एक सीधा सा सवाल "क्या अपने यहाँ लिंगभेद कभी समाप्त होगा ? नहीँ...क्यों ?
क्योंकि यहाँ की व्यवस्था के जर्रे-जर्रे पर पुरुषवाद की छांह पड़ी है. कहीँ प्रत्यक्ष तो कहीँ अप्रत्यक्ष लेकिन हर जगह हर बार स्त्रियों को द्वितीयक प्राणी के अस्तित्व का दर्जा ही प्राप्त है.
कुछ घरों की महिलाएँ कहती दिखायी देती हैं कि "हमारे साथ कोई दुर्व्यवहार नहीँ हुआ, हमारे पैरेन्ट्स ने कभी भाइयों को हमपर हावी नहीँ होने दिया क्योंकि वो कहते थे कि पता नहीँ अगले घर में हमें ये प्यार मिले न मिले". उनकी बातें जानकर हँसी,गुस्सा और दया तीनों भाव मन में आते हैं कि बेवकूफ महिलाएँ दयादृष्टि से दी गई भीख को प्यार समझ बैठी हैं. ये छद्म है, दिखावा है, प्रेम नहीँ छलावा है जिसमें भ्रमित होकर ये गौरव से इतरा रही हैं.इतना ही उनके प्रेम पर भरोसा है तो जैसे इनके भाई लोग मोहल्ले की कितनी ही लड़कियों से इश्कबाजी करते हैं और माँ-बाप चुप तो एकाध से ये भी करके देख लेंवे. किसी लौंडे का हाथ पकड़कर ज़रा मोहल्ले में घूम भर आयें टेस्ट हो जायेगा कि कितनी समानता है भाई और बहनों में या फ़िर बाहर से आकर जैसे भाई इनसे अपने अफेयर्स की बातें बताता है ज़रा ये भी बताकर देख लें तो कुछ बात हो...
और आगे यही कहना है कि ये "अगला घर" क्या होता है ? जहाँ जन्म लिया वहाँ से तो ये बिन पेंदी के लोटे की तरह निकाल दी जायेंगी/जाती हैं. वह घर इनके माँ-बाप के बाद इनके भाइयों का होगा और "अगला घर" तो पहले से पतिदेव और उसके घरवालों के लिये रिजर्व है तो "इनका घर किधर है...?" वाकई इनकी बातें जानकर महसूस होताहै कि मूर्खता की सीमा नहीँ है.
भाई अक्सर रात को अपने दोस्तों के यहाँ रुक जाता है.एक कॉल कर ख़बर भर दे देता है और घर के सभी लोग निश्चिंत...ये भी कभी किसी सहेली के घर रुककर कॉल कर ज़रा देख लें कि घरवाले कितने निश्चिंत हो पाते हैं.
उन्हें प्रेम का लालीपॉप देकर घर की मान मर्यादा के नाम पर इतना कसकर रखा जाता है कि उसके दूसरे पहलू को न देख सकें न समझ सकें और स्वीकार करने का तो खैर सवाल ही पैदा न हो...
लिंगभेद की नीति का ज़बर्दस्त हथियार है प्रेम के नाम पर 'ब्रेनवॉशिंग'.ये वह तरीका है जिससे विरोध की गुंजाइश काफ़ी हद तक कम की जा सकती है.ये एक तरह से पुरुषतंत्र के बचाव में सेफ्टी वाल्व का काम करता है.सिर्फ़ इसमें ज़रा कुशलता की ज़रूरत होती है ताकि जिसपर आजमा रहे हों वह भांप न जाये.प्रेम और दुलार के नाम पर पूर्ण कब्जा इसकी ज़बर्दस्त विशेषता होती है.
स्पष्टतया ये पूरा का पूरा ब्रेनवाशिंग का मामला ही है. यहाँ पढ़ी-लिखी,खूबसूरत और उच्च शिक्षित महिलाओं की संकल्पना है जो आचरण से दिखावापसंद हो और दिमागी तौर पर पुरुष वर्चस्व की घोर समर्थक. इनकी डोर किसी मर्द के हाथों में होना चाहिये जिनकी दया से मिली ढील को ये अपनी स्वतंत्रता,अपने अधिकार समझें. यही स्त्री का विकास है. अब तक इतनी ही आजादी पाई है हमने. इन ढकोसले और दिखावी से चिढ़ होती है और..ये ब्रेनवाश्ड महिलाएँ झूठे ही गौरवान्वित होकर खुशी के मारे पगलायी जा रही हैं.
लिंगभेद की नीति तब ख़त्म होनी समझी जायेगी जब कर्म और कुकर्म करने में दोनों को समान अधिकार प्राप्त होंगे. जो स्त्री के लिये सही है वह पुरुष के लिये भी सही हो और जो स्त्री के लिये ग़लत है वह पुरुष के लिये भी ग़लत घोषित होना चाहिये. शारीरिक भिन्नता या विषमता कहीँ से भी जीवन के अधिकारों पर अविभावी नहीँ हो सकती है. स्त्री और पुरुष दोनों मानव हैं तो दोनों के मानवाधिकार समान हैं जिनके वितरण में पक्षपात कहीँ से भी क्षम्य नहीँ है. आगे यदि जिन्हें छलावे को प्रेम और आजादी समझनी है उन्हें वह प्रेम और आजादी मुबारक हो... ऐसे प्रेम का प्रसाद बांटनेवाले की जय और प्रसाद पानेवाले की जय.
मेरी लिखी बातों को हर कोई समझ नही सकता,क्योंकि मैं अहसास लिखती हूँ,और लोग अल्फ़ाज पढ़ते हैं..! अनुश्री__________________________________________A6
Thursday, August 4, 2016
क्या अपने यहाँ लिंगभेद कभी समाप्त होगा ?
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