Tuesday, August 30, 2016

I AM NOT A PRODUCT !

‘अरे! तुमने ब्रा ऐसे ही खुले में सूखने को डाल दी?’ तौलिये से ढंको इसे। ऐसा एक मां अपनी 13-14 साल की बेटी को उलाहने के अंदाज में कहती है।

‘तुम्हारी ब्रा का स्ट्रैप दिख रहा है’, कहते हुए एक लड़की अपनी सहेली के कुर्ते को आगे खींचकर ब्रा का स्ट्रैप ढंक देती है।

‘सुनो! किसी को बताना मत कि तुम्हें पीरियड्स शुरू हो गए हैं।’

‘ढंग से दुपट्टा लो, इसे गले में क्यों लपेट रखा है?’

‘लड़की की फोटो साड़ी में भेजिएगा।'

‘हमें अपने बेटे के लिए सुशील, गोरी, खूबसूरत, पढ़ी-लिखी, घरेलू लड़की चाहिए।'

‘नकद कितना देंगे? बारातियों के स्वागत में कोई कमी नहीं होनी चाहिए।'

‘दिन भर घर में रहती हो। काम क्या करती हो तुम? बाहर जाकर कमाना पड़े तो पता चले।'

‘मैं नौकरी कर रहा हूं ना, तुम्हें बाहर खटने की क्या जरूरत? अच्छा, चलो ठीक है, घर में ब्यूटी पार्लर खोल लेना।'

‘बाहर काम करने का यह मतलब तो नहीं कि तुम घर की जिम्मेदारियां भूल जाओ। औरत होने का मतलब समझती हो तुम?’

‘जी, मैं अंकिता मिश्रा हूं। शादी से पहले अंकिता त्रिपाठी थी। यह है मेरा बेटा रजत मिश्रा।'

‘तुम थकी हुई हो तो मैं क्या करूं? मैं सेक्स नहीं करूंगा क्या?’

‘कैसी बीवी हो तुम? अपने पति को खुश नहीं कर पा रही हो? बिस्तर में भी मेरी ही चलेगी।’

‘तुम्हें ब्लीडिंग क्यों नहीं हुई? वरजिन नहीं हो तुम?’

‘तुम बिस्तर में इतनी कंफर्टेबल कैसे हो? इससे पहले कितनों के साथ सोई हो?’

‘तुम क्यों प्रपोज करोगी उसे? लड़का है उसे फर्स्ट मूव लेने दो। तुम पहल करोगी तो तुम्हारी इमेज खराब होगी।'

‘नहीं-नहीं, लड़की की तो शादी करनी है। हां, पढ़ाई में अच्छी है तो क्या करें, शादी के लिए पैसे जुटाना ज्यादा जरूरी है। बेटे को बाहर भेजेंगे, थोड़ा शैतान है लेकिन सुधर जाएगा।’

‘इतनी रात को बॉयफ्रेंड के साथ घूमेगी तो रेप नहीं होगा?’

‘इतनी छोटी ड्रेस पहनेगी तो रेप नहीं होगा।'

‘सिगरेट-शराब सब पीती है, समझ ही गए होंगे कैसी लड़की है।'

‘पहले जल्दी शादी हो जाती थी, इसलिए रेप नहीं होते थे।'

‘लड़के हैं, गलती हो जाती है।’

‘फेमिनिजम के नाम पर अश्लीलता फैला रखी है। 10 लोगों के साथ सेक्स करना और बिकीनी पहनना ही महिला सशक्तीकरण है क्या?’

‘मेट्रो में अलग कोच मिल तो गया भई! अब कितना सशक्तीकरण चाहिए?’

‘क्रिस गेल ने तो अकेले सभी बोलर्स का ‘रेप’ कर दिया।’

लंबी लिस्ट हो गई ना? इरिटेट हो रहे हैं आप। सच कहूं तो मैं भी इरिटेट हो चुकी हूं यह सुनकर कि मैं ‘देश की बेटी’, ‘घर की इज्जत’, माँ और ‘देवी’ हूँ। नहीं हूँ मैं ये सब। मैं इंसान हूँ आपकी तरह। मेरे शरीर के कुछ अंग आपसे अलग हैं इसलिए मैं औरत हूं। बस, इससे ज्यादा और कुछ नहीं। सैनिटरी नैपकिन देखकर शर्म आती है आपको? इतने शर्मीले होते आप तो इतने यौन हमले क्यों होते हम पर?

ओह! ब्रा और पैंटी देखकर भी शर्मा जाते हैं आप या इन्हें देखकर आपकी सेक्शुअल डिजायर्स जग जाती हैं, आप बेकाबू हो जाते हैं और रेप कर देते हैं।

