी स्कूटी वाले का एक और दोस्त वहाँ आ गया और उसने लड़की से बात करने की कोशिश की। लड़की धीमी आवाज़ में कुछ कहने लगी, उसके मुँह से 'खून', 'डेट्स', 'पीरियड्स', 'माफ़ कर दीजिये', यही सारे शब्द सुनाई दिए। उस लड़के ने बात समझ ली और उसने लड़की को शांत रहने के लिए कहा और अपने दोस्त को किनारे लेकर गया। वो लड़का अपने दोस्त को कुछ समझा रहा था कि तब तक मैं वहाँ पहुँच गई, उसने बिना किसी झिझक के मुझसे मदद माँगी। उसने कहा-
"हे, क्या तुम हमारी मदद कर सकती हो? मुझे लगता है कि उस लड़की को उसकी पहली पीरियड्स हुई हैं और वो अकेली और घबराई हुई है। तुम प्लीज़ उसका ध्यान रखो, तब तक मैं सेनेटरी पैड लेकर आता हूँ।"
मैं वहाँ स्तब्ध खड़ी थी और मेरे मुँह से बस इतना निकला- "हाँ, ठीक है, आप जाओ।"
इस पूरी घटना पर उस लड़के की संवेदनशीलता और सकारात्मक नज़रिये को देखकर मैं हैरान थी। मैं उस लड़की के पास गई और उसे शांत कराया, मैंने उससे कहा कि इसमें घबराने की कोई बात नहीं है। थोड़े समय बाद वो लड़का सेनेटरी पैड लेकर आ गया और मैं उस लड़की को अपने साथ वाशरूम लेकर गई। उस लड़के ने अपना नंबर भी दिया और कहा कि मैं उस लड़की का ख्याल रखूँ और कोई और ज़रूरत पड़ने पर उसे फ़ोन कर दूँ।
उस दिन मुझे एहसास हुआ कि कई बार हम महिलाओं के नज़रिये में भी फ़र्क हो जाता है। कई बार हम महिलाएं ही 'मासिक धर्म'(Menstruation) जैसी आम और प्राकृतिक चीज़ों को इतना जटिल बना देते हैं कि पुरुष इसको लेकर असहज हो जाते हैं। मासिक धर्म कोई पाप या समस्या नहीं है, और किसी आम लड़के के लिए भी ये कोई समस्या नहीं है। यह तो हमारा समाज है जिसने इसपर संस्कार और ना जाने किन-किन चीज़ों की चादरों को डाल दिया है। मासिक धर्म एक लड़की को हर महीने होता है और इसको लेकर शर्म महसूस करना या इसके बारे में बात ना करना, ये अज्ञानता है।
उस लड़के ने जो किया उससे मैं इतना तो जान गई कि हमारे समय के लड़कों में भी इसको लेकर जागरुकता बढ़ी है, जो कि अच्छी बात है। उस घटना से मुझे एहसास हुआ कि एक लड़का भी सेनेटरी पैड खरीद सकता है, समाज चाहे जो समझे। एक लड़की सेनेटरी पैड को अखबारों में लपेटे और काली प्लास्टिक में छिपाए बिना भी ले जा सकती है और मासिक धर्म के बारे में सार्वजनिक रूप से बात करना भी पाप नहीं है। उस लड़के ने मुझे सिखाया कि मासिक धर्म को लेकर समाज में जितनी संकीर्ण सोच है उसमें हम महिलाओं का भी दोष उतना ही है, हमें साथ मिलकर ही इसको बदलना होगा और मैं जानती हूँ हमारी पीढ़ी इस सोच को बदल रही है और बदल देगी।
मेरी लिखी बातों को हर कोई समझ नही सकता,क्योंकि मैं अहसास लिखती हूँ,और लोग अल्फ़ाज पढ़ते हैं..! अनुश्री__________________________________________A6
Monday, April 24, 2017
"कई बार हम महिलाएं ही 'मासिक धर्म'(Menstruation) जैसी आम और प्राकृतिक चीज़ों को इतना जटिल बना देते हैं कि पुरुष इसको लेकर असहज हो जाते हैं"
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