Tuesday, October 9, 2018

“मेरा पति मेरा गर्भपात कराना चाहता है ताकि उसे यौन संबंध बनाने में दिक्कत ना हो”

“मैं सरकारी नौकरी करती हूं और मेरी शादी के दस महीने हो गए हैं। हर लड़की की चाहत होती है कि शादी के बाद एक दिन वो भी माँ बने। शादी से पहले मैं भी ऐसा सपना देखती थी, लेकिन मेरे पति ने सारे अरमानों पर पानी फेर दिया। दरअसल उसे कॉन्डम के साथ मज़ा नहीं आता है और इसलिए मैं अकसर गोलियां खाया करती थी। गोलियों से मेरी तबियत खराब हो जाती थी, इसलिए मैंने गोलियां लेनी बंद कर दी। पांच महीने हो चुके हैं मैं गर्भवती हूं और मेरे पति लगातार मुझे गर्भपात के लिए कहते रहते हैं। लेकिन मुझे यह हत्या लगता है, इसलिए मैंने साफ तौर पर मना कर दिया है।

मेरा पति गर्भपात इसलिए करवाना चाहता है ताकि उसे सेक्स करने में कोई परेशानी ना हो। एक तो मैं सुबह से लेकर शाम तक ऑफिस में होती थी और जब घर लौटती थी तब पॉर्न फिल्मों से प्रेरित होकर मेरा पति मेरी जान निकाल देता था।
मैंने कई बार उसे मना किया लेकिन वो सुनने वालों में से कहां था। उसे तो सुबह से लेकर शाम तक बस सेक्स ही चाहिए था। मैंने जब कहा कि मैं गर्भवती हूं तब उसने मुझे बहुत मारा और वो भी पेट पर ताकि मेरा बच्चा मर जाए। क्योंकि उसके लिए हमारा बच्चा तो सेक्स करने में बाधा बन रहा था ना।
अगले दिन जब मुझे काफी ब्लीडिंग हुई तब लगा कि मेरा बच्चा मर चुका होगा। एक दिन फिर जब मैंने मना किया तब उसने चाय बनाने वाली बर्तन से मेरे सर पर तब तक मारा जब तक वो लगभग टूट ना गया और उसका निशाना फिर से मेरे पेट में पल रहा उसका बच्चा था। उसने दो चार लात पेट पर लगा ही दी। मैं तीन महीने में तीन बार अल्ट्रासाउंड करवा चुकी हूं, यह जानने के लिए कि मेरा बच्चा ज़िन्दा है भी या नहीं। यूं तो रोज़ मैं बलात्कार का शिकार होती हूं। इतना डरती हूं कि रात-रात भर जागी रहती हूं, क्या पता वो मुझे सोते हुए कहीं मार ना दें।
लेकिन मां-बाबूजी कहते हैं कि समाज क्या कहेगा, थोड़ा एडजस्ट करो। उन्हें समाज की चिंता है और मुझे उनके मान-सम्मान की। शादी से पहले जब भी मैं कोई रोमांटिक सीन देखती थी तब मुझे अच्छा लगता था, लेकिन आज सेक्स मेरे लिए अत्याचार से बढ़कर कुछ भी नहीं है।
मेरे सास-ससुर कहते हैं कि मैं औरत हूं और औरतों की ज़िन्दगी ऐसी ही होती है। अगर यह बात सच है तब निःसंदेह मुझे ऐसी ज़िन्दगी नहीं चाहिए। मैं समाज से पूछना चाहती हूं कि क्या मेरे सास की ज़िन्दगी भी ऐसी थी।
वो कहता हैं मैं कोल्ड हूं, मैं ‘टर्न ऑन’ नहीं होती। क्या मैं मशीन हूं जिसे आप जब चाहे बटन दबाकर ‘टर्न ऑन’ कर सकते हैं। मेरा कोई दोस्त नहीं है और खासकर लड़का तो और भी नहीं, क्योंकि मेरे पति को लड़कों से मेरा बात करना पसंद नहीं है। हां, उसकी कोई गर्लफ्रेंड ज़रूर थी जिनसे उसकी आज भी बातचीत होती है। मैं उसके पिछले रिश्ते पर ध्यान नहीं देती क्योंकि मुझे पता है समय के साथ वो खत्म हो जाएगा। अब मैं अपने बच्चे को बचाने में लगी रहती हूं।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि मेरे चोट के निशान के बारे में जब भी ऑफिस की एक महिला साथी पूछती है, तब मैं यहीं कहती हूं कि बाथरूम में गिर गई थी और वो मुस्कुराते हुए कहती हैं कि मैं भी लगभग रोज़ बाथरूम में गिर जाती थी। वो ये कहकर चली जाती है कि जब औरत बाथरूम में गिरने लगे तब समझ लेना उसकी शादी कभी नहीं टूटेगी, जैसे उनकी आज तक नहीं टूटी। मैं यह सुनकर खौफज़दा हो जाती हूं कि क्या समाज का मान रखने के लिए मुझे इसकी आदत लगानी पड़ेगी।
मैं हमेशा सोचती रहती हूं कि आत्महत्या कर लूं, लेकिन गर्भवती होने की वजह से अब तो आत्महत्या भी नहीं कर सकती। पढ़ी लिखी होने के बाद भी अगर मेरे साथ ऐसी चीज़ें हो सकती हैं, फिर उन औरतों का क्या होता होगा जो मेरी तरह नहीं है।
मैं रोज़ मरती हूं लेकिन जीना अब मेरी मजबूरी बन गई है। मृत्यु स्वतंत्रता जैसी लगती है। शादी तोड़ना चाहती हूं, लेकिन क्या यह समाज कभी सोचेगा कि मैं अकेले एक स्वतंत्र महिला के रूप में जीवन जी सकती हूं।
क्या ‘समय’ मेरी आत्मा पर लगे घाव भी भर देगा? वो लातें जो मेरे पेट पर लगी थीं वो असल में पेट नहीं आत्मा पर घाव कर गई थी।मेरे आत्मसम्मान की धज्जियां उड़ गई।
हम सब गर्व करते हैं कि ये महान, वो महान और अंत में कहते हैं कि मेरा भारत महान। जिस महान देश में मेरे जैसी औरतों का ये हाल हो, वैसी महानता किस काम की। मेरा ईश्वर पर से विश्वास उठ गया है क्योंकि मेरा पति परमेश्वर है। भगवानों में श्रेष्ठ! श्रेष्ठ का ही जब हाल ऐसा हो, तब उसके नीचे वाले क्या करते होंगे, सोचकर ही रूह कांप जाती है।
आपके कई लेख यूथ की आवाज़ पर पढ़ने के बाद दिल में एक उम्मीद जगी। आप कुछ कर नहीं सकते, कम-से-कम समझ तो सकते हो। हर कोई मुझे एडजस्ट करने ही कहता है। अब आप बताएं एडजस्मेंट तो ज़िन्दगी से किया जाएगा ना, मृत्यु से कोई कैसे एडजस्ट करे? मैं अपना नाम भी नहीं बता रही क्योंकि मैं पहचान, अस्मिता सब कुछ खो चुकी हूं। मेरा गुमनाम हो जाना ही मेरे अच्छे औरत होने की निशानी है।”

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