अच्छा, मेरी टांगें देखकर आप बेकाबू हो गए। आप उस बच्ची के नन्हे-नन्हे पैर देखकर भी बेकाबू हो गए। उस बुजुर्ग महिला के लड़खड़ाकर चलते हुए पैरों ने भी आपको बेकाबू कर दिया। अब इसमें भला आपकी क्या गलती! कोई ऐसे अंग-प्रदर्शन करेगा तो आपका बेकाबू होना लाजमी है। यह बात और है कि आपको बनियान और लुंगी में घूमते देख महिलाएँ बेकाबू नहीं होतीं। लेकिन आप तो कह रहे थे कि स्त्री की कामेच्छा किसी से तृप्त ही नहीं हो सकती? वैसे कामेच्छा होने में और अपनी कामेच्छा को किसी पर जबरन थोपने में अंतर तो समझते होंगे आप?
हाँ, मैं सिगरेट पीती हूँ… कोई प्रॉब्लम?
मेरे कुछ साथी महिलाओं द्वारा आजादी की मांग को लेकर काफी ‘चिंतित’ नजर आ रहे हैं। उन्हें लगता है कि महिलाएं ‘स्वतंत्रता’ और ‘स्वच्छंदता’ में अंतर नहीं कर पा रही हैं। उन्हें डर है कि महिलाएं पुरुष बनने की कोशिश कर रही हैं और इससे परिवार टूट रहे हैं, ‘भारतीय अस्मिता’ नष्ट हो रही है। वे कहते हैं कि नारीवाद की जरूरतमंद औरतों से कोई वास्ता ही नहीं है। वे कहते हैं सीता और द्रौपदी को आदर्श बनाइए। कौन सा आदर्श ग्रहण करें हम सीता और द्रौपदी से? या फिर अहिल्या से?
छल इंद्र करें और पत्थर अहिल्या बने, फिर वापस अपना शरीर पाने के लिए राम के पैरों के धूल की बाट जोहे। कोई मुझे किडनैप करके के ले जाए और फिर मेरा पति यह जांच करे कि कहीं मैं ‘अपवित्र’ तो नहीं हो गई। और फिर वही पति मुझे प्रेग्नेंसी की हाल में जंगल में छोड़ आए, फिर भी मैं उसे पूजती रहूं। या फिर मैं पांच पतियों की बीवी बनूं। एक-एक साल तक उनके साथ रहूं और फिर हर साल अपनी वर्जिनिटी ‘रिन्यू’ कराती रहूं ताकि मेरे पति खुश रहें।यही आदर्श सिखाना चाहते हैं आप हमें?

जो लड़की शर्माई नहीं, वह हो गई चरित्रहीन…

चलिए अब कपड़ों की बात करते हैं। आप एक स्टैंडर्ड ‘ऐंटी रेप ड्रेस’ तय कर दीजिए लेकिन आपको सुनिश्चित करना होगा कि फिर हम पर यौन हमले नहीं होंगे। बुरा लग रहा होगा आपको? मैं पुरुषों को जनरलाइज कर रही हूँ । हर पुरुष ऐसा नहीं होता। बिल्कुल ठीक कहा आपने। जब आप सब एक जैसे नहीं हैं तो हमें एक ढांचे में ढालने की कोशिश क्यों करते हैं? आपके हिसाब से दो तरह की लड़कियां होती हैं, एक वे जो रिचार्ज के लिए लड़कों का ‘इस्तेमाल’ करती हैं और एक वे जो ‘स्त्रियोचित’ गुणों से भरपूर होती हैं यानी सीता, द्रौपदी टाइप। बीच का तो कोई शेड ही नहीं है, है ना?

क्या साड़ी पहनकर ओलिंपिक में भाग लें?

महिलाओं की शिक्षा और आर्थिक आजादी बहुत ही बुनियादी चीजें हैं। ये बुनियादी हक भी उन्हें आपकी दया की भीख में नहीं मिले हैं। उन्हें लड़ना पड़ा है खुद के लिए और उनका साथ दिया है ईश्वर चंद्र विद्यासागर, राजा राम मोहन राय और ज्योतिबा फुले जैसे पुरुषों ने।
सच बताइए, आप डरते हैं ना औरतों को इस तरह बेफिक्र होकर जीते देखकर? आप बर्दाश्त नहीं कर पाते ना कि कोई महिला बिस्तर में अपनी शर्तें कैसे रख सकती है?फेमिनिज़्म से आपका इगो हर्ट होता है जब महिला खुद को आपसे कमतर नहीं समझती। फिर आप उसे सौम्यता और मातृत्व जैसे गुणों का हवाला देकर बेवकूफ बनाने की कोशिश करने लगते हैं। सौम्यता और मातृत्व बेशक श्रेष्ठ गुण में आते हैं। तो आप भी इन्हें अपनाइए ना जनाब, क्यों अकेले महिलाओं पर इसे थोपना चाहते हैं? क्या कहा? मर्द को दर्द नहीं होता? कम ऑन। आप जैसे लोग ही किसी सरल और कोमल स्वभाव वाले पुरुष को देखकर उसे ‘गे’ और ‘छक्का’ कहकर मजाक उड़ाते हैं। वैसे गे या ‘छक्का’ होने में क्या बुराई है? जो आपसे अलग हैं वह आपसे कमतर? क्या बकवास लॉजिक है। सानिया मिर्जा की स्कर्ट पर आपत्ति जताने वालों से और उम्मीद भी क्या कर सकते हैं! और हाँ, साक्षी मलिक और पीवी सिंधु की जीत का जश्न मना रहे हैं या नहीं?
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सिंधुवासिनी

अपनी समझ! अपनी सुरक्षा! #Pink warriors !

भारत में ब्रेस्ट कैंसर बहुत तेज़ी से बड़ रहा है और इलाज देर से शुरू होने के कारण बहुत संखया में हमारी महिलाएँ अपनी इस लड़ाई में हार जातीं हैं.

यदि ब्रेस्ट कैंसर का इलाज शुरू की स्टेज पर ही शुरू हो जाए तो यह लड़ाई जीती जा सकती है.

इसीलिए यह ज़रूरी है की सभी महिलाएँ महीने में एक बार ब्रेस्ट सेल्फ़ एग्ज़ाम करें, साल में एक बार क्लिनिकल एग्ज़ाम और डॉक्टर की सलाह पर ५० वर्ष की होने के बाद मैमोग्राम करवाएँ.

इस लड़ाई में अधिक से अधिक महिलाओं को जिताने के लिए कृपया हमारे मेसेजिस को फ़ॉर्वर्ड करें ताकि ज़्यादा से ज़्यादा महिलाओं को अपने जीवन में और अनेक बर्थडेज़ मनाने का मौक़ा मिले.

और वे अधिक लम्बे जीवन का आनदं ले पाएँ.

Breast Cancer is spreading fast and because in many cases treatment starts late, lot of women lose their battle against it.

Many lives can be saved if treatment starts at an early stage.

That's why it is very important that all adult women perform Breast
Self-Exam once a month, go for clinical breast exam once a year and on doctor's advice get a Mammogram done after the age of 50.

To help more and more women win their battle by catching it early if Breast Cancer attacks them, forward our messages and gift them a chance of celebrating many more Birthdays.

So that they enjoy happy and longer lives.

Respectmothers @ mothers R priceless !

Raw and unedited picture of a mother breastfeeding her 2weeks old baby after a C- section delivery.

This is priceless. This is what some mothers go through. The pains. The stretch mark. The shapeless body. The flappy tummy. Some of us use corset and body magic to hide it. Some of us use push up bra to feel sexy but when we get into the bathroom, naked and see the real body , we remind ourselves that we produced a creature, a human being. Please women learn to love yourself. Love your body. Motherhood is a beautiful thing. I pray that those trying for a child will get pregnant.

Men , learn to love your wives. What we go through isn't easy. We don't need you to misbehave, we don't want you to cheat on us. We don't want you to beat us. We don't want you to deny us our right. All we need is love , transparency, care and support. After all these suffering some men without conscience hit their wives. Some don't care if she has eaten . Some even abandon her to cater for the baby. Some spend more on their girlfriend forgetting they have a nursing wife at home. On judgement day , I wonder the excuse you will give God for maltreating your wife.

Some men even have the guts to tell their wives that she is not a woman just because she delivered through CS . I believe a true woman is the one who had her child(ren) through surgery. She has to go through pains. Serious pains. She has to deny herself food for days at least 3days. She can't eat normal food for a month. She can't even bath herself well. Unlike the vagina birth. Men , no matter the method of delivery treat her like a queen. For a mother and child to come out alive is God's grace. Pregnancy and Labour is between life and death. Learn to respect mothers.
#respectmothers
#saynotoviolence
#mothersarepriceless
(via: someone)

औरत होने की सज़ा : होइहें सोई जो पुरुष रचि राखा

मैं आदमी हूँ यानी पुरुष, मर्द, स्‍वामी, देवता, मंत्री, संतरी, सामंत, राजा, मठाधीश और न्‍यायाधीश-सबकुछ मैं हूँ और मेरे लिए ही सबकुछ है या सबकुछ मैंने अपने सुख-सुविधा, भोग-विलास और अय्याशी के लिए बनाया है. सारी दुनिया की धरती और (स्‍त्री) देह यानी उत्‍पादन और पुनरुत्‍पादन के सभी साधनों पर मेरा ‘सर्वाधिकार सुरिक्षत’ है. रहेगा. धरती पर कब्‍जे के लिए उत्‍तराधिकार कानून और देह पर स्‍वामित्‍व के लिए विवाह संस्‍था की स्‍थापना मैंने बहुत सोच-समझकर की है.

सारे धर्मों के धर्मग्रंथ मैंने ही रचे हैं. धर्म, अर्थ, समाज, न्‍याय और राजनीति के सारे कायदे-कानून मैंने बनाये हैं और मैं ही समय-समय पर उन्‍हें परिभाषित और परिवर्तित करता हूँ. घर, खेत, खलिहान, दुकान, कारखाने, धन, दौलत, सम्‍पत्ति, साहित्‍य, कला, शिक्षा, सत्‍ता और न्‍याय-सब पर मेरे अधिकार हैं सभी धर्मों का भगवान मैं ही हूँ और सारी दुनिया मेरी ही पूजा करती है. ‘अर्धनारीश्‍वर’ का अर्थ आधी नारी और आधा पुरुष नहीं बल्‍कि आधी नारी और आधा ईश्‍वर है. इसलिए तुम नारी और मैं (पुरुष) ईश्‍वर हूँ. तुम्‍हारा ईश्‍वर-पति परमेश्‍वर मैं ही हूँ.

तुम औरत हो यानी मेरी पत्‍नी, वेश्‍या और दासी-जो कुछ भी हो, मेरी हो और मेरे सुख, आनंद, भोग और ऐश्‍वर्य के लिए सदा समर्पित रहना ही तुम्‍हारा परम धर्म और कर्तव्‍य है. मेरे हुक्‍म के अनुसार चलती रहोगी, सम्‍पूर्ण रूप से समर्पित होकर वफादारी के साथ मेरी सेवा करोगी तो ‘सीता’, ‘सावित्री’ और ‘महारानी’ कहलाओगी, सुख-सुविधाएँ, कपड़े-गहने, धन-ऐश्‍वर्य, मान-सम्‍मान और प्रतिष्‍ठा पाओगी. मगर मुझसे अलग मेरे विरुद्ध आँखें उठाने की कोशिश भी करोगी तो कीड़े-मकोड़ों की तरह कुचल दी जाओगी.

कोई तुम्‍हारी मदद के लिए आगे नहीं आयेगा. समाज, धर्म, कानून, मठाधीश, मंत्री, नेता और राजा, सब मेरे हैं, बल्‍कि ये ही वे हथियार हैं जिनसे मैं इस दुनिया में ही नहीं, दूसरी दुनिया में भी तुम्‍हें नही छोडूंगा. पहली और दूसरी दुनिया मैं हूँ तुम महज तीसरी दुनिया हो, तुम्‍हारी न कोई दलील सुनेगा, न अपील.

– अरविन्‍द जैन की पुस्तक ‘औरत होने की सज़ा’ का अंश

कितना सही नाम रखा है अरविंद जैन ने पुस्तक का ‘औरत होने की सज़ा’…. कहती रहिए आप सारे कानूनों की सामंती, सवर्णवादी या मेल-शॉवेनिस्ट…. हम क्यों आसानी से उस कानून में फेर बदल करें जो हमारे वर्चस्व में सेंध लगाते हों? अरविंद जैन का कहना – समाज, सत्ता, संसद  न्यायपालिका  पुरुषों का अधिकार होने की वजह से सारे क़ानून, व्याख्याएं इस प्रकार से की गई कि आदमी के बच निकलने के हज़ारों चोर दरवाज़ें मौजूद है जबकि औरत के कानूनी चक्रव्यूह से निकल पाना एकदम असंभव…..

कानूनी प्रावधानों की चीर- फा‌ड़ करते और अदालती फैसलों पर प्रश्नचिन्ह लगाते लेख कानूनी अंतर्विरोधों और विसंगतियों के प्रामाणिक खोजी दस्तावेज है, जो निश्चित रुप से गंभीर अध्ययन, मौलिक चिंतन और गहरे मानवीय सरोकारों के बिना संभव नहीं. ऐसा काम सिर्फ़ वकील, विधिवेत्ता या शोध छात्र के बस की नहीं है. कानूनी पेचीदगियों को साफ, सरल और सहज भाषा में ही नहीं, बल्कि बेहद रोचक, रचनात्मक और नवीन शिल्प में भी लिखा गया है.

पुस्तक पढ़ने के बाद हो सकता है, आपको लगे, अरे! ऐसे भी क़ानून है? मुझे तो अभी तक पता ही नहीं था! या फिर हम तो सोच भी नहीं सकते कि सुप्रीम कोर्ट से सज़ा के बावजूद हत्यारे सालों छुट्टा घूम सकते हैं!

– अरविंद जैन की पुस्तक औरत होने की सज़ा (Law against women) के लिए राजेंद्र यादव द्वारा लिखा सम्पादकीय

Thursday, August 25, 2016

अविवाहित और विदेशी लोग सरोगेसी न करा पाएंगे

भारत के कैबिनेट ने किराए पर कोख यानी सरोगैसी पर जिस प्रस्तावित बिल को मंज़ूरी दी है उसके मुताबिक व्यवसायिक सरोगैसी पर प्रतिबंध लगाया जाएगा.
इस प्रस्तावित बिल में सरोगैसी को लेकर नए प्रावधान लाए गए हैं.
विदेशी नागरिकों को भारत में सरोगेसी कराने की अनुमति नहीं होगी.
इसके अनुसार अगर कोई दंपत्ति सरोगेसी से पैदा हुए बच्चे को नहीं अपनाता, तो उन्हें 10 साल तक की जेल या 10 लाख तक का जुर्माना हो सकता है.
सरोगेसी को लेकर भारत में कोई कानून नहीं है. आरोप लगते हैं कि इसके कारण कई गरीब महिलाओं का शोषण होता है.
पत्रकारों से बातचीत में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा, “ये कानून व्यवसायिक सरोगेसी पूरी तरह प्रतिबंधित करने के लिए और परोपकारी सरोगेसी को नियमित करने के लिए लाया जा रहा है.”

किसी महिला को पूरी ज़िंदगी में सिर्फ़ एक बार सरोगेट मां बनने की इजाज़त होगी.
सरोगेसी से हुए बच्चे अपनाने वाले दंपत्ति के लिए महिला की उम्र 23 और 50 वर्ष के बीच और पुरुष की उम्र 26 और 55 वर्ष के बीच होनी चाहिए.
लेकिन क्या ऐसा करने से लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे या फिर समलैंगिकों के अधिकारों का हनन नहीं होगा?
सुषमा स्वराज ने कहा, "हम लिव-इन रिलेशनशिप और समलैंगिक रिश्तों को रेकिग्नाइज़ नहीं करते हैं और इसलिए हम उन्हें इसके लिए हक़दार नहीं बनाना चाहते."
सरोगेट महिला बनने के लिए उसका विवाहित होना और एक स्वस्थ्य बच्चे की मां होना ज़रूरी होगा. सरोगेसी क्लीनिक का रजिस्टर्ड होना ज़रूरी होगा. अगर क्लीनिक सरोगेट मां की उपेक्षा करता है या फिर पैदा हुए बच्चे को छोड़ने में हिस्सा लेता है तो क्लीनिक चलाने वालों पर 10 वर्ष की सज़ा और 10 लाख तक का ज़ुर्माना लग सकता है.
सरोगेसी की अनुमति नज़दीकी रिश्तेदार को दी गई है. सरोगेसी से पैदा हुए बच्चे को सभी कानूनी अधिकार होंगे.
सुषमा स्वराज ने कहा, “जो चीज़ ज़रूरत के नाम पर शुरू की गई थी, वो अब शौक़ बन गई है. सेलेब्रिटीज़ के कितने ही ऐसे उदाहरण सामने हैं जिनके अपने दो-दो बच्चे हैं, बेटा और बेटी दोनो हैं, तब भी उन्होंने सरोगेट बच्चा किया है. ये अनुमति ज़रूरत के लिए है, शौक़ के लिए नहीं. और न इसलिए कि पत्नी पीड़ा सहना नहीं चाहती, इसलिए चलो सरोगेट बच्चा कर लेते हैं.”
प्रस्तावित कानून के अनुसार सरोगेसी की अनुमति तभी दी जाएगी जब दंपत्ति में से कोई भी पार्टनर बांझपन का शिकार हो, जिसके कारण दंपत्ति अपना बच्चा पैदा नहीं कर सकते हों.
सरोगेसी के लिए दंपत्ति की शादी को कम से कम पांच साल हो जाने चाहिए. अगर दंपत्ति का कोई अपना बच्चा हो या फिर उन्होंने कोई बच्चा गोद ले रखा हो, तो उन्हें सरोगेसी की इजाज़त नहीं होगी.
हैदराबाद स्थित डॉक्टर पद्मजा फ़र्टिलिटी आईविएफ़ सेंटर के दिवाकर रेड्डी सरोगेसी के मुद्दे पर लग रहे कई तरह के आरोपों को ख़ारिज करते हैं.
वो कहते हैं कि ये आरोप की सरोगेसी में गरीब महिलाओं को लूटा जा रहा है, या फिर उनकी मौत तक हुई है, ग़लत हैं.
इस बिल को संसद के अगले सत्र में पेश किया जाएगा. इसके अंतर्गत एक राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड बनाया जाएगा और और उसके नीचे केंद्र और राज्यों में बोर्ड होंगे.
राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड के प्रमुख स्वास्थ्य मंत्री होंगे और तीन महिला सांसद इसकी सदस्य होंगी. दो सांसद लोकसभा से होंगी और एक राज्य सभा से.

Sunday, August 21, 2016

पदक की कीमत...

साक्षी मलिक तिरंगे को सलामी दे रही थी और राष्ट्रगान की धुन बज रही थी।गले में ओलम्पिक का कांस्य पदक झूल रहा था और यह सब देख रही थी गांव के नुक्कड़ पर लाला की दुकान के सामने खड़ी कजरी..
हां..गांव की होनहार बेटी कजरी। मुट्ठिया भींचे एकदम सावधान की मुद्रा..जैसे पदक साक्षी ने ना जीतकर कजरी ने जीता हो। कजरी उसका घर का नाम था स्कूल में उसका नाम कोमल वर्मा था। पांच फुट सात इंच लम्बी कजरी गांव की सबसे लम्बी लड़की थी। बचपन में मां जब बापू की रोटियां बांधकर जब खेत तक पहुंचाने की कहती थी तो कजरी उतनी स्पीड से भागकर खेत तक पहुंच जाती थी जितनी स्पीड से मां रोटियां बना भी नही पाती थी। इकलौती बेटी थी कजरी। ना कोई भाई ना कोई बहन..स्कूल के काम से लेकर घर के काम तक हर काम मे अव्वल थी कजरी। गांव वाले भी अकसर कहा करते थे। कजरी एक दिन गांव का नाम जरूर रोशन करेगी। जब भी फुरसत मिलती कजरी खेतों के कच्चे रास्तों पर दौड़ लगाने निकल पड़ती और घंटो दौड़ती रहती और बस दौड़ती ही रहती। जैसे वह पैदा ही दौड़ने के लिए हुई थी लड़कियां तो लड़कियां लड़कों मे भी कोई ऐसा ना था जो कजरी से आधे रास्ते की भी बराबरी कर ले..
आज से पांच बरस पहले ( जब वह दसवीं कक्षा की छात्रा थी ) स्कूल के मास्टर जी ने बताया की..शहर में दौड़ की प्रतियोगिता है तो कजरी बापू को उसमे हिस्सा लेने के लिए कहने लगी तो बापू ने उसे समझाया..."बेटी..वहां महंगे महंगे जूते पहनकर दौड़ने वाली लड़कियां हैं तू उनमें कहां दौड़ पाएगी..पर ना मानी कजरी दो दिन तक उसने खाना नही खाया। थक हारकर बापू ने उसका नाम शहर जाकर उस दौड़ प्रतियोगिता में लिखवा ही दिया..कजरी को आठ दिन मिले थे उस प्रतियोगिता से पहले..उसने उन आठ दिनो में कई महीने जितनी दौड़ लगा दी। आखिर पहला अवसर जो मिला था उसको शहर कि किसी दौड़ प्रतियोगिता मे हिस्सा लेने का..
नियत तारीख पर भोर में ही बस पकड़कर बापू के संग शहर के लिए निकल गई कजरी..सैंकड़ो सपनों मे रंग भरने का अवसर मिला है आज..आज के बाद कजरी..कजरी ना रहेगी कोमल वर्मा के नाम से जानी जाएगी। एक आम लड़की से खास हो जाएगी..और भी न जाने क्या क्या सोच लिया कजरी ने उस दो घण्टे के बस के सफर के दौरान..
बस से उतरकर वो दोनो आटो पकड़कर खेल के मैदान तक आ पहुंचे। खेल शुरू होने से पहले मैडिकल चैकअप हुआ उसके बाद सुबह दस बजे से दौड़ की प्रतियोगिता शुरू हुई..सौ मीटर, दो सौ मीटर, हजार मीटर, पांच हजार मीटर, रिले रेस..एक एक कर कजरी ने सभी दौड़ें बडे अन्तर से जीत ली। चारों तरफ कजरी..कजरी..कजरी बस कजरी की ही गूंज थी..शाम हो चुकी थी। कजरी सभी मैडल गले में डाले अपने बापू के साथ गांव लौटने की तैयारी कर रही थी। तभी खेल सचिव का पी ए उनके पास आया और उनसे कहा की.."आपको साहब बुला रहे हैं दस पांच मिनट की ही बात है वो दोनो उसके साथ खेल सचिव के आफिस तक आ गए। कजरी के साथ बापू जब आफिस के अन्दर जाने लगे तो उन्हे बाहर ही रूकने को कह दिया। कजरी आफिस में दाखिल हुई तो सामने कुर्सी पर लगभग पैंतीस वर्ष का एक शख्स बैठा था। उसने कुर्सी छोड़ते हुए कजरी को वैलकम करते हुए कहा.."आइये आइये कोमल वर्मा जी, भई वाह क्या खूब दौड़ लगाती हैं आप.."कहां छुपी हुई थी आप अभी तक..खेल सचिव ने हाथ पकड़ कर उसे कुर्सी पर बिठाते हुए कहा..कजरी को बड़ा सम्मान महसूस हुआ गांव की एक लड़की के लिए इतने बड़े आदमी से अपनी प्रशंसा में दो शब्द सुनने से बड़ा और क्या सम्मान होगा.."नही नही सर.. ऐसा कुछ नही बस थोड़ा बहुत दौड़ लेते हैं.."अरे आप नही जानती कोमल जी,.. आप क्या हैं..कल जोनल फिर नेशनल और फिर ओलम्पिक आप जल्द ही लेडी उसैन बोल्ट होंगी। शोहरत आपके बहुत करीब है यह कहते कहते खेल सचिव कजरी के ठीक सामने कुर्सी पर आकर बैठ गया। .."लेकिन क्या है कोमल जी आप जानती भी होगी की हर चीज की एक कीमत होती है और इस नाम, इज्जत और शोहरत को पाने के लिए थोड़े समझौते भी करने पड़ते हैं। मैं साहब से कहकर आपको आगे बढने का मौका दिलवा दूंगा बस आप..यह कहते कहते पितृ स्वरूप वह हाथ मर्यादा लांघने लगे। कजरी बेशक गांव की लड़की थी मगर वह इतनी भी अन्जान न थी उसने तुरंत उस उजली सूरत के पीछे छुपे काले विचार वाले दैत्य की असलियत को भांप लिया...
चटाक..एक थप्पड़ रसीद कर दिया कजरी ने उस खेल सचिव के मुह पर.."क्या समझते हो आप अपने आप को.. "आगे बढाने का लालच देकर आप मेरी इज्जत से खिलवाड़ करेंगे, मैं मर जाऊंगी लेकिन समझौता नही करूंगी। यह कहकर उसने आज दौड़ मे जीते हुए सारे पदक उस खेल सचिव के मुह पर फेंक मारे.."थू है आपकी इस घटिया सोच पर..यह कहकर थूक दिया कजरी ने उस सचिव के मुह पर और कमरे से बाहर निकल गई..चलो बापू चलते हैं..?? क्या हुआ बेटा..?? क्या कह रहे थे साहब..?? बापू सवाल पर सवाल पूछे जा रहे थे लेकिन कजरी बस खामोश बापू का हाथ पकड़े खींचे ले जा रही थी खुद को उस दूषित हवा से दूर जहां उसका दम घुटा जा रहा था..
उस घटना को आज पूरे पांच बरस बीत चुके हैं। आज भी जब वह तिरंगे के लहराने पर राष्ट्रगान की धुन सुनती है तो उसके जख्म फिर से हरे हो जाते है। वह जानती है की दुनिया के लिए यह सिर्फ एक पदक है। लेकिन सिर्फ और सिर्फ एक लड़की ही जान सकती है कि रास्ता जितना सीधा और सरल दिखता है उतना है नही। इस पुरूष प्रधान समाज में सिर्फ खेल के मैदान में पसीना बहाकर ही नही पदक नही मिलते बल्कि और भी कीमत चुकानी पड़ती है तिरंगे को सलामी के लिए...

Saturday, August 13, 2016

Plz must be read all girls and specially boys

Please let your wife know about this, this is a serious caution from medical practioners ( LUTH ) to all female beings be it infant, baby, girl, ladies, mothers; cancer of the Vagina is all over, please avoid washing your Vagina with soap, wash with only water, there is is a particular chemical in soap generally that is very dangerous and Possibly causes cancer of the Vagina.

Cases of cancer of the Vagina is all over most of the general hospitals so be aware of this important message. If you have feelings for others. Kindly pass this message to others that are important to you.

* 56 girls died because of using whisper, stayfree etc.

* Don't use one single pad for the whole day because of the chemical used in ultra napkins. Which converts liquid into gel......it causes cancer in bladder and uterus. So please try to use cotton made Pads and if you are using ultra pads, please change it within 5hours, per day, at least. If the time is prolonged the blood becomes green and fungus formed gets inside the uterus and body.

* Please don't feel shy to forward this message to all girls and even boys so that they can share with their wives. And friends, whom they care for.

AIMS
Kick off “Breast Cancer”

* Nurse your baby.

* Wash your bra daily.

* Avoid black bra in summer.

* Do not wear a bra while sleeping.

* Do not wear an under wire bra very often.

* Always cover your chest completely by your dupatta or scarf when you are under the sun.

* Use a deodrant not an anti perspirant.

* This is a public service message from Tata cancer hspital.

* Pass it to all the ladies you care for without. Hesitating.

* Awareness is important.

* I ,Lucky, care for you all.

* Please don't hesitate to inform other females, forward to every girls on your List!!...

* Now am starting with you, my friends on facebook, especially the ladies, kindly share it to all of your friends or every girls on your bbm, whatssapp, facebook etc. Thanks.

Friday, August 12, 2016

मातृत्व लाभ (संशोधन) विधेयक, 2016 पेश किया, जिसका उद्देश्य कामकाजी महिलाओं के मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह करना है।

केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री ने राज्य सभा में मातृत्व लाभ (संशोधन) विधेयक, 2016 पेश किया, जिसका उद्देश्य कामकाजी महिलाओं के मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह करना है।
इस संबंध में मेटरनिटी बैनिफेट एक्ट में संशोधन आज राज्यसभा में पास हो गया।- 

खास बातें

–गर्भावती महिलाओं को 26 हफ्ते की छुट्टी मिलेगी
–कंपनियों, संस्थाओं में बच्चों के लिए क्रेच बनाना भी अनिवार्य
–अब लोक सभा में पेश किया जाएगा बिल

नई दिल्ली: राज्यसभा ने मातृत्व अवकाश संशोधन बिल को लंबी चर्चा के बाद मंजूरी दे दी है. यह कामकाजी महिलाओं की बराबरी की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है. इसके तहत निजी कंपनियों में भी गर्भावस्था में महिलाओं को 26  हफ्ते की छुट्टी मिलेगी. कंपनियों और संस्थाओं में बच्चों के लिए क्रेच बनाना भी अनिवार्य हो जाएगा. इस कानून के अभाव में अब तक महिलाएं निजी कंपनियों की मनमानी झेलने को मजबूर थीं.

भेदभाव खत्म करने के तरीकों पर गहन चर्चा के बाद आया बिल
यह बिल पिछले कई साल से स्टेकहोल्डरों के साथ सलाह-मशविरा के बाद लाया गया है. इस दौरान वर्कप्लेस पर कामकाजी महिलाओं के खिलाफ हो रहे भेदभाव को खत्म करने के तरीकों पर गहन चर्चा की गई. गुरुवार को राज्यसभा ने मातृत्व अवकाश संशोधन बिल पास कर दिया है. अब इसे लोक सभा में पेश किया जाएगा.

बच्चे गोद लेने वाली मांओं को 12 हफ्ते की छुट्टी
नए प्रस्तावित कानून में निजी कंपनियों के लिए अब मातृत्व अवकाश 12 हफ्ते की जगह 26 हफ्ते देना जरूरी होगा. 10 से ज्यादा कर्मचारियों वाली सभी कंपनियों और संस्थाओं पर यह प्रस्तावित कानून लागू होगा. जहां-जहां 50 से ज्यादा कर्मचारी हैं, वहां कामकाजी महिलाओं के बच्चों के लिए क्रेच की व्यवस्था मुहैया कराना जरूरी होगा. साथ ही गोद लेने वाली मांओं को भी 12 हफ्ते की छुट्टी मिलेगी.

मेनका गांधी ने कहा, कानून के होंगे दूरगामी परिणाम
महिला और बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने बिल पारित होने के बाद कहा, "यूनिसेफ के मुताबिक जन्म होने के सात महीने तक मां का बच्चे की देखभाल करना बेहद जरूरी होता है. इस कानून के दूरगामी परिणाम होंगे. बच्चे के लिए भी और मां के लिए भी."

कानून का उल्लंघन करने वालों के सजा
सवाल है कि इस कानून पर अमल न करने वालों पर क्या कार्रवाई होगी? एनडीटीवी से बात करते हुए श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने कहा "जो लोग नए नियमों का उल्लंघन करेंगे उन्हें तीन महीने से लेकर एक साल तक की सजा का प्रावधान बिल में शामिल किया गया है. उन पर फाइन भी लगाने का प्रावधान शामिल किया गया है."

सात रीजनल कॉन्फ्रेंस आयोजित करेगा श्रम मंत्रालय
अब श्रम मंत्रालय देश भर में सात रीजनल कांफ्रेंस आयोजित करने की तैयारी कर रहा है जिनमें सभी राज्यों के श्रम मंत्रियों और श्रम सचिवों को बुलाकर उनसे इस प्रस्तावित कानून को सही तरीके से लागू करने को कहा जाएगा. यानी अब अगली चुनौती प्रस्तावित कानून को जमीन पर कारगर तरीके से लागू करने की होगी.
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संशोधन में महिलाओं के मातृत्व अवकाश (मैटरनिटी लीव) को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह किया गया है। इसे बाद में लोकसभा में रखा जाएगा जहां सरकार के पास पूर्ण बहुमत है। ऐसे में साफ है कि यह प्रस्ताव जल्द ही कानून की शक्ल अख्तियार कर लेगा।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट ने मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 में संसद में मातृत्व लाभ (संशोधन) विधेयक, 2016 पेश करके किये जाने वाले संशोधनों को पिछली तिथि से मंजूरी दे दी।
=>क्या विशेष है इसमें :-
★ मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 महिलाओं को उनके प्रसूति के समय रोजगार का संरक्षण करता है और वह उसे उसके बच्चे की देखभाल के लिए कार्य से अनुपस्थिति के लिए पूरे भुगतान का हकदार बनाता है।
★ यह 10 या इससे अधिक कर्मचारियों को काम पर रखने वाले सभी प्रतिष्ठानों पर लागू होगा। इससे संगठित क्षेत्र में 18 लाख महिला कर्मचारी लाभान्‍वित होंगी।
★ इन संशोधनों में दो जीवित बच्चों के लिए मातृत्व अवकाश 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह करना और दो बच्चों से अधिक के लिए 12 सप्ताह, कमीशनिंग मां और गोद लेने वाली मां के लिए 12 सप्ताह का अवकाश और 50 से अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों के लिए क्रेच का अनिवार्य प्रावधान शामिल है।
★ नौकरी पेशा महिलाओं के लिए ये काफी बड़ा बदलाव होगा। खास बात ये है‌ कि ये प्रस्ताव पास होता है तो सरकारी के साथ साथ निजी क्षेत्र में काम करने वाली महिला कर्मचारियों को भी इसका लाभ मिल सकेगा ।

★सरकार और उनका मंत्रालय पिछले डेढ़ साल से इस प्रस्ताव के लिए प्रयास कर रहा था। काफी प्रयासों के बाद यह प्रस्ताव सदन के पटल तक पहुंचा। हालांकि इस प्रस्ताव को श्रम मंत्रालय की ओर से पेश किया गया।
★ सरकार यह मानती है कि नवजात बच्चे को जन्‍म के बाद कम से कम छह माह तक मां का दूध जरूर मिलना चाहिए। ऐसे में जो महिलाएं नौकरीपेशा हैं उनके लिए जरूरी है कि उन्हें पर्याप्त अवकाश दिया जाए।

Saturday, August 6, 2016

#सोसाइटी_इज_साइलेंट_रेपिस्ट_हैंग_इट_फर्स्ट‬

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आपको क्या लगता है- रेप का मतलब क्या सिर्फ जबरजस्ती सेक्सुअली असाल्ट कर देना है?
अगर आप ऐसा ही सोचते है तो बुरा मत मानियेगा ~ आपके अंदर भी एक संभावित रेपिस्ट बैठा हुआ. रेप केवल बलपूर्वक यौन भंग करना नही है. ये तो रेप का एक हिस्सा भर है. जिसमे एक व्यक्ति एक विक्टिम के साथ फिजिकली इनवॉल्व होता है. अगर रेप का मतलब सिर्फ इतना ही होता, तो विक्टिम का इस हादसे से निकलना उतना मुश्किल भी नही होता. लेकिन ऐसा होता नही है. रेप तो इससे भी broader-tragedy है. रेप दरअसल एक ऐसा सामजिक हादसा है, जो विक्टिम का जीना तक मुहाल कर देती है.विक्टिम के साथ फिजिकली इनवॉल्व व्यक्ति इस भयानक हादसे का एक हिस्सा भर होता है. देर सबेर कम ज्यादा सजा तो उसे मिल ही जाती है. लेकिन सोचने वाली बात है कि
-- क्या उस पूरे समाज को दंड मिलता है, जो रेप विक्टिम को इस नजर से देखने लगता है, जैसे उसका असाल्ट जबरजस्ती नही; बल्कि उसकी इच्छा से हुआ है?
-- क्या समाज रेप पीड़िता को गंदी और जहालत की नजर से नही देखता?
-- क्या रेप विक्टिम को लेकर एक गंदी सोच नही बन जाती? मुकरीएगा मत... क्या आप विक्टिम को देखकर मजा नही लेते?
-- क्या आप विक्टिम को सहज रूप में स्वीकार लेते है? कितने लोग ऐसे है, जो विक्टिम के साथ एक सामान्य व्यवहार रख पाते है?
-- मुझे लगता है कि ऐसे लोगो कि संख्या अंगुली पर गिनने भर होगी. यहाँ तक कि लोग फब्तियां कसते है. कुछ तो सहानुभूति रखने के बहाने भी उस विक्टिम को जलील करने की वजह खोजते रहते है.
जब ये बात सच है, तो रेप का दोषी (रेपिस्ट) तो इस पूरे हादसे का एक छोटा हिस्सा भर है, उससे बड़ा रेपिस्ट तो ये समाज और खुद घर परिवार के लोग है. जो पल पल विक्टिम को दोषी महसूस कराकर जिंदा लाश में बदल देते है.
सच तो ये है कि रेप के दोषी से बड़ा रेपिस्ट वह समाज है, जो यौन भंग को जीवन मरण का मसला बना देता है. जिस दृष्टिकोण से में ये बात लिख रही हूँ, उस हिसाब से क्या समाज रेपिस्ट नही है???
हो सकता है कि रेपिस्ट किसी मनोविकार के वशीभूत रेप किया हो. लेकिन ये समाज... ये समाज तो सोच समझकर कर रेप करता है. रेपिस्ट तो एक बार रेप करता है. समाज तो हर रोज हर पल रेप करता है. आंखो के इशारो, भद्दी टिप्पणियॉ और कभी कभी सहानुभूति के द्वारा भी हम विक्टिम का रेप कर रहे होते है. रेपिस्ट तो सजा पा जायेगा. लेकिन उस समाज को आप कब फांसी पर लटकाओगे, जो रोज ही रेप करेगा...
जानती हूँ आप इस बात से मुकरेगे. शौक से मुकरीये. लेकिन सोचियेगा अगर ऐसा नही होता तो विक्टिम और उसकी फैमिली को इलाका बदलने की बात ही क्यो आती? तो इस समाज को साइलेंट रेपिस्ट क्यो नही कहा जाये? उसकी भी सजा क्यो ना मुकर्रर हो? लेकिन आप आखिर समझेंगे भी तो कैसे? आखिर आप भी तो उस समाज के हिस्से हैं. दो व्यस्क प्रेमी के मिलन को तो आप सहजता से लेते नही, रेप विक्टिम को क्या खाक सहज ढंग से लेंगे....
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